New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूछा कि कोविड-19 के मद्देनजर डिसइंफेक्टेंट टनल्स के इस्तेमाल पर रोक क्यों लगाई गई है जबकि यह शारीरिक मानसिक तौर पर नुकसान पहुंचाता है. जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर. सतीश रेड्डी जस्टिस एम. आर. शाह की बेंच को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कोविड-19 मैनेजमेंट के लिए लोगों को डिसइंफेक्ट करने के लिए अल्ट्रावायलेट लाइट्स के इस्तेमाल को लेकर हेल्थ मिनिस्ट्री की तरफ से कोई गाइडलाइंस जारी नहीं की गई है.
मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि किसी भी केमिकल डिसइंफेक्टेंट का छिड़काव इंसानों के लिए शारीरिक रूप के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक तौर पर भी नुकसानदायक होता है. इस पर बेंच ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि जब डिसइन्फेक्टेंट टनल खराब हैं तो इसके इस्तेमाल पर केंद्र प्रतिबंध क्यों नहीं लगा रहा. इस पर मेहता ने कहा कि इस बारे में उचित दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे.
सुप्रीम कोर्ट गुरसिमरन सिंह नरुला की तरफ से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें डिसइंफेक्शन टनल को लगाने, उनका उत्पादन या विज्ञापन इंसानों पर केमिकल डिसइंपेक्टेंट्स के फ्यूमिगेशन पर प्रतिबंध के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की थी.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में जमा किए अपने ऐफिडेविट में कहा है कि पब्लिक हेल्थ हॉस्पिटल राज्यों के विषय हैं इन पर गाइडलाइंस राज्य/केंद्रशासित प्रदेश ही जारी कर सकते हैं. इसमें केंद्र की भूमिका जरूरी मार्गदर्शन फाइनैंशल सपोर्ट तक सीमित है.
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