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    देशव्यापी हुआ अश्लीलता का कारोबार

  • November 19, 2021

    – प्रमोद भार्गव

    बच्चों के यौन शोषण और उससे संबंधित सामग्री को सोशल मीडिया पर परोसने और प्रसारित करने के मामले में 83 लोगों के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो ने बड़ी कार्यवाही की है। देश के 14 राज्यों के 76 ठिकानों पर सघन तलाशी अभियान चलाया गया। इस मुहिम से पता चला है कि लगभग पूरे देश में अश्लीलता का यह जंजाल नशे के कारोबार की तरह फैल गया है। यही नहीं अनेक महाद्वीपों में फैले सौ देशों के नागरिक इस गोरखधंधे में शामिल हैं। शहर तो शहर मध्य-प्रदेश के डबरा तहसील के ग्राम अकबई में भी बाल यौन शोषण से जुड़ी अश्लील फिल्में बनाने का कारोबार फैल चुका है। यह अत्यंत चिंता का विषय है। 31 सदस्यों वाला व्हाट्सएप समूह जांच का मुख्य केंद्र बिंदु है। इन आरोपियों को सूचीबद्ध तो कर लिया है, किंतु ताकतवर होने के कारण कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। यही लोग यौन फिल्में बनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते थे, निर्माताओं को शुल्क देने के साथ सामग्री को प्रसारित व साझा करने का काम भी करते थे।

    पोर्न फिल्में बनाने और उन्हें अनेक सोशल साइट व एप पर अपलोड करने के मामले में पिछले दिनों प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा को भी मुंबई पुलिस ने हिरासत में लिया था। वे अश्लील फिल्में बनाने, बेचने और इससे धन कमाने के धंधे में शामिल थे। तीन महिलाओं ने उनके विरुद्ध शिकायत की थी। किराए के बंगले में राज कुंद्रा की कंपनी और उनके सहयोगी फिल्में बनाते थे। कुंद्रा की कंपनी ने एप बनाया और इसे ब्रिटेन में एक रिश्तेदार के नाम से रजिस्टर्ड कंपनी केनरिन को बेच दिया था। कुंद्रा के साथ काम करने वाली कुछ लड़कियां अंतरराष्ट्रीय पोर्नोग्राफी गिरोह के शिकंजे में भी पाई गई थीं। इस मामले में कुंद्रा को पोर्न फिल्म रैकेट का मुख्य साजिशकर्ता माना है। इससे पता चलता है कि फिल्म, टीवी, सोशल मीडिया और आईटी कंपनियों की अनेक हस्तियां इस नीले कारोबार से जुड़ी हैं।

    मोबाइल व कंप्यूटर पर इंटरनेट की घातकता का दायरा निरंतर बढ़ रहा है। कुछ समय पहले सीबीआई ने बच्चों के अश्लील वीडियो और फोटो बेचने वाले एक अंतरराष्ट्रीय रैकेट का पर्दाफाश किया था। इस मामले में मुंबई के एक टीवी कलाकार को भी गिरफ्तार किया गया था। जांच एजेंसी के अनुसार आरोपी ने अमेरिका, यूरोप और दक्षिण एशियाई देशों में एक हजार से अधिक लोगों को ग्राहक बनाया हुआ था। वह अश्लील सामग्री को सोशल साइट इंस्टाग्राम पर भेजकर मोटी कमाई करता था। किशोर बच्चों को अपने जाल में फंसाने के लिए फिल्मी स्टार के रूप में पेश आता था। ये गतिविधियां ऑनलाइन जुड़कर अंजाम तक पहुंचाई जाती थी। सीबीआई ने इसे पास्को एक्ट व अन्य धाराओं के अंतर्गत गिरफ्तार किया है। दिल्ली में भी इसी प्रकार की घटी एक घटना में 27 किशोर दोस्त सोशल मीडिया के इंस्टाग्राम पर एक समूह बनाकर अपने साथ पढ़ने वाली छात्राओं के साथ सामूहिक बलात्कार की षड्यंत्रकारी योजना बना रहे थे। ये सभी दक्षिण दिल्ली के महंगे विद्यालयों में पढ़ते थे। 11वीं व 12वीं के छात्र होने के साथ अति धनाढ्य परिवारों से थे। साफ है, स्मार्ट मोबाइल में इंटरनेट और सोशल साइट्स बच्चों का चरित्र खराब करने का बड़ा माध्यम बन रही हैं और इस कारोबार में सेलिब्रिटीज शामिल हैं।

    अंतर्जाल की आभासी व मायावी दुनिया से अश्लील सामग्री पर रोक की मांग सबसे पहले इंदौर के जिम्मेदार नागरिक कमलेश वासवानी ने सर्वोच्च न्यायालय से की थी। याचिका में दलील दी गई थी कि इंटरनेट पर अवतरित होने वाली अश्लील वेबसाइटों पर इसलिए प्रतिबंध लगना चाहिए, क्योंकि ये साइटें स्त्रियों एवं बालकों के साथ यौन दुराचार का कारण तो बन ही रही हैं, सामाजिक कुरूपता बढ़ाने और निकटतम रिश्तों को तार-तार करने की वजह भी बन रही हैं। इंटरनेट पर अश्लील सामग्री को नियंत्रित करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं होने के कारण जहां इनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, वहीं दर्शक संख्या भी बेतहाशा बढ़ रही है। ऐसे में समाज के प्रति उत्तरदायी सरकार का कर्तव्य बनता है कि वह अश्लील प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण की ठोस पहल करें। लेकिन पिछले 15 साल से इस समस्या का कोई हल नहीं खोजा जा सका है।

    वस्तुस्थिति इंटरनेट पर अश्लीलता का तिलिस्म भरा पड़ा है। वह भी दृश्य, श्रव्य और मुद्रित तीनों माध्यमों में। ये साइटें नियंत्रित या बंद इसलिए नहीं होती, क्योंकि सर्वरों के नियंत्रण कक्ष विदेशों में स्थित हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मायावी दुनिया में करीब 20 करोड़ अश्लील वीडियो एवं क्लीपिंग चलायमान हैं, जो एक क्लिक पर कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, फेसबुक, ट्यूटर, यूट्यूब और वाट्सअप की स्क्रीन पर उभर आती हैं। लेकिन यहां सवाल उठता है कि इंटरनेट पर अश्लीलता की उपलब्धता के यही हालात चीन में भी थे। परंतु चीन ने जब इस यौन हमले से समाज में कुरूपता बढ़ती देखी तो उसके वेब तकनीक से जुड़े अभियतांओं ने एक झटके में सभी वेबसाइटों को प्रतिबंधित कर दिया। गौरतलब है, जो सर्वर चीन में अश्लीलता परोसते हैं, उनके ठिकाने भी चीन से जुदा धरती और आकाश में हैं। तब फिर यह बहाना समझ से परे है कि हमारे इंजीनियर इन साइटों को बंद करने में क्यों अक्षम साबित हो रहे हैं ? चीन यही नहीं रुका, उसने अब गूगल की तरह अपने सर्च-इंजन बना लिए हैं। जिन पर अश्लील सामग्री अपलोड करना पूरी तरह प्रतिबंधित है।

    इस तथ्य से दो आशंकाएं प्रगट होती हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में एक तो हम भारतीय बाजार से इस आभासी दुनिया के कारोबार को हटाना नहीं चाहते, दूसरे इसे इसलिए भी नहीं हटाना चाहते क्योंकि यह कामवर्धक दवाओं व उपकरणों और गर्भ निरोधकों की बिक्री बढ़ाने में भी सहायक हो रहा है। जो विदेशी मुद्रा कमाने का जरिया बना हुआ है। कई सालों से हम विदेशी मुद्रा के लिए इतने भूखे नजर आ रहे हैं कि अपने देश के युवाओं के नैतिक पतन और बच्चियों व स्त्रियों के साथ किए जा रहे दुष्कर्म और हत्या की भी परवाह नहीं कर रहे ? अमेरिका, जापान और चीन से विदेशी पूंजी निवेश का आग्रह करते समय क्या हम यह शर्त नहीं रख सकते कि हमें अश्लील वेबसाइटें बंद करने की तकनीक और गूगल की तरह अपना सर्च-इंजन बनाने की तकनीक दे ? लेकिन दिक्कत व विरोधाभास यह है कि अमेरिका, ब्रिटेन, कोरिया और जापान इस अश्लील सामग्री के सबसे बड़े निर्माता और निर्यातक देश हैं। लिहाजा वे आसानी से यह तकनीक हमें देने वाले नहीं है। गोया, यह तकनीक हमें ही अपने स्रोतों से विकसित करनी होगी।

    ब्रिटेन में सोहो एक ऐसा स्थान है, जिसका विकास ही पोर्न वीडियो फिल्मों एवं पोर्न क्लीपिंग के निर्माण के लिए हुआ है। यहां बनने वाली अश्लील फिल्मों के निर्माण में ऐसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने धन का निवेश करती हैं, जो कामोत्तेजक सामग्री, दवाओं व उपकरणों का निर्माण करती हैं। वियाग्रा, वायब्रेटर, कौमार्य झिल्ली, कंडोम, और सैक्सी डॉल के अलावा कामोद्दीपक तेल बनाने वाली ये कंपनियां इन फिल्मों के निर्माण में बड़ा पूंजी निवेश करके मानसिकता को विकृत कर देने वाले कारोबार को बढ़ावा दे रही हैं। राज कुंद्रा की कंपनी भी ब्रिटेन में पोर्न फिल्में बेच रही थी। यह शहर ‘सैक्स उद्योग’ के नाम से ही विकसित हुआ है।

    बाजार को बढ़ावा देने के ऐसे ही उपायों के चलते ग्रीस और स्वीडन जैसे देशों में क्रमशः 89 और 53 फीसदी किशोर निरोध का उपयोग कर रहे हैं। यही वजह है कि बच्चे नाबालिग उम्र में काम-मनोविज्ञान की दृष्टि से परिपक्व हो रहे हैं। 11 साल की बच्ची राजस्वला होने लगी है और 13-14 साल के किशोर कमोत्तेजाना महसूस करने लगे हैं। इस काम-विज्ञान की जिज्ञासा पूर्ति के लिए अब वे फुटपाथी सस्ते साहित्य पर नहीं, इंटरनेट की इन्हीं साइटों पर निर्भर हो गए हैं और उनकी मुट्ठियों में मोबाइल थमाकर हम गर्व का अनुभव कर रहे हैं।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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