– ऋतुपर्ण दवे
कोरोना की नई लहर फिर उफान मारती दिख रही है। दिखे भी क्यों न, जब पहली लहर रोक ली थी तो उसे काबू में रखना था। रोजमर्रा की जद्दोजहद की खातिर जरूरी छूट की मजबूरी में ऐसे आजाद हुए कि पता ही नहीं चला कि कब 21 वीं सदी का जानलेवा शैतान फिर आ खड़ा हुआ। मार्च में शुरू हुए लॉकडाउन के बाद कोरोना संक्रमण की चेन को परस्पर मेल-मिलाप और दूरी के एकमात्र फॉर्मूले से काफी हद तक तोड़ दिया गया था। यह सरकार की सख्ती से हो पाया जिसके लिए दुनिया भर में भारत की तारीफ हुई। लेकिन जैसे ही तालाबन्दी खत्म करने की शुरुआत हुई, लोग इतने बेलगाम हो गए और हालात यूँ बन गए जैसे कोरोना की विदाई हो गई हो! आलम कुछ ऐसा जैसे डरा-सहमा कोरोना खुद ही भारत को अलविदा कह गया..!! समूचे देश में निश्चिंतता ऐसी बनी जिसमें कोरोना को लेकर भ्रम कम और भरोसा ज्यादा था। इसी लापरवाही से देखते ही देखते अब रोजाना संक्रमण के इस साल के नए रिकॉर्ड सामने आने लगे जिससे केन्द्र व राज्यों की धड़कनें बढ़ गईं।
भारत में कोरोना की रफ्तार फिर बढ़ रही है। महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब और गुजरात में सबसे ज्यादा संक्रमित मिल रहे हैं। मप्र, उप्र, छग और दूसरे राज्यों में भी दूसरी लहर के मरीज सामने आ रहे हैं। इस बीच सुकून जरूर इस बात का है कि देश में टीकाकरण भी जोर पकड़ रहा है और करीब 3 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। जबकि 51 लाख 42 हजार 953 लोगों को दोनों खुराक मिल चुकी है। दुनिया भर में कोरोना संक्रमितों का आँकड़ा 12 करोड़ पहुँचने को है और मृतकों का आँकड़ा साढ़े 26 लाख को पार कर चुका है। बीते 83 दिनों की बात करें तो भले ही ब्राजील को दूसरे नंबर पर छोड़ कोरोना संक्रमण में हम एक पायदान नीचे चले गए लेकिन ज्यादा संक्रमित मिलने से नई लहर को लेकर शंका चिन्ताजनक है।
कोरोना की नित नई तेज होती लहर के बीच उसी रफ्तार से वैक्सीनेशन बड़ी सुकून की बात है लेकिन यह मान लेना कि इससे कोरोना को मात मिल जाएगी काफी नहीं है। देश-दुनिया के बड़े-बड़े चिकित्सकों सहित विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस पर लोगों को काफी चेता चुका है। गलतफहमी या अति आत्मविश्वास ही कोरोना की टूटी चेन को फिर कड़ियों में पिरो रहा है। ऐसे में लगता नहीं कि कोरोना की चेन तोड़ने के लिए पूरे देश के सरकारी मुलाजिम ही अपने-अपने दफ्तरों में उदाहरण बनें जिनके लिए मास्क और दो गज की दूरी बनाए रखने की सख्त कानूनी हिदायत हो।
भारत में नई लहर पर वैज्ञानिकों की अलग-अलग राय है। कुछ इसे दूसरे देशों के मुकाबले कम मान संतोष कर रहे हैं तो कुछ मानते हैं कि मौजूदा बढ़ते प्रसार का यही आंकड़ा रहा तो नई लहर को रोक पाना मुश्किल होगा। वहीं कुछ यह भी मानते हैं कि मौजूदा संक्रमण वृध्दि को दूसरी लहर कहना भी जल्दबाजी होगी। जाहिर है कोरोना की देश और दुनिया से आ रही चिन्ताजनक तस्वीरों से वैज्ञानिक और शोधकर्ता भी हैरान हैं। किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पा रहे हैं। ऐसे में जाना, पहचाना, अजमाया, बिना किसी साइड इफेक्ट के ऊपर से पूरी तरह परफेक्ट मास्क और दो गज की दूरी ही इस बीमारी को मात देने का सबसे सुरक्षित और सबकी पहुँच का आसान तरीका है तो इससे परहेज क्यों?
इस बारे में राज्यों के बजाए केन्द्र की सख्त और बड़े भाई वाली भूमिका जरूरी है, जिसमें हर चेहरे पर मास्क और परस्पर दूरी के दिशा-निर्देश हों। हालात को देखते हुए एकसाथ पूरे देश में रात्रिकालीन कर्फ्यू रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक लागू किया जाता। पहले के अनुभव बताते हैं कि यही बेहद कारगर उपाय रहा है। हाँ कुछ राज्यों में स्कूलों को खोलने को लेकर अलग-अलग तुगलकी फरमान भी जारी हो रहे हैं जो हालात के मद्देनजर रद्द किया जाना लोकहित में होगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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