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नई ‘भारतीय-भाषा’ बनाइए, भाषा का झगड़ा मिटाईए।

January 31, 2025

नई दिल्ली. भारत (India) की राष्ट्रीय एकता (National Unity) को बढ़ावा देने हेतु संदेश देते हुए, वर्तमान नामधारी मुखी (Namdhari Mukhi) ठाकुर दलीप सिंघ जी (Thakur Dalip Singh Ji) ने कहा कि भारत को “विश्व गुरु” बनाने के लिए तथा राष्ट्र की तरक्की करने के लिए; हिन्दी तथा दक्षिणी भाषाओं का झगड़ा मिटाने की आवश्यकता है; तभी भारतवासी एक हो कर, उन्नति कर सकते हैं। सब जानते हैं कि जहां पर भी झगड़े होते हैं; वहां पर उन्नति रुक जाती है तथा देश की हानि होती है। इस कारण, भारतीयों में एकता करवाने के लिए, भारतीय जनता को आगे आने की आवश्यकता है। राष्ट्र की तरक्की करने के लिए, झगड़े मिटाकर एकता होनी चाहिए।

हिन्दी तथा अन्य भाषाओं का आपसी झगड़ा मिटाने के लिए, नामधारी ठाकुर जी ने सर्वोत्तम व सरल उपाय बताया कि सभी भारतीय आपस में मिल कर, भारत में उपजी भाषाओं के शब्द मिला कर, एक नई भाषा बनाएं जैसे: संस्कृत, हिंदी, मलयालम, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, बंगाली आदि। इस नई भाषा में उर्दू, फारसी जैसी विदेशी भाषाएं, जिन की लिपि तथा मूल विदेशी है: उन के शब्द शामिल नहीं किए जाएंगे। उस भाषा का नाम भारतीय भाषा रखें। उस भारतीय भाषा को धीरे-धीरे सभी अपना लें: परंतु, भाषा पर झगड़ा करना सदा के लिए बंद कर दें। सभी भारतीय भाषाओं के शब्द सम्मिलित होने के कारण, इस नई भाषा पर किसी को भी कोई आपत्ति नहीं हो सकती। इस प्रकार से, पूरे भारत की एक ही भाषा होगी और वह राष्ट्रभाषा भी बन
जाएगी। परंतु, इस के लिए, जनता की आपसी सहमति अत्यंत आवश्यक है।

नामधारी ठाकुर जी ने भारतवासियों को प्रेरित करते हुए कहा कि भाषाओं का झगड़ा समाप्त करने का कार्य, भारतीय जनता ही आपस में मिल कर, कर सकती है; नेता लोग नहीं कर सकते। क्योंकि, जनता को तो झगड़ा मिटा कर शांति स्थापित करनी है तथा देश की तरक्की करनी है। इस लिए, ठाकुर जी ने विनती करते हुए कहा “आइए! हम सब मिलकर एक नई “भारतीय भाषा का आविष्कार करें, जिस में सभी भारतीय भाषाओं के शब्द सम्मिलित हों”। हिंदी, तामिल, मलयालम, कन्नड़, उड़िया का झगड़ा मिटाइए। भारतीय भाषाएं मिलाकर नई भारतीय- भाषा बनाइए।

ठाकुर जी ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा कि सभी को ज्ञात है कि स्वतंत्रता के उपरांत, आज तक भारत की कोई भी, एक राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयत्न 1947 से ही सभी पार्टियों की सरकारें करती रही हैं, परंतु दक्षिण वाले, हिंदी को प्रवान नहीं करते हैं। सहमति ना होने के कारण ही, किसी को भी सफलता प्राप्त नहीं हुई। विदेशी भाषा ‘अंग्रेजी’ का प्रयोग कर के, सभी प्रांतों के आपसी पत्राचार होते हैं तथा सभी न्यायालयों में आज भी अंग्रेजी से ही कार्य होता है। विदेशी गुलामी का कलंक चिन्ह अंग्रेजी भाषा को, जब तक भारतवासी नहीं छोड़ते; तब तक सही रूप में स्वतंत्र नहीं हो सकते। विदेशी भाषा को पूर्ण रूप से त्यागने के लिए, भारतीयों को अपनी ही एक सर्वमान्य (सभी को प्रवान होने वाली) राष्ट्रभाषा चाहिए। जिन दक्षिणी प्रांतों के लोग, हिंदी को राष्ट्रभाषा प्रवान नहीं करते; उन सभी दक्षिणी प्रांतों की भाषाओं में बहुत शब्द ऐसे हैं, जो
हिंदी, संस्कृत तथा बाकी भारतीय भाषाओं से भी मिलते हैं। जैसे: करुणा, गुरु, धर्म, दया, नगर, माँ, शास्त्र, अर्थ, रक्त, वर्ष, तिथि, लिंग, संधि, स्वतंत्र आदि। इस कारण, इन सभी भाषाओं के शब्दों को मिला कर, एक नई “भारतीय भाषा” बन सकती है, जो सर्वमान्य हो सकती है। जब सब लोग दक्षिणी प्रांतों की भाषाओं को, नई "भारतीय भाषा” में स्थान देंगे और उन भाषाओं के शब्दों का प्रयोग, हिंदी-भाषी लोग भी आरंभ कर देंगे: तो वह लोग भी उत्तरी-भाषाओं के तथा हिंदी के शब्दों को अपनाना आरंभ कर देंगे।

अंत में, नामधारी ठाकुर दलीप सिंघ जी ने कहा कि यदि नई भारतीय भाषा बना कर, उस को लागू नहीं किया गया, तो भारत में अंग्रेजों की गुलामी, उनकी भाषा के रूप में, सदा के लिए चलती ही रहेगी। इस लिए, भारतवासियों को विचार करना चाहिए कि भारत में गुलामी का कलंक चिन्ह: ‘विदेशी-अंग्रेजी-भाषा’ रखनी है: या उस ‘गुलामी-चिन्ह’ से मुक्त हो कर, अपनी नई भाषा बना कर; पूर्ण रूप से स्वतंत्र होना है।

जय भारत।
नामधारी सिख

 

 

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