नई दिल्ली (New Delhi)। दिल्ली की एक अदालत (a court in Delhi) ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का ऋण नहीं चुकाने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ वसूली के मुकदमे को खारिज कर दिया जिसकी मृत्यु हो चुकी है. अदालत ने कहा कि किसी भी बैंक से और देश का अग्रणी बैंक (leading bank) होने के नाते खासकर एसबीआई से यह अपेक्षा की जाती है कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से कदम उठाएगा कि जिन लोगों के खिलाफ उसने मुकदमा दायर किया है वे मृत हैं या जीवित. जिला न्यायाधीश सुरिंदर एस राठी प्रतिवादी सिया नंद के खिलाफ ब्याज सहित लगभग 13.51 लाख रुपये की वसूली के लिए एसबीआई द्वारा दायर एक मुकदमे पर सुनवाई कर रहे थे.
अदालत ने पहले बैंक से प्रतिवादी के बारे में जांच करने को कहा, जिसके बाद यह पता चला कि मुकदमा दायर करने से दो साल पहले नंद की मृत्यु हो गई थी. इसके बाद उसने झूठा हलफनामा देने के लिए संबंधित शाखा प्रबंधक को नोटिस जारी किया और महाप्रबंधक (कानून, वसूली और मुकदमा) को नोटिस भेजकर यह बताने को कहा कि बैंक ने एक मृत व्यक्ति पर मुकदमा दायर करने का फैसला क्यों किया?
अदालत ने दो नवंबर को एक आदेश में कहा, ‘इसके जवाब में एसबीआई ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है और अदालत को आश्वासन दिया है कि वह इस संबंध में मौजूदा आंतरिक परिपत्र का अनुपालन नहीं करने के लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई कर रहा है.’ अदालत ने कहा कि बैंक द्वारा अपनाई जा रही मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) में ऐसा कुछ भी नहीं बताया गया है कि कैसे पता लगाया जाए कि जिस प्रतिवादी पर मुकदमा चलाने की मांग की गई है, वह मृत है या जीवित.
अदालत ने यह भी कहा कि एसबीआई ने अदालत के इस सुझाव को स्वीकार कर लिया है कि उसके मुकदमा अधिकारी जन्म एवं मृत्यु के मुख्य रजिस्ट्रार से आंकड़े जुटाएंगे. शाखा प्रबंधक द्वारा मांगी गई बिना शर्त माफी को ध्यान में रखते हुए न्यायाधीश ने उन्हें जारी किए गए नोटिस को खारिज कर दिया और कहा, ‘एसबीआई हमारे देश में अग्रणी राष्ट्रीयकृत बैंक है और दक्षता, पेशेवर रुख, पारदर्शिता एवं नैतिकता के पथप्रदर्शक के रूप में बैंकिंग उद्योग का नेतृत्व करेगा.’
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