भोपाल। कूनो अभ्यारण्य में चीतों के बड़े बाड़े में छोड़े जाने के बाद इस प्रोजेक्ट के सफलता पूर्ण ढंग से निपटने के साथ ही वन विभाग अब अपने ड्रीम प्रोजेक्ट की तैयारी में जुट गई है। यह है रणथंभौर, कूनो और शिवपुरी के बीच एक अनूठा कॉरिडोर बनाने का, ताकि यहां एक बार फिर जानवर एक साथ रह और घूम सकें। इसके लिए अब शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में बाघ लाकर बसाने की कवायद चालू हो गई है। यह कॉरिडोर बनते ही यह इलाका वन्य पर्यटकों के भी आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र बन जाएगा।
कूनो नेशनल पार्क को हालांकि एशियाटिक लॉयन को लाकर बसाने के लिए ही तैयार किया गया था। इसकी वजह यही है कि यह जगह रणथंबौर और माधव नेशनल पार्क शिवपुरी के बीच में स्थित था, लेकिन कानूनी और राजनीतिक झमेलों के कारण यहां गुजरात के गिर से लाकर लॉयन तो नहीं बसाए जा सके। लेकिन सितंबर में नामीबिया से लाकर चीते जरूर बसा दिए। सत्तर साल पहले विलुप्त हो गए चीते एक बार फिर भारत के कूनो के जंगलों में कुलांचे भरने लगे। जब हेबिटेट उनके अनुरूप हो गया तो सरकार और वन विभाग अब एक बार फिर कूनो से लेकर शिवपुरी तक बाघ कॉरिडोर बनाने कब प्रोजेक्ट में जुट गया है।
टाइगर के लिए बफर जोन…
रणथंभौर से निकलकर अनेक टाइगर एमपी की सीमा में आते जाते रहते हैं, लेकिन यहां ज्यादा समय नहीं रुकते। इसीलिए अब उनके लिए एक आसान और सुरक्षित कॉरिडोर बनाया जाना है। इसके लिए शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क का विस्तार करने की योजना है। प्रस्ताव के अनुसार टायगर बफर जोन बनाने के किये इसके दायरे में 13 गांव और लाये जा रहे हैं। इसके साथ ही माधव नेशनल पार्क का विस्तार 600 वर्ग किलोमीटर हो जाएगा और अपवाद को छोड़कर इसकी सीमा कूनो नेशनल पार्क को स्पर्श करने लगेगी। यानी रणथंभौर से लेकर शिवपुर तक एक सुरक्षित कॉरिडोर बन जायेगा, जिसमें वहां से निकलकर बाघ स्वछंद विचरण कर सकेंगे।
सबके पहले मादा बाघ लाने की तैयारी…
माधव नेशनल पार्क में तैयारी है कि जनवरी में तीन बाघ लाकर यहां बसाए जाएं। इसको लेकर उनके लिए वांछित हेबिटेट तैयार करने का प्रयास और परीक्षण चल रहा है। इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों का कहना है कि उनकी कोशिश है कि 15 जनवरी से पहले यहां तीन बाघ लाकर बसा दिए जाएं। ये तीनो बाघ रणथंभौर से ही लाये जाएंगे और कोशिश हो कि यह मादा ही हों। मादा बाघ लाने का निर्णय भी वन्य विशेषज्ञों के लंबे शोध के बाद हुआ है। विशेषज्ञों ने रणथंभौर से श्योपुर, मुरैना और शिवपुरी के जंगल तक आने जाने वाले बाघों की आवाजाही पर लंबी निगरानी की तो यह तथ्य प्रकाश में आया कि वहां से निकलकर सिर्फ नर बाघ ही इन क्षेत्र में आते है। लेकिन वे यहां रुकना पसंद नहीं करते, बल्कि जल्दी ही वापस रणथंबौर लौट जाते हैं। इसकी बजह तलांशने पर चौंकाने वाली बात सामने आई। उनकी वापसी इसलिए जल्दी हो जाती है, क्योंकि इस क्षेत्र में मादा बाघ उन्हें नहीं मिलते, जिनसे वे जरूरी नीड पूरी कर सकें। जैसे ही उनकी नींद बढ़ती है वे तत्काल रणथंभौर की तरफ लौट जाते हैं। इसलिए वन्य विशेषज्ञों ने यहां सबसे पहले तीन मादा बाघ बसाने का ही फैसला किया है।
साल 1991 में थे यहां दस बाघ…
माधव नेशनल पार्क नब्बे के दशक में बाघों की रिहायश का एक सबके बड़ा अड्डा था। तब यहां दस बाघ थे। लेकिन देखरेख और सुरक्षा के अभाव में इनकी संख्या कम होती चली गई। अंतिम बार यहां बाघ साल 1996 में देखा गया था। इसी साल यहां की टाइगर सफारी यह कहते हुए बंद कर दी गई थी कि यह स्थान अब टाइगर के लिए उपयुक्त नहीं है। इस सफारी की अंतिम बाघ जोड़ी साल 1996 में थी, जिनको तारा और पेटू के नाम से जाना जाता था। इसके बाद फिर इसे टाइगर सफारी बनाने का फैसला हुआ।
वन्य विशेषज्ञों का मत यहां बस सकते हैं 26 टाइगर…
इससे पहले देश के प्रमुख वन्य विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र के भूगोल और पारिस्थितिकी पर गहन शोध किया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस क्षेत्र में 26 टाइगर को बसाया जा सकता है, जो यहां आराम से स्वतंत्रता पूर्वक जीवन यापन कर सकते हैं। इसके बाद इस लॉयन सफारी को फिर से शुरू करने का फैसला हुआ। अब इसमें तीन टाइगर लाने की तैयारी है।
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