कोच्चि। कहते हैं जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होता है, इसी तरह आज के समय में अगर किसी को न्याय न मिले तो उसके लिए कोर्ट खुद पहल करती है और न्याय दिलाती है। इसी तरह की केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने की है। आकस्मिक मौत या चोट या फिर हत्या के हर मामले को कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के तहत आयुक्त और औद्योगिक न्यायाधिकरणों के संज्ञान में लाने की व्यवस्था की पड़ताल कर रहा है। ताकि वे अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पीड़ित परिवारों को आर्थिक राहत प्रदान कर सकें।
इसी जांच पड़ताल में केरल हाईकोर्ट के जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस जियाद रहमान की पीठ ने रात में पहरा देने वालों (नाइट वॉचमैन) की हालत पर गौर करने के बाद इस मुद्दे पर खुद एक याचिका लगाई है।
गौरतलब है कि नाइट वॉचमैन आमतौर पर बिना अच्छे बचाव उपकरण और कम वेतनमान के साथ काम करते हैं। अगर इस दौरान वे मारे जाते हैं तो गुनहगाहों के दोषी ठहराये जाने पर ही उन्हें थोड़ा-बहुत मुआवजा मिलता है।
कोर्ट ने कहा कि ये ‘दुर्बल’ लोग रात में दुकानों और एटीएम मशीनों पर ‘अप्रभावी’ ढंग से तैनात रहते हैं, जबकि इनके मालिक भव्य मकानों में सो रहे होते हैं। इस कमजोर हालत में नौकरी करते हुए जब कोई पहरेदार मारा जाए और आरोपी बरी हो जाता है तो पीड़ित परिवार न सिर्फ सड़क पर आ जाता है, यहां तक कि उसके पास मुआवजा पाने के लिए कोई साफ जरिया नहीं होता।
इस पर पीठ ने यह भी माना कि केवल सिक्योरिटी गार्ड ही नहीं बल्कि अन्य रोजगारों में भी आकस्मिक मौत या चोट का मामला संबंधित आयुक्तों के ध्यान में लाने को लेकर व्यवस्था नहीं है ताकि वे कानून के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर सकें।
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