– ऋतुपर्ण दवे
श्मशान में भी बेशर्म भ्रष्टाचार! सुनने में थोड़ा अजीब लगता है लेकिन हकीकत यही है। इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे जब श्मशान में मृतक की अंत्येष्टि के दौरान लोग धूप-पानी से बचने की खातिर बनी नई-नई गैलरी में खड़े हों, ठीक उसी समय भ्रष्टाचारियों की करतूत यमदूत बनकर आए और श्मशान में ही लोगों को मौत की नींद सुला जाए। ऐसा सिर्फ हमारे देश में भ्रष्टाचारियों पर सरपरस्ती के चलते ही हो सकता है और हुआ। देश में न जाने कितनी इससे मिलती-जुलती घटनाएं हो चुकी हैं लेकिन गाजियाबाद के मुरादनगर के उखलारसी गाँव की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
लोग आए तो थे मृतक का अंतिम संस्कार करने लेकिन भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढ़कर एक-दो नहीं पूरे 27 लोगों ने जिस छत के नीचे बारिश से बचने का ठौर बना रखा था, वही भारी-भरकम छत मौत बन उनपर भरभरा कर गिर गयी। श्मशान में ही मौत का ताण्डव मच गया। हैरानी इस बात को लेकर और भी ज्यादा होती है कि ऐसी घटना उस महानगर में घटी जहाँ गगनचुंबी इमारतों की भरमार है। बड़े-बड़े निर्माण कार्यों में दक्षता की कमी नहीं है। उसी कंक्रीट के शहर में महज 20 फुट ऊंची तथा 70-80 फुट लंबी कंक्रीट की गैलरी बिना किसी आहट, सुगबुगाहट या संकेत के एकदम से भरभरा कर बैठ जाए और चारों तरफ चीख-पुकार, खून ही खून फैल जाए और बेसुध-बेजान लोगों के ढेर लग जाए। सच में उखलारसी गाँव के श्मशान में ऐसा ही हुआ। जानते है क्यों? क्योंकि यह एक सरकारी काम था जो ठेके पर बना था और ठेकेदार को भी क्वालिटी की परवाह नहीं थी, वजह साफ है भरपूर कमीशनबाजी का खेल था। लेकिन श्मशान में भी ऐसा खेल खेला जाएगा यह किसी को नहीं पता था!
भ्रष्टाचार के अनगिनत किस्से-कहानियों में श्मशान में ऐसा पहली बार दिखा। पूरे देश में हर किसी की रुह काँप गई। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री भी द्रवित और दुखी हो गए। वाकई मुरादनगर की 3 जनवरी की घटना शायद देश के इतिहास की अबतक पहली अकेली घटना बन गयी जिसने बेईमानी की सारी सीमाओं को पार कर लोगों को हिलाकर रख दिया। यह नहीं पता था कि भ्रष्टाचार के सौदागर जलती चिता के सामने भी अपनी काली करतूतों को अंजाम देने से नहीं हिचकेंगे। ऐसा नहीं होता तो मुरादनगर की यह घटना कभी नहीं होती। उससे भी बढ़कर यह कि श्मशान में इस ठेके लिए भी राजनीतिक सिफारिशें हुईं, होड़ भी हुई अपनों को फायदा पहुँचाने का खेल भी हुआ। नतीजतन मौत का वो नंगा नाच हुआ कि एकबार यमराज भी थरथरा जाए।
60 साल पहले इन्दौर में एक पदयात्रा के दौरान सर्वोदयी नेता आचार्य विनोबा भावे के मुँह से निकले शब्द आज भी न केवल प्रासंगिक हैं बल्कि गूँजते हुए से लगते हैं जिसमें उन्होंने पीड़ा भरे लहजे में कहा था आजकल भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार है। यकीनन उस महान संत का दर्द कहें या पीड़ा, 21 वीं सदी में भी भ्रष्टाचारी ही फलफूल रहे हैं। ऐसा ही कुछ 21 दिसम्बर 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई बहस में डॉ. राममनोहर लोहिया ने भी कहा था कि सिंहासन और व्यापार के बीच का संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है। शायद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी भी ऐसा ही कुछ कहना चाहते थे। दिल्ली से चले एक रुपए में गरीब तक 15 पैसे ही पहुँच पाते हैं, कहना उनकी बेबसी थी या गुस्सा पता नहीं।
सच तो यह है कि देशभर में ऐसे कितने उदाहरण मिल जाएंगे जहाँ कागजों में तालाब बन जाते हैं, विभिन्न योजनाओं में कुएं खुद जाते हैं। उद्घाटन से पहले पुल ढह जाते हैं। बनते ही सड़कें नेस्तनाबूद हो जाती हैं। हो-हल्ला होने पर जाँच की घोषणा हो जाती है लेकिन रिपोर्ट कब और क्या आती है, किसी को कानोंकान खबर नहीं होती। भ्रष्टाचार के आरोपी फलते-फूलते रहते हैं।
भ्रष्टाचार रुके कैसे? एक ओर तेजी से डिजिटलाइजेशन, वहीं दूसरी ओर बढ़ता भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और दलाली की प्रवृत्ति। वह भी जब सीधे खातों में योजनाओं का लाभ पहुंचाया जा रहा हो। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर-एशिया सर्वे 2020 यही कुछ कह रहा है। इसमें भारत को एशिया का सबसे भ्रष्ट देश बताया गया, जहाँ रिश्वतखोरी जमकर होती है। रिपोर्ट कहती है कि 39 प्रतिशत लोगों को उनके हक की और स्वीकृत सुविधाओं को पाने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है। जिसका चलन डिजिटल दौर में बजाए घटने के बढ़ता जा रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए इससे बुरी बात और क्या हो सकती है? कहीं न कहीं यह हमारे सिस्टम की नाकामी है। दोष किसका है किसका नहीं, यह लंबी और तर्क-कुतर्क भरी बहस का विषय है।
यूँ तो देश में भ्रष्टाचार रोकने के लिए कई तरह के कानून और एजेंसियाँ हैं। लंबा-चौड़ा अमला भी है। एक से एक आदर्श वाक्य और सूत्र भी हैं। लेकिन सच यह है कि भ्रष्टाचार सुरसा-सा मुँह फाड़े चला जा रहा है। देश में चाहे निर्माण सेक्टर हो या औद्योगिक गतिविधियाँ, टैक्स चोरी रोकना हो या उत्खनन, चिकित्सा, शिक्षा, बैंकिंग, परिवहन या फिल्म उद्योग यानी देश में हर कहीं हर सरकारी दफ्तर में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरे तक पैठ जमा चुकी हैं। ठेका हो या कोई अनुमति, निर्माण हो या जल, जंगल, जमीन का मसला हर कहीं भ्रष्टाचार का बेशर्म चेहरा दिख जाता है। जेब गरम होते ही सारे रुके काम आसानी से हो जाते हैं, भले ही रास्ता डिजिटल मोड में क्यों न हो। ऐसे में सवाल यही कि कैसे रुकेगा भ्रष्टाचार?
निश्चित रूप से देश को दुनिया के मुकाबले शीर्ष पर ले जाने का सपना संजोए हमारे प्रधानमंत्री भी इसपर बेहद गंभीर होंगे लेकिन रास्ता कैसा होगा, तय नहीं हो पा रहा होगा। काश वन नेशन वन राशनकार्ड की तर्ज पर एक ऐसा वन नेशन वन इंफर्मेशन पोर्टल बने जिसमें तमाम देश यानी केन्द्र और प्रदेशों के हर कार्यों जैसा ठेका, इजाजत, स्थानान्तरण, सरकारी गतिविधियों संबंधी सूचना की एक-एक जानकारी की फीडिंग तो की जा सके लेकिन इस पोर्टल की सारी जानकारियाँ केवल प्रधानमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री ही देख सकें। उनकी बेहद विश्वस्त लोगों की एक टीम हो जो अचानक किसी भी काम की जाँच के लिए न केवल स्वतंत्र हो बल्कि एनएसए जैसे सख्त कानूनों से लैस हो। दोषी होने पर जल्द जमानत या सुनवाई का प्रावधान भी न हो और सीधे जेल की काल कोठरी का रास्ता हो। शायद यही डर और गतिविधि से पंचायत से लेकर महापालिकाओं और सरपंच के दफ्तर से लेकर कमिश्नरी और सचिवालय तक में भ्रष्टाचार को लेकर भय का माहौल बनेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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