– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
हमारे देश में कोरोना संक्रमितों की रिकवरी रेट जहां 94.94 फीसदी आ रही है, वहीं दुनिया के देशों की औसत रिकवरी रेट 69.54 प्रतिशत दर्ज की जा रही है। इसमें दो राय नहीं कि समग्र प्रयासों से कोरोना संक्रमितों को बेहतर इलाज व सुविधाएं मिलने से हालात सुधर रहे हैं। पर अब चिंता का नया कारण सामने आ रहा है, कोरोना संक्रमण से पूरी तरह उबर चुके लोगों को लेकर।
दरअसल जो ताजा रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं उसमें सबसे अधिक चिंतनीय बात यह है कि कोरोना के कारण अस्पताल में भर्ती रहकर ठीक होने वाले मरीज एक तरह के मानसिक तनाव के दौर से गुजरने लगे हैं। उन्हें डरावने सपनों से लेकर एकाएक नींद उड़ने, पल्स रेट बढ़ने, पेट में दर्द या अन्य शिकायत होने या सांस लेने में दिक्कत या रात को सोते वक्त अचानक घबराकर उठ जाने या इसी तरह की अन्य मानसिक अवसाद की स्थितियां सामने आ रही है। पोस्ट कोविड के बाद जो मानसिक स्थितियां बन रही हैं, उससे भारत ही नहीं दुनिया के अधिकांश देशों के मनोविज्ञानी चिंतित हैं। इसका कारण भी साफ है कि कोरोना संक्रमितों के पूरी तरह स्वस्थ्य होने के बाद डिप्रेशन के कारण उन्हें ऐसा महसूस होने लगा है। यानी कोरोना से उबर चुके कुछ लोग डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं।
दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी सेंटर के कोविड नोडल अधिकारी डॉक्टर अजित जैन का कहना है कि पोस्ट कोविड क्लिनिक में आने वाले मरीजों में से तकरीबन 30 प्रतिशत मरीजों में मानसिक अवसाद की गंभीर स्थिति सामने आ रही है। ऐसे मरीजों को आंखें बंद करते ही दोबारा अस्पताल में भर्ती होने के दृश्य दिखने लगते हैं और इस तनाव में वे दोबारा बीमार महसूस करने लगते हैं। लगभग 40 प्रतिशत पोस्ट कोविड मरीज थकावट, शरीर में दर्द व अन्य दूसरी बीमारियां महसूस करने लगे हैं। डॉ. जैन का मानना है कि असल में यह न्यूरो साइकिट्रिक मामले हैं। यह कोई हमारे देश की स्थिति हो ऐसा नहीं हैं अपितु दुनिया के अधिकांश देशों में पोस्ट कोविड मामलों में यह स्थिति आम होती जा रही है। यह अपने आप में गंभीर समस्या है।
जिस तरह यूरोप में कोराना की दूसरी लहर चल रही है और जिस तरह से देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है उसे देखते हुए भले रिकवरी रेट में लगातार सुधार हो रहा हो या मृत्युदर में कमी आ रही हो पर पोस्ट कोविड मरीजों को डिप्रेशन से निकालना एक बड़ी चुनौती है। हालातों को देखते हुए आने वाले दिनों में इस स्थिति के बढ़ने की आशंकाएं अधिक हैं। ऐसे में पोस्ट कोविड सेंटरों पर आनेवाले मरीजों और उनके परिजनों के मनोबल को बढ़ाने और पॉजिटिव थिंकिंग पर जोर देना होगा।
इसके लिए मीडिया और गैर सरकारी संगठनों को भी आगे आना होगा। पोस्ट कोविड मरीजों की ब्रेन बास या यों कहें कि उन्हें भयाक्रांत स्थिति से निकालने और सकारात्मक सोच पैदा करने के समग्र प्रयास करने होंगे। इसके लिए टीवी चैनलों द्वारा भी खास भूमिका निभाई जा सकती है। टीवी चैनलों के एक स्लॉट में मनोविज्ञानियों द्वारा कोरोना को लेकर जिस तरह भय की स्थिति व्याप्त है उसे दूर करते हुए मास्क पहनने, सोशल डिस्टेसिंग की पालना करने, हाथ धोने, सेनेटाइजर के उपयोग और अनावश्यक रूप से भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से रोकने की समझ पैदा करनी होगी। यह कार्य गैर सरकारी संगठन आसानी से कर सकते हैं। ऐसे में आनेवाले दिनों में जो डिप्रेशन या यों कहें कि भय की स्थिति पोस्ट कोविड मरीजों में आ रही है, उसका समय रहते उपाय खोजना सार्थक व सकारात्मक प्रयास होगा।
सरकारी व निजी चिकित्सालयों में भी यदि काउंसलिंग की व्यवस्था हो जाती है तो निश्चित रूप से इसके सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेंगे। अन्यथा जिस तरह से डिप्रेशन के मामले सामने आ रहे हैं, उसे किसी भी स्थिति में शुभ संकेत नहीं माना जा सकता। इसका एक हल तो बेहतर काउंसलिंग ही हो सकती है क्योंकि रोगी रोगग्रस्त नहीं होने के बावजूद अपने आपको रोगी समझने लगता है। यह स्थिति वास्तविक रोगी से भी अधिक गंभीर व चिंतनीय है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved