
नई दिल्ली (New Dehli) । अंग्रेजों ने कृषि (Agriculture) व्यवस्था (Arrangement) को इस हाल में पहुँचा दिया था कि आज़ादी के समय देश (Country) के पास न तो पर्याप्त अनाज था और न ही अनाज (Cereal) उत्पादन के लिये आधारभूत (basic)सुविधाएँ थी। साल 1950-51 में केवल 5 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होता था जो कि देश की 35 करोड़ जनसंख्या का पेट भरने के लिये पर्याप्त नहीं था। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज़ादी के 15 साल बाद 1962 में हमारे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को देश की जनता से एक वक्त उपवास रखने की अपील करनी पड़ी थी। उन्होंने अपने आह्वान में कहा था ‘पेट पर रस्सी बाँधो, साग-सब्जी ज़्यादा खाओ, सप्ताह में एक दिन एक वक्त उपवास करो, देश को अपना मान दो।’
इस स्थिति से जल्द से जल्द निपटने के लिये भारतीय राजनेताओं ने भूमि सुधार, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, कृषि में वैज्ञानिक विधियों व अनुसंधान को बढ़ावा देने और हरित क्रांति समेत कई बड़े कदम उठाए। समय के साथ-साथ नई-नई प्रौद्योगिकी व मशीनों के इस्तेमाल से अनाज का उत्पादन बढ़ाने में सहायता मिली। नतीजा यह हुआ कि आज भारत न सिर्फ अपनी समूची जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध करवाता है बल्कि कृषि उत्पादों का निर्यात भी करता है। वर्तमान में भारत खाद्य उत्पादन के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है।
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