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MP में बढ़ा Delta Plus Variants का खतरा, अब तक मिले 8 मरीज, 2 की मौत

June 26, 2021

भोपालः प्रदेश में कोरोना संक्रमण की रफ्तार धीमी हुई है लेकिन अब एक नई मुसीबत का खतरा राज्य में बढ़ रहा है. दरअसल एमपी में कोरोना के सबसे खतरनाक वैरिएंट डेल्टा प्लस के मरीज मिल रहे हैं. अब तक राज्य में इस वैरिएंट के 8 मरीज मिल चुके हैं. बता दें कि इनमें से 2 मरीजों की मौत भी हो चुकी है. यह वैरिएंट कोरोना (corona) का सबसे घातक वैरिएंट बताया जा रहा है. यही वजह है कि पूरे देश में इस वैरिएंट के खतरे को लेकर चिंता बढ़ी है.


नया मरीज भोपाल में मिला
कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट (delta variant) से संक्रमित नया मरीज भोपाल में मिला है. बैरागढ़ के एक 25 साल के युवक में जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) के जरिए डेल्टा प्लस वैरिएंट के होने की पुष्टि हुई है. हालांकि राहत की बात ये है कि संक्रमित युवक ठीक है और अपने घर पर ही क्वारंटीन है. भोपाल के 3 मरीजों के अलावा अन्य जिन जगहों पर कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट के मरीज मिले हैं, उनमें उज्जैन से 2, रायसेन में 2 और अशोकनगर में 1 मरीज शामिल है.

मंत्री बोले- इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया जा रहा
चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा है कि कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए राज्य में इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया जा रहा है. विभिन्न जिलों की प्लानिंग रिपोर्ट बनाई जा रही है और हेल्थ वर्कर्स को ट्रेनिंग दी जा रही है. डेल्टा प्लस वैरिएंट (Delta Plus Variants) की जांच भी अब भोपाल के हमीदिया अस्पताल में हो सकेगी. जिसकी रिपोर्ट 5 दिन में मिलेगी. उन्होंने स्वीकार किया कि डेल्टा प्लस वैरिएंट के मामले सामने आने से चिंता बढ़ी है लेकिन सरकार इससे निपटने की तैयारियों में जुटी है.

बता दें कि कुछ दिनों पहले तक कोरोना वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग  (genome sequencing) की सुविधा राज्य के पास नहीं थी. जिसके चलते डेल्टा प्लस वैरिएंट की पुष्टि के लिए सैंपल दिल्ली भेजा जाता था और उसकी रिपोर्ट आने में 22 दिन लगते थे लेकिन अब राज्य में ही यह सुविधा शुरू हो गई है और सिर्फ 5 दिन में इसकी रिपोर्ट मिल जाएगी.

third wave में बच्चो पर ध्यान
मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों के प्रति खतरे की आशंका जताई जा रही है. इसे देखते हुए भी सरकार तैयारी कर रही है. बता दें कि तीसरी लहर के दौरान अस्पताल में बच्चों के इलाज के समय उनके माता-पिता भी अस्पताल में ही रुक सकेंगे. बच्चों के प्रति ज्यादा खतरे को देखते हुए यह फैसला लिया गया है.

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