नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की प्रमुख वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन (Soumya Swaminathan) ने कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट को लेकर चिंता जाहिर की है। शुक्रवार को उन्होंने कहा है कि वायरस का यह रूप पूरी दुनिया में प्रभावी हो रहा है। डब्ल्युएचओ की तरफ से डेल्टा स्ट्रेन को ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ में शामिल किया गया है। यह वेरिएंट सबसे पहले भारत (India) में ही पाया गया था। साथ ही इसे देश में दूसरी लहर (Second Wave) का भी जिम्मेदार माना जा रहा है।
पत्रकारों से बातचीत के दौरान स्वामीनाथन ने कहा, ‘अब फैल रहे वेरिएंट्स के कारण पूरी कोरोना वायरस स्तिथि गतिशील है।’ उन्होंने बताया, ‘अपनी विशेष रूप से बड़ी फैलने की शक्ति के चलते डेल्टा वेरिएंट विश्व में सबसे ज्यादा असर डालने वाला वेरिएंट बनने की राह पर है।’ खबरें आ रही थीं कि इंडोनेशिया में स्वास्थ्यकर्मियों के बीच डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ सिनोवैक वैक्सीन का असर ‘सीमत’ है। रिपोर्ट्स में कहा जा रहा था कि यह वैक्सीन कर्मियों को अस्पताल में भर्ती होने से नहीं बचा पा रही है।
इसपर उन्होंने कहा कि अलग-अलग देशों में इस्तेमाल की जा रही वैक्सीन के स्ट्रेन्स के खिलाफ प्रभावकारिता का पता लगाने के लिए स्वास्थ संस्थाओं को अच्छी स्टडीज के डेटा की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कोरोना के अलग-अलग वेरिएंट्स के खिलाफ वैक्सीन के प्रभाव का पता लगाने के लिए डब्ल्युएचओ के पास एक एक्सपर्ट्स का समूह है। इस दौरान उन्होंने सीक्वेंसिंग बढ़ाने की जरूरत की ओर इशारा किया है।
डेल्टा वेरिएंट का खासा असर ब्रिटेन में भी देखा गया था। देश में मिले संक्रमण के नए मामलों में इस वेरिएंट की मौजूदगी देखी गई थी। पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड ने पाया था कि अल्फा वेरिएंट के मुकाबले यह स्ट्रेन 60 प्रतिशत ज्यादा संक्रामक है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जर्मनी के वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने भी अनुमान लगाया था कि बढ़ते टीकाकरण के बाद भी डेल्टा वेरिएंट तेजी से दुनियाभर में फैल जाएगा।
इस दौरान स्वामीनाथन ने जर्मन कंपनी क्योरवैक को लेकर भी बात की। उन्होंने बताया कि यह वैक्सीन WHO के मानकों पर खरी नहीं उतर सकी है। उन्होंने बताया कि यह वैक्सीन डेल्टा जैसे तेजी से फैलने वाले वेरिएंट्स पर खास असरदार साबित नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि इस वैक्सीन की प्रभावकारिता दर 50 प्रतिशत से कम है और महामारी को काबू करने में मदद करने वाले टीकों का एफिकेसी रेट 50 फीसदी से ज्यादा होना चाहिए। जर्मनी में मिले करीब 6 फीसदी मरीजों में इस वेरिएंट की पुष्टि हुई है।
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