नई दिल्ली: दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का सर्वर सोमवार यानी लगातार 6वें दिन भी डाउन रहा. जिसके चलते मरीजों को तमात दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. वहीं, खबर आ रही है कि सर्वर को हाईजैक (hijack the server) करने वाले हैकर्स ने क्रिप्टोकरेंसी में 200 करोड़ रुपए की मांग की है. बताया जा रहा है कि हैकर्स ने यह मांग मेल के जरिए एम्स (AIIMS) को भेजी है. साथ ही धमकी दी है कि उनकी मांग को पूरा न करने पर वो सर्वर को ठीक नहीं करेंगे और सर्वर डाउन (server down) ही रहेगा.
वहीं, दिल्ली पुलिस मामले की तफ्तीश में जुट गई है. पुलिस कड़ी से कड़ी जोड़कर हैकर्स के कॉलर तक पहुंचने में लगी है. साथ ही पुलिस धमकी भरे मेल का आईपी एड्रेस भी ट्रैक करने की कोशिश कर रही है. कर्मचारियों को पुराने जमाने की तरह मरीजों का काम करने के लिए कागज-कलम का सहारा लेना पड़ा. साइबर सुरक्षा हमले के डर के बीच, सभी इमरजेंसी और सामान्य सेवाएं, प्रयोगशाला आदि का काम कागज-कलम की मदद से हो रहा है. आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी मोचन टीम, दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय के प्रतिनिधि लगातार इस मामले में काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) भी इस जांच में शामिल हो गया.
दिल्ली के एम्स (AIIMS),का सर्वर अभी भी ठप पड़ा है. ई-हॉस्पिटल सर्वर डाउन (E- Hospital Server) होने के कारण ओपीडी (OPD) सहित कई सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं. दरअसल, साइबर हमले के बाद इसे हैक करने वालों ने 200 करोड़ के क्रिप्टोकरेंसी की मांग की है. बीते कुछ दिनों से लगातार कई खबरें सुर्खियों में रही है कि क्रिप्टोकरेंसी के नेटवर्क को भी हैक कर करोड़ों रुपए का गबन किया गया है. अब सवाल उठता है कि आखिर हैकर्स ने क्रिप्टोकरेंसी की मांग क्यों की?
क्रिप्टोकरेंसी या वर्चुअल करेंसी को डिजिटल करेंसी भी कहा जाता है, जिसे एन्क्रिप्शन टेक्नोलॉजी की सहायता से जनरेट किया जाता है और उसके बाद रेगुलेट भी किया जाता है. इस तरह की करेंसी को दुनिया के किसी भी केंद्रीय बैंक की ओर से मान्यता नहीं मिली हुई है ना ही यह किसी केंद्रीय बैंक की ओर से रेगुलेट होती है. इस तरह की करेंसी पर किसी भी देश की मुहर भी नहीं लगी होती है. इसे एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करते हैं, जिस तरह से गोल्ड और सिल्वर की अपनी एक कीमत होती है और इंटरनेशनल मार्केट के आधार पर इसकी कीमत में उतार चढ़ाव होता है. डॉलर की वैल्यू अमेरिकन इकोनॉमी से जुड़ा हुआ है. इसके विपरीत बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी की अपनी कोई वैल्यू नहीं होती है. इसका यूज सट्टे के लिए होता है और इसी के आधार पर इसके दाम में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है.
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