असली स्वच्छता… रिश्तों की गंदगी साफ करने में भी जुटा इंदौर का प्रशासन…
स्वच्छता का एक और तमगा जो किसी सरकार के ऐलान से नहीं पाया… जिसके लिए किसी प्रतिस्पर्धा का मंच नहीं सजाया… जिसे चुनौती देने कोई बाहरी नहीं आया… बस बेबस आंखों में आंसू देखे और प्रशासन ने जज्बा जगाया… रिश्तों की गंदगी मिटाने का ऐसा बीड़ा इंदौर ने उठाया कि कई रोती हुई माताओं को उनका परिवार मिल पाया… बेटों को उनका कत्र्तव्य समझ में आया… बहुओं को रिश्तों का पाठ पढ़ाया… बेबस बुजुर्गों को उनका अधिकार दिलाया… जिसका कोई नहीं प्रशासन उसका अपना बनकर आगे आया… माफियाओं के लिए क्रूर बने इंदौर कलेक्टर ने जहां दुष्टों को रौंदकर वर्षों से अपने अधिकारों के लिए तरसते लोगों को अधिकार दिलाकर कानून का फर्ज निभाया, वहीं रिश्तों का खून कर रहे अपनों को उनका फर्ज याद दिलाकर उनकी संवेदनशीलता को जगाकर देवी अहिल्या की नगरी की संस्कृति और पुण्याई का दीप भी जलाया… इस पहल की शुरुआत प्रेस कॉम्प्लेक्स के सामने स्थित शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में स्थित एक दुकान की बुजुर्ग मालकिन से हुई, जिसके पति की मौत के बाद किराएदार ने कब्जा कर न तो किराया दिया और न ही दुकान खाली की… बुजुर्ग महिला की शिकायत सुनते ही कलेक्टर ने ताबड़तोड़ दुकान का कब्जा जब बुजुर्ग महिला को दिलाया तो शहरभर से उठी दुआओं की आवाजों ने हर दुखियारे बुजुर्गों के लिए प्रशासन के दरवाजे खोल दिए… हर जनसुनवाई में कोई न कोई बुजुर्ग महिला आती है… अपना दु:ख-दर्द सुनाती है और प्रशासन की टीम उसके आंसू पोंछने में लग जाती है… जज्बाती मसले समझाइश से सुलझाए जाते हैं… बहू-बेटों से प्रताडि़त बुजुर्गों को घर दिलाए जाते हैं… अधिकारों से वंचित लोगों को इंसाफ दिलाए जाते हैं… बेसहारा और कमजोर समझकर संपत्ति हड़पने वाले लोग जेल भिजवाए जाते हैं… भाई-बहनों के रिश्ते को राखी के बंधन याद दिलाए जाते हैं… अहिल्या की नगरी का दस्तूर निभाते शहर में अब रिश्तों के खून भी साफ किए जा रहे हैं… स्वच्छता का यह अभियान हर दिन समाचार पत्रों की रौनक बन रहा है… इंदौर पूरे शहर से कुछ अलग ही पहचान और परिचय के साथ आगे बढ़ रहा है…
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