– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
वैज्ञानिकों को जैसा अंदेशा था वह लगभग सही होता दिख रहा है। कोरोना की नई लहर ने अमेरिका में बड़ी संख्या में बच्चों को अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया है। जानकारों के अनुसार महज एक सप्ताह में अमेरिका में एक लाख 33 हजार बच्चे कोरोना की चपेट में आ गए हैं। मोटे अनुमान के अनुसार अमेरिका में कोरोना संक्रमित बच्चों का प्रतिशत बढ़कर 11 प्रतिशत हो गया है। अमेरिका ही क्या यूरोपीय देश भी इससे अछूते नहीं है।
चिंता की बात है कि कोरोना के कई जगहों पर नए लक्षण दिखाई देने लगे हैं। इसमें बच्चों के शरीर में चकत्ते देखे जा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि दुनिया के देशों में करीब एक लाख बच्चे प्रतिदिन कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं। हमारे देश में भी कोरोना संक्रमण से प्रभावित बच्चों की संख्या बढ़ रही है। अभी तो यह संक्रमण डेल्टा वेरियंट के चलते हो रहा है जबकि अफ्रीका से आए नए वेरियंट ओमीक्रोन की दहशत तेजी से बढ़ती जा रही है। ओमीक्रोन ने भारत सहित दुनिया के तीन दर्जन से अधिक देशों में उपस्थिति दर्ज करा दी है।
पिछले दो साल से कोरोना ने सारी दुनिया में तांडव मचा रखा है। दुनिया के देशों का जनजीवन कोरोना के कारण कोई एक-दो दिन नहीं बल्कि महीनों लॉकडाउन के दौरान घरों में कैद रह चुका है। यदि यह कहें कि कोरोना ने दुनिया के लोगों को घर में बिना किसी अपराध के घर में नजरबंद करके रख दिया तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। क्या घर और क्या बाहर सबकुछ ठप होकर रह गया। लोगों को ऑक्सीजन के लिए दर दर भटकते हुए इससे पहले किसी भी काल में नहीं देखा गया। आर्थिक गतिविधियां थम गईं।
इन सबके बावजूद जैसे ही हालात सामान्य बनाने के प्रयास हुए, लापरवाही के चलते कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ने लगा है। आखिर कोरोना प्रोटोकाल के नाम पर करना तो केवल इतना ही है कि दो गज की दूरी-मास्क है जरूरी और सेनिटाइजर का नियमित उपयोग। पर ज्यों-ज्यों सरकारों द्वारा हालात सामान्य करने के प्रयास किए गए त्यों-त्यों दूरी और मास्क, पर उपदेश कुशल बहुतेरे होकर रह गए। ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग की बात और भी बेमानी होगी।
यह पहले साफ हो गया था कि कोरोना नित नए रूप बदलकर अपना खौफनाक रंग दिखाएगा। यह भी साफ हो गया था कि कोरोना की तीसरी लहर सीधे बच्चों को सर्वाधिक प्रभावित करेगी। कोरोना की दूसरी लहर ने जिस तरह हाहाकार मचाया, वह भी छुपा नहीं है, फिर भी सब पर लापरवाही भारी पड़ रही है। बच्चों पर कोरोना का बढ़ता असर दिखने लगा है। दुनिया के देशों में एक दिन में एक लाख बच्चों के संक्रमित होने का औसत निश्चित रूप से चिंतनीय है।
अब सरकारों की भी मजबूरी है कि आखिर कब तक स्कूलों को बंद रखा जाए। वैसे ही दो सालों में जिस तरह से शिक्षा व्यवस्था ठप हुई है वह सबके सामने है। भारत सहित दुनिया के देशों में ऑनलाइन पढ़ाई के दुष्परिणाम सामने हैं। ऐसे में कोरोना प्रोटोकाल की सख्ती से पालना ही एकमात्र विकल्प है। यह हमें समझना होगा। भावी पीढ़ी के भविष्य को देखते हुए शिक्षण संस्थाएं तो चालू करनी ही होगी।
वैसे भी एक बात समझ जानी चाहिए कि आने वाले कुछ वर्षों तक तो हमें कोरोना के साथ ही जीना-मरना है। कोरोना के नित नए रूपों से जूझना है। मौसम परिवर्तन के साथ होने वाली बीमारियां कोरोना के लिए सहायक सिद्ध होती हैं। इसलिए लोगों को कोरोना से बचाव के एहतियाती उपायों को अपनाना ही होगा।
अभी ओमीक्रोन की दहशत सामने है। ऐसे में कोरोना के डेल्टा स्वरूप से बच्चों को बचाना ज्यादा जरूरी हो गया है। यह नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना के डेल्टा स्वरूप ने ही सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। इसलिए जरूरी है कि कोरोना प्रोटोकाल की सख्ती से पालना कराई जाए। बच्चों में बढ़ता संक्रमण अधिक चिंता का कारण है। आने वाले कुछ सालों तक हमें कोरोना के नये रूपों से दो-चार होते रहना है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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