– निर्मल रानी
भीषण गर्मी से त्राहिमाम कर रहे पश्चिमी उत्तर भारत लोगों ने मानसून की आमद से निश्चित रूप से काफ़ी राहत महसूस की है। परन्तु मानसून की अभी आमद ही हुई है कि ख़ास तौर पर शहरी क्षेत्रों में जलभराव के दृश्य सामने आने लगे हैं। जिन लोगों का कारोबार लॉक डाउन के भयावह दौर से बाहर निकलने की बमुश्किल कोशिश कर रहा था, अनेकानेक शहरों व बस्तियों यहाँ तक कि नये बसाये गये कथित ‘हाई फ़ाई ‘ सेक्टर्स में भी सड़कों से लेकर घरों तक में पानी भर जाने के चलते एक बार फिर लगभग ठप्प हो गया है।
कहीं दुकानों में पानी भरा है तो कहीं जलभराव की वजह से ग्राहक नदारद। कहीं ग्राहक व दुकानदार दोनों ही अपने घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे। कहना ग़लत नहीं होगा कि जितना अधिक विकास कार्य जितना सड़कों पुलों,नालों नालियों आदि का नवनिर्माण व सुधारीकरण का काम दिखाई देता है उतना ही अधिक जलभराव भी बढ़ता जाता है। जनता की तकलीफ़ें भी उतनी ही अधिक बढ़ती जा रही हैं। सरकार की अनेक योजनायें तो साफ़ तौर पर ऐसी दिखाई देती हैं जिन्हें देखकर यही यक़ीन होता है कि इस तरह की योजनायें केवल कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार का ही परिणाम हैं। और कुप्रबंधन व भ्रष्टाचार में डूबी ऐसी योनाओं का पूरा नुक़सान निश्चित रूप से केवल जनता को ही भुगतना पड़ता है।
मिसाल के तौर पर टूटी गलियों व सड़कों के निर्माण या उसकी मुरम्मत के नाम पर हर बार गलियों व सड़कों को ऊँचा किया जाता है। इसका कारण यह है कि पुरानी सड़कों व गलियों की लंबाई व चौड़ाई तो आम तौर पर बढ़ नहीं सकती और वह पहले जितनी ही रहती है। लिहाज़ा सड़क व गली की मोटाई अर्थात ऊंचाई के नाम पर ही भ्रष्टाचार का सारा खेल व्यवस्था की मिलीभगत से खेला जाता है। यदि सरकार चाहे तो सख़्ती से यह आदेश जारी कर सकती है और स्थाई तौर से यह नियम बना सकती है कि गलियों व सड़कों की मुरम्मत पुरानी गलियों के ऊपरी स्तर को खोद कर की जाये गलियों /सड़कों के पुराने ऊंचाई के स्तर को बरक़रार रखा जाये कई जगह जागरूक नागरिकों ने इकट्ठे होकर अपने मुहल्लों में पुराने स्तर पर ही निर्माण कराया भी है । उन्होंने अपने मुहल्लों की गलियां ऊँची नहीं होने दीं। परन्तु जो जनता मूक दर्शक बनकर अपने ही घरों के सामने की सड़कों को ऊँचा होते देखती रही आज उनके घरों में मामूली सी बारिश का पानी भी घुस जाता है। जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं उन्होंने तो अपने मकानों को ऊँचा करवा लिया है या तोड़ कर नया ऊँचा मकान बना लिया है और जो बेचारे दो वक़्त की रोटी के लिए जूझ रहे हैं वे हर बारिश में अपनी घरों व अपने घरों के सामने की नालियों गलियों यहां तक कि सीवरेज लाइन के गंदे व दुर्गन्धपूर्ण पानी में डूबा हुआ पाते हैं। घरेलू सामानों की बारिश व जलभराव से क्षति होती है वह अलग,साथ ही बीमारी फैलने की भी पूरी संभावना तो रहती ही है।
इसी तरह तमाम शहरों के मुख्य नाले भी ज़रा सी बारिश में जल-प्लावन करने लगते हैं। यहाँ तक कि बारिश रुक जाने के बाद भी घंटों तक और थोड़ी अधिक बारिश होने पर तो एक दो दिनों तक लबालब भरे रहते हैं और पानी आगे बढ़ने के बजाये ठहरा रहता है। कई जगह नव निर्मित नाले टूट फूट जाते हैं उनमें दरारें पड़ जाती हैं। कभी कोई बैंक डूबा रहता है तो कभी सरकारी या निजी कार्यालय। गोया ज़रा सी बारिश जनता में हाहाकार पैदा कर देती है। ज़ाहिर है इस दुर्व्यवस्था के लिये जनता का तो कोई दोष नहीं? हाँ जनता का दोष इतना ज़रूर है कि शहरों की नालियों व नालों में जिसतरह ग़ैर ज़िम्मेदार लोग प्लास्टिक की बोतलें,पॉलीथिन की थैलियां, यहाँ तक कि मरे हुए जानवर तक फेंक दिया करते हैं उसके चलते भी नालों व व नालियों का प्रवाह बाधित हो जाता है। तमाम लोगों ने अपने अपने घरों में गाय भैंसें पाल रखी हैं। रिहाइशी इलाक़ों में तमान डेयरियां चलाई जा रही हैं। ऐसे अनेक डेयरी संचालक अपने जानवरों का मल सीधे नालियों में बहाते हैं। जिसकी वजह से पानी की काफ़ी बर्बादी तो होती ही है साथ ही नालियों में गोबर जम जाने से नाली नाले भी अवरुद्ध हो जाते हैं। और बारिश के मौसम में जनता की यही लापरवाहियां स्वयं जनता की परेशानियों का ही सबब बनती हैं।
इस तरह के जल भराव से बचने के लिये निश्चित रूप से जहां जनता पर यह ज़िम्मेदारी है कि वह नालियों व नालों में कूड़े कबाड़ फेंकने व उसे अवरुद्ध करने सभी हरकतों से बाज़ आये वहीं सरकार व संबंधित विभागों तथा योजनाकारों की भी बड़ी ज़िम्मेदारी है कि वह मुहल्लों,कालोनियों,शहरों व क़स्बों से जल निकासी हेतु ऐसी योजनायें बनाये जिससे लोगों के घरों में और गली मुहल्लों में बरसाती जल जमाव बंद हो। सड़कों व गलियों को ऊँचा करने का जो भ्रष्टाचारी तरीक़ा लगभग पूरे देश में अपनाया जा रहा है वह बिल्कुल बंद होना चाहिए। नालों नालियों तथा वर्षा जल निकासी के सभी स्रोतों के निर्माण में उचित व कारगर योजनायें बनानी चाहियें जिससे जनता के हितों को भी ध्यान में रखा जा सके और निर्माण भी स्तरीय अर्थात भ्रष्टाचार मुक्त हो। गलियों व नालों नालियों को ऊँचा कराने जैसी भ्रष्टाचार से डूबी योजनाओं से बाज़ आना चाहिए। जहां कहीं गलियों व सड़कों को ऊँचा करे बिना जल निकासी संभव ही नहीं ऐसे क्षेत्रों को अपवाद समझकर सामान्यतयः यह नियम बनाना चाहिये कि पुरानी सड़कों व गलियों को खोद कर ही अपने पिछले स्तर तक ही गलियों व सड़कोंतथा नाली नालों की ऊंचाई निर्धारित जाये। अन्यथा न्यू इण्डिया का ढोल पीटने से कुछ हासिल नहीं होने वाला। जब तक इस भ्रष्टाचार डूबी इस व्यवस्था में सुधार नहीं होता तब तक भ्रष्टाचार व कुप्रबंधन के चलते थोड़ी सी ही बारिश में हमारा ‘न्यू इंडिया ‘ हमेशा यूँही डूबता रहेगा।
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