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कोरोनाः ICMR ने बताई Plasma therapy की सच्चाई, कारगर है या नहीं

October 23, 2020

नई दिल्ली। इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) का कहना है कि Plasma therapy को लेकर किए गए क्लिनिकल ट्रायल से पता चला है कि यह कोविड-19 के मरीजों के लिए ज्यादा कारगर साबित नहीं हुई है। ऐसे में इसे कोविड-19 के इलाज के लिए बनाई गयी गाइडलाइन्स से हटाए जाने पर विचार किया जा रहा है। आईसीएमआर सरकार की बॉयो-मेडिकल शोध एजेंसी है। आईसीएमआर ने सितंबर के महीने में देश के 39 अस्पतालों में भर्ती कोविड-19 के 464 मरीजों पर अध्ययन किया और पाया कि Plasma therapy ने कोविड से लड़ने में मदद नहीं की।

ICMR के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव ने एक प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि इस बात पर भी चर्चा चल रही है कि क्या क्लिनिकल मैनेजमेंट गाइडलाइन्स से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और रेमडेसिवियर को भी हटाया जाना चाहिए या इन्हें शामिल रखना चाहिए, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सॉलीडेरिटी ट्रायल में चार दवाएं- हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, रेमडेसिवियर, इंटरफेरॉन-बी और लॉपिनावियर कोविड-19 के मरीजों के इलाज में बहुत कारगर साबित नहीं हुई हैं।

ICMR के महानिदेशक बलराम भार्गव का कहना है, ‘प्लाज्मा थेरेपी पर एक बड़ा ट्रायल किया गया है। इस पर नेशनल टास्क फोर्स से विचार किया गया और साथ ही एक संयुक्त निगरानी समूह से भी इस पर चर्चा की जा रही है। इसे नेशनल गाइडलाइन्स से हटाया जा सकता है। इस पर चर्चा चल रही है।’

हालांकि ICMR के इस बयान के बाद दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि इस थेरेपी ने ही कोरोना वायरस से उनकी जान बचाई है। उन्होंने कहा, ‘दिल्ली में इसका फायदा होता दिख रहा है और अब तक 2000 से ज्यादा लोगों को प्लाज्मा बैंक के जरिए प्लाज्मा दिया गया है और कइयों ने खुद प्लाज्मा का इंतजाम किया। प्लाज्मा थेरेपी प्रभावी नहीं है, ऐसा कहना गलत होगा।’

दिल्ली सरकार ने इसी साल जून के महीने में देश का सबसे पहला प्लाज्मा बैंक खोला था और कहा था कि इस थेरेपी से कोरोना से होने वाली मौत में कमी आएगी। साथ ही लोगों से प्लाज्मा डोनेट करने की अपील भी की थी। नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट के प्रमुख डॉ ओपी यादव का कहना है कि प्लाज्मा थेरेपी को लेकर आईसीएमआर और दिल्ली सरकार की तरफ से अलग-अलग बातें कहीं जा रही हैं। कहीं न कहीं इसमें एक राजनीति भी नजर आती है लेकिन इसे तकनीकी बिंदु से भी देखा जाना चाहिए।

वे कहते हैं, ‘किसी भी कोविड-19 के मरीज को प्लाज्मा थेरेपी 72 घंटों में दी जानी चाहिए और अगर इसे छह या सात दिन बाद दिया जाता है तो इसका फायदा नहीं होता है। सही चीज सही समय पर इस्तेमाल की जाए तो इसकी उपयोगिता हो सकती है। एक हाई न्यूट्रालाइजिंग एंटीबॉडी प्लाज्मा वाले डोनर से मरीज को जल्द फायदा मिल सकता है और वो उसके लिए एक तरह से पैसिव इम्यूनिटी या प्रतिरोधक क्षमता बना देता है। लेकिन अगर कोई लो न्यूट्रालाइजिंग एंटीबॉडी वाला डोनर है तो उससे मरीज को फायदा नहीं होगा।’
लेकिन वे ये भी बताते हैं कि प्लाज्मा थेरेपी से एलर्जी-रिएक्शन होने की भी आशंका हो सकती है। ट्रांसफ्यूजन से संबंधित लंग-इन्जरी हो सकती है। शरीर में दाने आ सकते हैं और अगर अगली बार आपका ब्लड ट्रांसफ्यूजन हो तो बॉडी रिएक्ट भी कर सकती है। दरअसल ब्लड ट्रांसफ्यूजन बहुत गंभीर माना जाता है और इसके नुकसान भी होते हैं।

उनके अनुसार जब ये वायरस आया उन दवाओं को दिया जाने लगा जो कारगर साबित होती लग रही थीं और उन्हें इमरजेंसी यूज ऑथोराइजेशन के तहत इस्तेमाल किया गया था। इसी में एक कोशिश प्लाज्मा बैंक भी था, लेकिन अब हम देख रहे है कि सोलिडेरिटी ट्रायल के तहत चार दवाई हटाई जा रही है, तो ऐसे में जब उस समय जितनी जानकारी थी वैसे ही कदम उठाए जा रहे थे।

वो कहते हैं, ‘अब प्लाज्मा थेरेपी को लेकर आईसीएमआर और दिल्ली सरकार के पास जो डेटा है वो वैज्ञानिकों को देना चाहिए ताकि वो इसका सही आकलन कर सकें, क्योंकि अब आर्थिक गतिविधियां शुरू हो गई हैं, कहीं किसान प्रदर्शन कर रहे हैं, राजनीतिक रैलियां चल रही हैं, वहीं सर्दियां शुरू हो रही हैं और हम प्रदूषण का खतरा भी बढ़ता देख रहे हैं। ऐसे में अभी कोरोना की दूसरी लहर आना बाकी है। हालांकि संक्रमितों की संख्या कम हो रही है लेकिन स्थिति गंभीर है।’ वे कहते हैं, ‘लोगों को ही एहतियात बरतनी होगी, क्योंकि वैक्सीन कब आएगी, कितनी और कब तक प्रभावी होगी ये देखना होगा।’ 

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