– पवन कुमार अरविंद
सत्ता के वैभव में एक ऐसा आलोक होता है जिसके प्रचंड तेज में अनेक प्रतिभावान व्यक्ति विलुप्त हो गए। इस प्रचंड तेज का असर देश पर सर्वाधिक शासन करने वाली कांग्रेस एवं कांग्रेसजनों पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। सर्वाधिक समय तक सत्ता में रहने के कारण कांग्रेसजनों के लिए सत्ता ‘एक आदत-सी’ हो गयी है। उनमें न धैर्य है और न संघर्ष की क्षमता दिखती है। वैसे तो, पार्टी में एक से बढ़कर एक प्रतिभावान नेता मौजूद हैं, लेकिन जल्द सत्तारूढ़ होने की अधीरता उनकी प्रतिभा को लील रही है और वे अपने को रीढ़विहीन मान बैठे हैं। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की इससे ज्यादा दुर्दशा और क्या हो सकती है कि वह पिछले करीब 18 महीने से अंतरिम अध्यक्ष के भरोसे चल रही है और जब नये अध्यक्ष की चर्चा होती है तो हर बार बात राहुल गांधी के नाम पर आकर अटक जाती है।
पिछले साढ़े 6 वर्षों से केंद्र की सत्ता से दूर कांग्रेस और उसके नेताओं में संगठन को दुरुस्त किए बिना सत्ता पाने की छटपटाहट स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। पर, यह भी अपने में विचित्र ही है कि जिस नेता में पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने की अपनी कोई दृष्टि ही नहीं है, पार्टी के अधिकतर नेता उसी की जय-जयकार करने में व्यस्त हैं। पार्टी नेताओं का यह रवैया वास्तविकता से मुख मोड़ने जैसा ही है।
राजनीति कोई मौज-मस्ती या सैर-सपाटे का स्थान नहीं है। यह देश निर्माण का ऐसा महायज्ञ है जिसके लिए शुद्ध-सात्विक मन से सतत संघर्ष जरूरी है। राजनेता का प्रमुख धर्म जनता से कटे रहकर नहीं बल्कि जनता के बीच डटे रहकर और उसकी समस्याओं से रूबरू होकर; देश एवं समाज के हित में राजकाज की नीतियों के निर्माण में सहयोग देना है। पर, राहुल गांधी में ऐसा कोई गुण नहीं दिखता। ऐसा लगता है कि राजनीति उनके लिए एक ‘पार्ट टाइम जॉब’ की तरह है। इसलिए देश की जनता के दुख-दर्द को लेकर उनकी संवेदना का स्तर भी आंशिक ही है।
वर्ष 2004 से लगातार चौथी बार सांसद राहुल गांधी कांग्रेस के 64 महीने तक राष्ट्रीय महासचिव, 59 महीने तक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और 20 महीने तक राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं इसलिए उनकी कार्यप्रणाली और उनके चिंतन से देश की जनता भंलीभांति परिचित है। वह कितने क्षमतावान हैं, यह भी सर्वविदित है। इसके बावजूद राहुल के ही नाम की रट कांग्रेस का कितना उद्धार करेगी? कांग्रेस नेतृत्व को चिट्ठी लिखने वाले उन 23 नेताओं का भी तो यही कहना है। समूह-23 के एक प्रमुख नेता गुलाम नबी आजाद ने तो यही सवाल उठाए थे कि बिना संघर्ष किए कांग्रेस सत्तारूढ़ होना चाहती है। उनका कहना है कि सत्ता तक पहुंचने के लिए संगठन को पहले ब्लॉक स्तर पर मजबूत करना पड़ेगा। ईमानदारी से सांगठनिक चुनाव पर ध्यान देना होगा। फाइव स्टार कल्चर को विराम देना होगा। ‘लेटरहेड’ और ‘विजिटिंग कार्ड’ वाली राजनीतिक संस्कृति को त्यागकर नेताओं के परिक्रमा के बजाय उनके पराक्रम पर ध्यान केंद्रित करना होगा। पर, सवाल यह है कि इन 23 नेताओं को सुनने वाला कौन है? मौजूदा नेतृत्व से मुक्ति पाकर नया और योग्य नेतृत्व पाने की छटपटाहट जरूर है, लेकिन वह छटपटाहट दूर कौन करेगा? सवाल यहीं पर आकर अटकता है।
जाहिर है कि कांग्रेस के उत्थान के लिए आज एक पूर्णकालिक, निष्ठावान और समर्पित अध्यक्ष की जरूरत है। एक ऐसा अध्यक्ष जिसकी अपनी एक सोच हो, एक व्यावहारिक चिंतन हो और वह उचित-अनुचित का विचार कर समयानुकूल फैसले ले सके। ऐसा जिस दिन हो गया तो कांग्रेस के उद्धार का रास्ता भी उसी दिन खुल जाएगा।
अध्यक्ष पद पर 45 साल रहा नेहरू-गांधी परिवार का कब्जा
वर्ष 1885 में कांग्रेस के गठन से लेकर अबतक नेहरू-गांधी परिवार का पार्टी के अध्यक्ष पद पर 45 वर्ष से अधिक समय तक कब्जा रहा है। मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी, सभी मिलाकर कुल 45 वर्ष से अधिक समय तक अध्यक्ष रहे हैं। इसमें सोनिया गांधी के नाम सर्वाधिक समय तक अध्यक्ष रहने का रिकॉर्ड है जबकि गांधी परिवार के सदस्य के रूप में राहुल गांधी सबसे कम समय तक अध्यक्ष पद पर रहे हैं। सोनिया गांधी 1998 से 2017 तक लगातार 19 साल तक अध्यक्ष रही हैं और अब पिछले डेढ़ साल से अंतरिम अध्यक्ष हैं। जबकि राहुल गांधी सिर्फ 20 महीने अध्यक्ष रहे हैं।
कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष थे अबुल कलाम आज़ाद
41 साल की अवस्था में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने राजीव गांधी लगातार 6 साल तक इस पद पर रहे। वहीं राहुल गांधी जब कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो उनकी उम्र 47 वर्ष थी। अबुल कलाम आजाद को कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है। वह पहली बार जब वर्ष 1923 में अध्यक्ष बने तो उनकी उम्र सिर्फ 35 वर्ष थी। वे कुल 7 वर्षों तक इस पद पर रहे।
सरोजिनी नायडू थीं कांग्रेस की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष
आजादी के पहले तीन महिलाएं कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। वर्ष 1917 में आयरलैंड की रहनेवालीं एनी बेसेंट अध्यक्ष बनीं। वर्ष 1925 में सरोजिनी नायडू और 1933 में नेल्ली सेनगुप्ता कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। एनी बेसेंट को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है, जबकि सरोजिनी नायडू को कांग्रेस की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है।
देखें तो कांग्रेस का अतीत स्वर्णिम रहा है। यह पार्टी रातों-रात अचानक नहीं खड़ी हो गयी, बल्कि इसको खड़ा करने में एक से बढ़कर एक मनीषी सदृश्य नेताओं का योगदान रहा है। सवाल उठता है कि ऐसी पार्टी को किसी परिवार विशेष या व्यक्ति विशेष के सहारे क्यों छोड़ना? वास्तविकता को स्वीकारते हुए मौजूदा ज़रूरत के अनुसार कड़े और बड़े फैसले लेने होंगे तभी कांग्रेस का उद्धार हो सकेगा। कांग्रेस का मजबूत होना भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए भी आवश्यक है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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