नई दिल्ली । कोरोना वायरस (corona virus) के म्यूटेशन (mutation) को जानने के लिए देश में आठ महीने से जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) चल रही है। हर राज्य से कम से कम पांच फीसदी सैंपल की सीक्वेंसिंग अनिवार्य है, लेकिन ज्यादातर राज्यों से तीन फ़ीसदी भी सैंपल नहीं मिल पा रहे हैं।
अब जीनोम सीक्वेंसिंग को लेकर नई परेशानी यह है कि 10 में से तीन सैंपल लैब पहुंचने तक खराब हो रहे हैं। अब तक 23 फीसदी से ज्यादा सैंपल खराब हो चुके हैं जिनकी लैब में जीनोम सीक्वेंसिंग नहीं हो पाई।
स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health) से मिली जानकारी के अनुसार, देश के अलग-अलग इलाकों में जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए अब तक 57476 सैंपल पहुंच चुके हैं, जिनमें से 44334 सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग पूरी हो पाई है। एक सैंपल को लैब तक पहुंचने में करीब 15 से 18 दिन का वक्त लग रहा है, जबकि वैज्ञानिकों के अनुसार इस अंतर को घटाकर 7 से 8 दिनों तक करना बहुत जरूरी है।
साथ ही जिला स्तर पर सैंपल लेने और ट्रांसपोर्ट के दौरान उचित देखभाल बहुत जरूरी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दिसंबर 2020 में जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए देश में इन्साकॉग का गठन किया गया था।
अभी तक देश की 28 लैब में जीनोम सीक्वेंसिंग हो रही है जिसके जरिए कोरोना वायरस के 332 म्यूटेशन की पहचान करने में कामयाबी मिल चुकी है। उन्होंने बताया कि इन्साकॉग आग के जरिए फिर से राज्यों को दिशा निर्देश जारी करते हुए सैंपल को लैब तक पहुंचाने की अवधि साथ में 10 दिन के भीतर रखने के लिए कहा गया है।
अमेरिका के बाद भारत में भी मिला डेल्टा-3
इन्साकॉग से मिली जानकारी के मुताबिक अमेरिका के बाद अब भारत में भी डेल्टा तेरी वैरिएंट सामने आ चुका है। अमेरिका में डेल्टा तरीके सबसे ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं।
वहां वैज्ञानिकों ने अध्ययन के जरिए जानकारी दी है कि अमेरिका में डेल्टा-3 वैरिएंट काफी तेज और आक्रामक हैं। अब तक 2000 से भी अधिक सैंपल में इसकी पुष्टि हो चुकी है। भारत में भी मामले सामने आने लगे हैं। पिछले दो सप्ताह में पांच मामलों की पहचान अलग-अलग राज्यों से हुई है। इनमें से दो मरीज महाराष्ट्र और केरल निवासी हैं।
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