मुंबई (Mumbai) । सपनों में जीना तो आसान होता है, लेकिन सपनों को जीना मुश्किल। इसी मुश्किल को आसान किया है पंकज घाटगे (Pankaj Ghatge) और अमृता शिंदे (Amrita Shinde) ने। इस एक जोड़े ने महाराष्ट्र (Maharashtra) के सुदूर गांव (Village) में जाकर कई लोगों की जिंदगी में बदलाव की शुरुआत की है। मुंबई की एक एडवरटाइजिंग कंपनी में बढ़िया सी नौकरी, बंधी-बंधायी सैलरी, मालाड के पॉश इलाके में फ्लैट, ऐसी लाइफ स्टाइल छोड़कर भला कौन इगतपुरी के पास पहाड़ों के बीच बसे छोटे से गांव जाना चाहेगा। अब अगर इसे इस तरह से देखा जाए, तो जीवन सुनने में कैसा लगेगा कि पहाड़ों के बीच बना एक फार्म स्टे, बड़ा सा घर, खुला आसमान, साफ हवा, ऑर्गेनिक सब्जियां और सुकून भरी जिंदगी।
इलाके की तस्वीर और तकदीर बदलने में जुटा कपल
साल 2009 में पंकज अपनी नौकरी छोड़कर मुंबई से 160 किलोमीटर दूर कसारा घाट के पास अवाटा गांव में बस गए। इसके 2 साल बाद उनकी पत्नी अमृता भी पीछे-पीछे चली आईं। अब पति-पत्नी इस इलाके की तस्वीर और तकदीर बदलने में जुटे हैं। दरअसल, पंकज एडवरटाइजिंग करियर के दौरान इस इलाके में आते-जाते रहते थे। यहां वह भी मेडिकल कैंप लगाते, तो कभी कोई दूसरी ऐक्टिविटी करते। इससे हुआ यह है कि जब वह यहां रहने पहुंचे, तो गांववालों को भरोसा जीतना उनके लिए मुश्किल नहीं रहा। लोग आसानी से उनके साथ हो लिए और अपना भविष्य उनके हाथ सौंप दिया।
बारिश बहुत होती है, पानी रुकता नहीं
यह पहाड़ी इलाका है। यहां बहुत बारिश होती है। मॉनसून में घरों से निकलना भी मुश्किल हो जाता है, लेकिन बारिश का मौसम बीतने के बाद पानी की किल्लत शुरू हो जाती है। गांव से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर वैतरणा नदी है। यहां का पानी मुंबईकरों की प्यास बुझाता है, लेकिन जैसी की कहावत है ‘भरे समुद्र में घोंघा प्यासा’, वही स्थिति यहां के लोगों की है। नदी के किनारे बसे गांव में पीने के पानी का संकट है। हालांकि, पंकज इस समस्या पर काम कर रहे हैं। खास बात यह है कि यहां बिजली भी 7 साल पहले ही पहुंची है।
बदला खेती का तरीका, बढ़ी कमाई
पंकज बताते हैं कि जब वह यहां आए थे, तब तक लोग पारंपरिक खेती ही किया करते थे। उन्होंने यहां के लोगों को काले चावल की खेती सिखाई, जिसके बाद किसानों की आमदनी बढ़ गई। इससे पहले ज्यादातर किसान या तो जमीन बेचकर घर चलाते थे या फिर बाहर गांव काम करने जाते थे। गांव के युवा शहरों में कैटरिंग का काम करते हैं, लेकिन वह सीजनल होता है और साल में कमाई के 2-3 महीने ही बसर हो पाती है।
प्रतिभा थी, सिर्फ निखारने का काम किया
कई दफा इंसान को अपनी क्षमता का अंदाजा नहीं होता है। कई बार लोगों को एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत होती है, जो उनका नेतृत्व कर सके। अवाटा गांव के लोगों को पंकज के रूप में वही सेनापति मिल गया है, जिसकी दम पर वे कोई भी किला फतह कर सकते हैं। आज पंकज के साथ सिर्फ अवाटा ही नहीं, आस-पास के गांव के दर्जनों लोग जुड़े हैं। ये पशु पालन करते हैं, चीज बनाते हैं, साबुन बनाते हैं, शहद तैयार करते हैं और इससे कमाते हैं। पंकज सिर्फ उनके प्रॉडक्ट को मार्केट देने का काम करते हैं।
शुद्ध सात्विक है पंकज-अमृता का फार्म स्टे
मुंबई में रहने के दौरान पंकज-अमृता ने तय किया था कि जब भी माता-पिता बनेंगे, बच्चे शहर में पैदा नहीं करेंगे। वजह थी दूषित हवा-पानी। इसीलिए, दोनों ने गांव को चुना और लगभग बंजर जमीन खरीदी। आज यहां हरियाली है। दोनों ने यूट्यूब से खेती सीखी और सब्जियां उगाईं। अब यह अच्छा-खासा फार्म स्टे बन चुका है। यहां शराब और शोर-शराबा एकदम प्रतिबंधित है। पंकज का कहना है कि लोग अगर शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से ऊबकर शांति की तलाश में आते हैं, तो उन्हें हम वही देने की कोशिश करते हैं।
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