उज्जैन। शिप्रा को शुद्ध करने के लिए पिछले 40 सालों से करोड़ों रुपए की राशि ली जा रही है और शिप्रा में न तो गंदे नालों की निकासी बंद हुई और न ही पानी स्वच्छ हुआ..हालत यह है कि आज भी शिप्रा का पानी आचमन योग्य नहीं हैं। जल संसाधन विभाग द्वारा शासन से फिर साढ़े 600 करोड़ रुपए की मांग की है और यह राशि आने वाले दिनों में मिल जाएगी लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जनता की कमाई का यह पैसा क्या सही हाथों से खर्च होगा और क्या ईमानदारी से शिप्रा की शुद्धता के लिए काम किया जाएगा..जवाब है नहीं और इस राशि की भी बंदरबांट होगी तथा भ्रष्ट इसे खा जाएँगे। कोरोना के बाद उज्जैन में विकास कार्यों की बात तो हर जनप्रतिनिधि कर रहे हैं लेकिन इन कामों को कराने के लिए सरकार बजट नहीं भेज रही है। ऐसे में यह काम या तो शुरू ही नहीं हो पाए हैं और जो शुरू हो गए हैं वह पूरे नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में सरकार से उज्जैन को 1 हजार करोड़ रुपए से अधिक का बजट मिलेगा तभी यह विकास के काम गति नहीं पकड़ पाएंगे नहीं तो सिर्फ घोषणा और आश्वासन की राजनीति चलेगी।
उज्जैन में विकास के कार्यों की बात की जाए तो अधोसंरचना के सबसे अधिक विकास करने वाली संस्था नगर निगम में नाले नाली से लेकर सड़क और अन्य छोटे-बड़े विकास कार्य किए जाते हैं। नगर निगम की हालत यह है कि ठेकेदारों को उन्हें 100 करोड़ रुपए देना है और 150 करोड़ रुपये शहर के मेंटेनेंस तथा विकास कार्यों को निर्बाध गति से चलाने के लिए चाहिए। यह तो नगर निगम की बात है, इसके अलावा शहर में फ्रीगंज के बड़े पुल के पास समानांतर ब्रिज बनाना है, इसके लिए लोक निर्माण विभाग को 90 करोड़ रुपये चाहिए। इस काम की फाइल पिछले 6 महीने से राज्य शासन के पास पड़ी है। अभी तक स्वीकृति नहीं आई है, वहीं बड़े कामों में शिप्रा शुद्धिकरण के लिए बनाई गई नहर परियोजना में 626 करोड़ रुपए उज्जैन को चाहिए लेकिन अभी तक इसकी भी स्वीकृति नहीं हो पाई है। इस प्रकार छोटे-बड़े विकास कार्यों के लिए 1 हजार करोड़ रुपए की राशि तो आवश्यक रूप से चाहिए, वहीं अंडर पास और शहर के अन्य ओवरब्रिज तथा अन्य कार्यों का बजट तो अलग ही है। नगर निगम में ढाई सौ करोड़ की राशि लाने के संबंध में जब महापौर मुकेश टटवाल से बातचीत की गई तो उनका कहना था मैंने अधिकारियों से मद्वार राज्य शासन से कितने बजट की स्वीकृति कराना है, उसकी पूरी जानकारी मांगी है।
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