डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
दुनिया के कुछ देश डेमोग्राफिक टाइम बम के निशाने में आ गए हैं। इस टाइम बम का कभी भी विस्फोट देखने को मिल सकता है। इसका असर अभी से जापान, चीन आदि देशों में दिखने लगा है। इसका एक बड़ा कारण इन देशों में काम-धंधा करने वाले युवाओं के अनुपात में बुजुर्गों की आबादी अधिक होना है। किसी भी देश में जीवन आयु बढ़ना एक अच्छा संकेत माना जा सकता है पर जिस तरह की इन देशों में जनसंख्या नियंत्रण की नीतियां चल रही है या चलाई गई थी उसका परिणाम यह है कि जनसंख्या नियंत्रण के कारण युवाओं की संख्या कम होती जा रही है।
मेडिकल जर्नल लेंसेट में प्रकाशित अध्ययनों में इस बारे में चेताया जाता रहा है। इन हालातों को देखते हुए सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देशों ने अपनी जनसंख्या नियंत्रण नीति में बदलाव करने के कदम उठाए हैं। आज दुनिया के देशों में जापान सबसे बुजुर्ग देश बन गया है। यानी जापान में युवाओं की तुलना में बुजुर्ग आबादी बहुत अधिक हो गई है। जापान सरकार इस संकट से निपटने के लिए गंभीर होती जा रही है क्योंकि हालात यही रहे तो जापान में 2040 तक कुल आबादी की 35 प्रतिशत आबादी बुजुर्गों की हो जाएगी। दरअसल जापान में प्रजनन दर 1.4 के आसपास रह गई है।
एक मोटे अनुमान के अनुसार किसी भी देश की वर्तमान आबादी दर को बरकरार रखने के लिए प्रजनन दर 2.1 प्रतिशत होनी चाहिए। जापान में शतायु आयु के लोग भी दुनिया में सर्वाधिक हैं। अधिक आयु होना अच्छी बात है पर सबसे अधिक परेशानी का कारण यह हो जाता है कि काम करने वाले दो हाथों की संख्या पर बोझ अधिक हो जाता है। एक ओर बच्चों की आबादी तो दूसरी और बुजुर्गों की आबादी अनुत्पादक होने से अर्थव्यवस्था एवं परिवार व्यवस्था के संचालन पर सीधा असर पड़ता है।
चीन की जनगणना की हालिया रिपोर्ट भी कम चिंतनीय नहीं है। चीन ने बढ़ती जनसंख्या के कारण 1979 में एक बच्चे की नीति अपनाई और इसका परिणाम यह रहा कि जनसंख्या पर तो नियंत्रण हो गया पर अब चीन के सामने दोहरा संकट उत्पन्न हो गया है। एक तो बुजुर्गों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है तो दूसरी और शादियों के लिए युवतियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। एक ओर अकेले चीन में तीन करोड़ अविवाहित युवा हैं तो दूसरी ओर युवाओं में शादी के प्रति रुझान में भी कमी आ रही है। हालिया जनगणना रिपोर्ट के अनुसार चीन में 100 लड़कियों पर 111.3 लड़के हैं। साफ है कि लैंगिक अनुपात बुरी तरह से बिगड़ गया है। विशेषज्ञ प्रोफेसर ब्योर्न एल्परमैन का मानना है कि आज पैदा होने वाले बच्चे बड़े होकर विवाह योग्य होंगे तब उनमें से बहुत से लड़कों के सामने अपनी उम्र का जीवनसाथी की समस्या होगी। इसका एक बड़ा कारण भारत सहित दुनिया के अन्य देशों की तरह चीन में भी लड़कियों की तुलना में पुरुष शिशुओं को अधिक प्राथमिकता दी जा रही है। लाख समझाने व उपायों के बावजूद पुरुष शिशु पर अधिक जोर रहने से लड़कों की तुलना में लड़कियां कम हो रही हैं। इसके साथ ही चीन के युवाओं में भी शादी जैसे बंधन से युवाओं का मोहभंग होता जा रहा है।
इस सबसे इतर ब्राजील एक अलग ही तरह की समस्या से जूझ रहा है। वहां किशोरावस्था में पहुंचते-पहुंचते गर्भधारण की समस्या बढ़ती जा रही है। सरकार इस समस्या से निपटने के लिए किशोरावस्था पहले, गर्भावस्था बाद में टेगलाइन से अभियान चला रही है। हालांकि आने वाले समय में ब्राजील भी डेमोग्राफिक बम की गिरफ्त में होगा। ईरान और इटली की समस्या भी कमतर नहीं है। इन देशों में जनसंख्या नियंत्रण हो चुका है और जन्म दर न्यूनतम स्तर पर आने से भविष्य में यहां की आबादी भी आज की आबादी की तुलना में कम हो जाएगी। इटली में पलायन की समस्या भी एक बड़ा कारण है।
यह कोई भारत की ही बात नहीं हैं अपितु दुनिया के अधिकांश देशों में देखा जा सकता है कि किसी भी योजना के संचालन से भविष्य में पड़ने वाले दुष्प्रभावों का आकलन समय पर नहीं किया जाता है और उसके दुष्परिणाम अधिक गंभीर हो जाते हैं। आज जापान बुजुर्गों का देश बन गया है। जल्दी ही चीन के हालात यही होने वाले हैं। भारत में भी जनसंख्या नियंत्रण के ठोस प्रयास किए जा रहे हैं और इसका असर देखा जा रहा है। ईरान, इटली और ब्राजील की स्थिति भी सामने है। आज चीन एक ओर युवाओं को शादी करने को प्रेरित कर रही है तो दूसरी और युवाओं को दो बच्चे पैदा करने पर प्रोत्साहित करना भी शुरू कर दिया है। जापान में भी अपने स्तर पर कदम उठाए जा रहे हैं। इटली में बच्चे पैदा करने पर प्रोत्साहित किया जा रहा है। ईरान के अपने प्रयास हैं। दरअसल जिस देश में अधिक युवाशक्ति होगी, काम करने वाले अधिक हाथ होंगे, वह देश आर्थिक दृष्टि से अधिक संपन्न होगा। हालांकि बढ़ती जनसंख्या इन देशों के सामने समस्या रही है पर चीन जैसे देश को चालीस साल में ही एक बच्चे की नीति को बदलने का निर्णय लेना पड़ा। इसी तरह से अन्य देश कर रहे हैं।
डेमोग्राफिक टाइम बम की निशाने पर आने वाले देशों को अभी से अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। बुजुर्गों की संख्या में बढ़ोतरी या यों कहे कि लोगों का दीर्घायु होना शुभ संकेत है तो यह जीवन स्तर में सुधार, पोषणयुक्त भोजन, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार सहित कई सुधारों के संकेत है और इसे अच्छा ही माना जाएगा। लेकिन नई पीढ़ी में विवाह के प्रति विलगाव, जनसंख्या नियंत्रण पर बल और प्रजनन दर में कमी के कारण जो हालात बन रहे हैं वह गंभीर है।
नहीं भूलना चाहिए कि विवाह और बच्चों के होने से विवाहितों में जिम्मेदारी का अहसास होता है तो समाज की व्यवस्था भी बनी रहती है। ऐसे में लैंगिक भेदभाव कम करने के साथ विवाह और परिवार संस्थाओं के प्रति युवाओं को जागरुक करना होगा। नहीं तो यह टाइम बम कभी विस्फोट कर गया तो इसके दुष्परिणाम और भी अधिक हानिकारक होंगे। भविष्य के लिए नीति बनाते समय उसके प्रभावों का भी आकलन करना होगा। यह किसी एक देश की समस्या नहीं है अपितु दुनिया के बहुत से देश इसकी जद में आने वाले हैं। ऐसे में ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जो समाज और संसार दोनों के लिए हितकारक हो।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)