नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने कोरोना टीकों के परिवहन को लेकर सचेत किया है। इसने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि निर्धारित तापमान से बहुत अधिक या बहुत कम तापमान पर रखने से कोरोना टीका नष्ट हो जाता है। इसके बाद यह टीका न केवल अप्रभावी हो जाता है, बल्कि इस्तेमाल के लिहाज से असुरक्षित हो जाता है।
क्लिनिकल ट्रॉयल में सफल होने के बाद इसे बनाने, विभिन्न स्थानों तक पहुंचाने और लोगों को लगाने के दौरान कई सावधानियों के बारे में बताया गया है जो इस प्रकार हैं तीन चरण के क्लिनिकल परीक्षण में सफल कोरोना टीके का उत्पादन करने से पहले कंपनियां पहले इसे संबंधित नियामक संस्थान के पास भेजती हैं। यह इसकी गुणवत्ता, प्रभावकारिता और सुरक्षा का आकलन करता है। नियामक संस्थान से अनुमति मिलने के बाद टीके को डब्ल्यूएचओ के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है।
डब्ल्यूएचओ भी गुणवत्ता, प्रभावकारित और सुरक्षा का अध्ययन करता है। टीके को इस्तेमाल के लिए उपयुक्त पाए जाने पर अनुमति देता है, तो कंपनियां बड़े पैमाने पर टीके का उत्पादन शुरू करती हैं। कोरोना टीके की पैकेजिंग करते समय इस बात का ख्याल रखा जाना जरूरी है कि पैकेजिंग बहुत कम या ज्यादा ताप से टीके की सुरक्षा कर सके। टीके को रखने के लिए आम तौर पर कांच की शीशी का इस्तेमाल करते हैं। यह टिकाऊ होने के साथ-साथ तापमान के बढ़ने-घटने से टीके की कुछ हद तक सुरक्षा करती है। इसके बाद इन शीशियों को कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं। कोरोना का टीका तापमान के प्रति संवेदनशील है। हर टीके के लिए तापमान निश्चित है।
कुछ टीके 2 से 8 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर सुरक्षित रहते हैं, तो कुछ की सुरक्षा के लिए माइनस 70 डिग्री सेल्सियस का तापमान चाहिए। ऐसे में यदि तय तापमान से बहुत अधिक या कम ताप पर टीके को रखा गया तो यह नष्ट हो जाएगा। इस तरह का नष्ट टीका इस्तेमाल के लिहाज से असुरक्षित हो होता है। यही वजह है कि कोरोना टीके को रखने के लिए आम रेफ्रिजरेटर की जगह खास तरह के मेडिकल रेफ्रिजरेटर की जरूरत होती है। तय तापमान को बनाए रखने के लिए टीके खास तरह के रेफ्रिजरेटर में रखकर एक देश से दूसरे देश में पहुंचाए जाते हैं। एयरपोर्ट पर इन टीकों को पहुंचते ही इन्हें उस देश के भंडारणगृह स्थित कोल्ड रूम में रखा जाता है।
यहां से ये टीके आईस बॉक्स में रखकर उन जगहों पर ले जाए जाते हैं जहां इनका इस्तेमाल होना है। नई तकनीक से कुछ ऐसे पार्टेबल उपकरण बनाए गए हैं जिनके इस्तेमाल से बगैर बिजली के इन टीकों को कई दिनों तक सुरक्षित रख सकते हैं। लोगों में टीकाकरण की शुरुआत के बाद राष्ट्रीय नियामक संस्थाएं और डब्ल्यूएचओ इस पर लगातार नजर रखता है। इस दौरान टीका लगवाने लोगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव और प्रतिक्रियाओं की गंभीरता का अध्ययन किया जाता है। सबसे ज्यादा प्राथमिकता टीके की सुरक्षा और प्रभावकारिता को दी जाती है। यह भी अध्ययन किया जाता है कि टीकाकरण कितने समय तक संक्रमण से बचा सकता है।
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