– डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र
चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर विशाल बांध बनाने जा रहा है। चीन की संसद ने ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की योजना को मंजूरी दी है। वह 14 वी पंचवर्षीय योजना में अरुणाचल प्रदेश से सटे तिब्बत के निचले क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बनाने की तैयारी कर रहा है, इसके अंतर्गत यह बांध 2021 से 2025 की पंचवर्षीय योजना में बनकर तैयार होगा। चीन के अनुसार ब्रह्मपुत्र नदी पर बनने वाला यह हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट विश्व के सबसे बड़े बांधों में से एक होगा। चीन पहले ही तिब्बत में 11130 करोड़ों रुपए की लागत से थ्रीजार्ज हाइड्रो पावर स्टेशन बना चुका है। 2015 में बना यह बांध चीन का सबसे बड़ा बांध है। अब प्रस्तावित नया प्रोजेक्ट तिब्बत के मैदानी इलाके में मौजूद यारलुंग सांगपो अर्थात ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाया जाएगा जो सुपर हाइड्रो पावर स्टेशन होगा।
चाइना सोसाइटी ऑफ हाइड्रो पावर के अनुसार यह इतिहास में सबसे बड़ा बांध होगा। उल्लेखनीय है कि परियोजना सांगपो डाउनस्ट्रीम हाइड्रो पावर बेस के द्वारा चीन 60 गीगावॉट बिजली का उत्पादन कर सर्वाधिक बिजली उत्पादित करने वाला प्रोजेक्ट बनेगा तथा वह 22.5 गीगावॉट बिजली उत्पादित करने वाले जार्ज डैम प्रोजेक्ट से लगभग 3 गुना बिजली उत्पादन कर सबसे बड़ा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बनेगा।
तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी अर्थात यारलंग सांगपो नदी में ग्रैंड कैनियन है, जहां पानी 2000 मीटर ऊंचाई से नीचे गिरता है ,जिससे 70 मिलियन किलोवाट प्रति घंटे की दर से बिजली बनाई जा सकती है। ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत में यारलंग सांगपो, अरुणाचल प्रदेश में सियांग तथा दिहांग और असम में रोहित दिलाओ तथा ब्रह्मपुत्र, बांग्लादेश में जमुना नदी के नाम से संबोधित किया जाता है। यह नदी चीन, भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा निर्धारित करती है। पानी के बहाव की दृष्टि से विश्व की नौवीं सबसे बड़ी और लंबाई की दृष्टि से 15 वीं सबसे बड़ी नदी है। ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह क्षेत्र लगभग 3969 किलोमीटर तथा नदी की औसत गहराई 38 मीटर अर्थात लगभग 128 फीट तथा अधिकतम गहराई 120 मीटर अर्थात 380 फीट है। असम में इसकी चौड़ाई काफी अधिक हो जाती है। कहीं-कहीं पर यह 10 किलोमीटर तक विस्तृत क्षेत्र में अपना प्रवाह पथ बनाकर आगे बढ़ती है। असम के डिब्रूगढ़ तथा लखीमपुर जिले के बीच में नदी दो भागों में विभक्त होकर आगे बढ़ती है और असम में ही नदी की दोनों शाखाएं मिलकर मुजुली द्वीप बनाती हैं जो दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप है।
यह नदी हिमालय क्षेत्र के कैलाश पर्वत के समीप स्थित मानसरोवर झील क्षेत्र में स्थित आंगसी ग्लेशियर, जो समुद्र तट से 5150 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, निकलकर दक्षिण तिब्बत से होती हुई अरुणाचल, असम के पश्चात बांग्लादेश में प्रवेश कर गंगा नदी की मूल शाखा पदमा से मिलकर बंगाल की खाड़ी में समुद्र से मिलती हुई भारत, चीन और बांग्लादेश की सीमा निर्धारित करती है। विश्व की समस्त बहती हुई धाराओं को नदी नाम से ही संबोधित किया जाता है तथा उनकी संज्ञा नदी ही है, किंतु ब्रह्मपुत्र एक ऐसी जलधारा है जिसे नदी न कहकर नद कहा गया है। ब्रह्मपुत्र को ब्रह्मा के पुत्र के रूप में स्वीकार किया गया है। असम में इसे प्रायः ब्रह्मपुत्र के नाम से ही जाना जाता है, किंतु बोडो लोग इसे भुल्लम-बुथुर नाम से संबोधित करते हैं, जिसका अर्थ है- कल कल की आवाज निकालना।
चीन द्वारा इस विशाल बांध के बनाए जाने से भारत के समक्ष अनेक नई चुनौतियां उपस्थित होंगी। नदी के प्रवाह में रुकावट आएगी जिसके कारण भारत के पूर्वोत्तर राज्य में सूखे की स्थिति उत्पन्न होने के के साथ-साथ बारिश के दिनों में बाढ़ की भी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इस मेगा डैम के निर्माण के बाद ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन का पूर्ण नियंत्रण होगा वह कभी भी नदी के पानी को रोक सकेगा तथा अपनी आवश्यकतानुसार बांध के दरवाजे खोल कर आवश्यकता से अधिक पानी अनियंत्रित मात्रा में छोड़ सकेगा जो बांग्लादेश तथा भारत के लिए एक साथ समस्याएं लाने वाला होगा ।
ब्रह्मपुत्र नदी को भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और बांग्लादेश के लिए जीवन का आधार माना जाता है और लाखों लोग अपनी आजीविका के लिए इस पर निर्भर हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय नदियों के संदर्भ में चीन को भारत पर रणनीतिक बढ़त हासिल है। लोरी इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने तिब्बत के जल पर अपना दावा ठोका है, इससे वह दक्षिण एशिया में बैठने वाली 7 नदियों सिंधु गंगा ब्रह्मपुत्र इरावडी, सलवीन,यांगट्जी और मेकांग के पानी को नियंत्रित कर रहा है। ये नदियां पाकिस्तान, भारत बांग्लादेश, म्यांमार, लाओस और वियतनाम से गुजरती हैं। इनमें से 48% पानी भारत से होकर गुजरता है। यही नहीं चीन के इंजीनियर ऐसी योजना पर कार्य कर रहे हैं, जिसके माध्यम से ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह को मोड़कर अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे तिब्बत से शेनजियांग की तरफ 1000 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाकर उसके माध्यम से चीन के सबसे बड़े प्रशासनिक क्षेत्र सेनजियांग प्रांत के ताकालाकान रेगिस्तान में पानी पहुंचाया जा सके।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार ब्रह्मपुत्र नदी का पानी शिंजियांग प्रांत में जाने से वह कैलिफोर्निया की भांति हरे-भरे क्षेत्र में परिवर्तित हो जाएगा किंतु पर्यावरणविदों ने चीन के इस प्रयास को देखते हुए चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह को इस तरह से मोड़ने से हिमालय क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पढ़ने के साथ-साथ नदी के इकोसिस्टम पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
तिब्बत में तीखा मोड़ लेते हुए जहां यारलुंग नदी भारत में प्रवेश करती है उस ग्रेट बैंड वाले इलाके में यिगांग सांगपो, पारलुंसांगपो और यारलुंग में भारी बारिश होती है, जिससे यहां भूस्खलन और हिमस्खलन की घटनाएं घटित होने की संभावनाएं निरंतर बनी रहती हैं। इस क्षेत्र में हर साल कम से कम ऐसी 10 या इससे भी अधिक प्राकृतिक आपदाएं आने की आशंका रहती है। इसके अलावा मींडाग में भी हर साल ऐसी औसतन 12 से 15 आपदाएं आती है।
सबसे बड़ी चिंता तो पूर्वी हिमालय के एक बड़े हिस्से में भूकम्प को लेकर होती है। अगर भूकंप आता है तो इससे बांध टूटने या दूसरी ऐसी दुर्घटनाएं होने की आशंका बनी रहेगी जिसका व्यापक प्रभाव भारत के असम एवं अरुणाचल प्रदेश साथ ही साथ बांग्लादेश में भी देखने को मिल सकता है और वहां अचानक बाढ़ आ सकती है।
हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार भूस्खलन और अस्थाई झीलों से बांध को होने वाले खतरे ने प्रोजेक्ट में लगे इंजीनियरों को चिंता में डाल दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2018 में ग्लेशियर पिघलने से भूस्खलन के कारण ब्रह्मपुत्र नदी की ऊपरी धारा यारलंग त्सांगपो अवरुद्ध हो गई थी जिससे एक झील का निर्माण हो गया और इसमें 60 करोड़ घनमीटर पानी एकत्र है, जो नदी के ऊपर से बह रहा है। यह बांध को कभी भी तबाह कर सकता है। इसके साथ ही प्रस्तावित बांध निर्माण स्थल से कुछ दूरी पर कई और झील लबालब भरी हैं जो इसके लिए निरन्तर खतरा बनी हुई हैं। बांध को किसी प्रकार का नुकसान होने पर उसके असीमित अनियंत्रित जल से नीचे के क्षेत्र निश्चित रूप से अत्यधिक प्रभावित होंगे।
चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाए जाने वाले बांध तथा सुरंग के माध्यम से उसके पानी को सेन जियांग प्रांत में ले जाने से भारत को उपलब्ध होने वाले जल की मात्रा के अनियंत्रित हो जाने तथा नदी पर पूर्णरूपेण चीन के नियंत्रण से भारत के समक्ष अनेक प्रकार के खतरे उत्पन्न होने तथा उसके आर्थिक हित प्रभावित होने की पूर्ण आशंका है। जिसके दृष्टिगत भारत द्वारा चीनी सरकार के समक्ष अपना प्रबल विरोध दर्ज कराया गया है, किंतु अभीतक उसका कोई प्रभाव परिलक्षित नहीं हो रहा है। इसके प्रति उत्तर में भारत स्वयं असम में बांध बनाकर बिजली उत्पादन का कार्य प्रारंभ करने की योजना बना रहा है। जिससे संबंधित बांध में एकत्रित जल आवश्यकता अनुसार पानी तो उपलब्ध ही कराएगा, साथ ही चीन द्वारा छोड़े गए जल को भी आत्मसात कर उसे नियंत्रित करेगा।
निश्चित रूप से भारत का यह कदम उसकी सुरक्षा एवं आवश्यकता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, किंतु इस पर अभी तक चीन द्वारा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई। यदि चीन द्वारा किसी प्रकार की विपरीत प्रतिक्रिया व्यक्त भी की जाती है तो भारत को उसे दरकिनार कर निश्चित रूप से अपनी सुरक्षा हेतु बांध का निर्माण करना ही चाहिए। जिससे चीन निर्मित बांध द्वारा उत्पन्न समस्याओं का समाधान त्वरित गति से समय रहते प्राप्त किया जा सके और जाने-अनजाने चीन द्वारा उत्पन्न किसी प्रकार की समस्या से क्षति न उठानी पड़े।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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