नई दिल्ली। बच्चों और किशोरों में कोरोनावायरस के इलाज को लेकर सरकार ने अपनी गाइडलाइंस (Government New Guideline for Children Coronavirus Treatment) में बदलाव किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि बच्चों के इलाज में सरकार ने साफ कर दिया है कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को इस्तेमाल न किया जाए। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (monoclonal antibody) इंजेक्शन से दी जाती है.
सरकार के मुताबिक कोरोनावायरस (Coronavirus) संक्रमित हुए व्यक्ति का टेस्ट पॉजिटिव आने के पहले दिन ही इंजेक्शन के जरिए कोरोनावायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडी दे दी जाती है। भारत में कई वयस्कों में यह इलाज किया जा रहा है लेकिन सरकार ने साफ कर दिया है कि बच्चों के इलाज में इस तकनीक का इस्तेमाल ना हो। इसके अलावा बच्चों में स्टेरॉयड (steroid) का यूज करते वक्त सतर्क रहने की सलाह दी गई है। गाइडलाइंस के मुताबिक बच्चों में अगर स्टेरॉयड (steroid) दिए जाएं तो 10 से 14 दिन की अवधि में उन्हें धीरे-धीरे कम करके बंद कर देना चाहिए।
होम आइसोलेशन में रहने वाले और अस्पताल में भर्ती बच्चों को कोई भी दवा देने की जरूरत नहीं है। ऐसे बच्चे जिन्हें कोरोना (Coronavirus) के हल्के लक्षण हैं, उन्हें बुखार होने पर पेरासिटामोल दिए जाने की सलाह दी गई है। यह दवा 4 से 6 घंटे पर जरूरत के हिसाब से रिपीट की जा सकती है। अगर बच्चे को टेस्ट कराने पर बैक्टीरियल इनफेक्शन निकले, तभी उन्हें एंटीबायोटिक दवाएं देने की सलाह दी गई है अन्यथा नहीं।
ऐसे बच्चे जिनमें घर में रहने पर ऑक्सीजन सैचुरेशन 94 से कम हो जाए और उनके दिल की धड़कन या सांस की गति तेज चल रही हो या फिर उन्हें कोई और बीमारी हो उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती करने की सलाह दी गई है। जो बच्चे कोरोना संक्रमित (Coronavirus) होने की वजह से अस्पताल में भर्ती हों और उनकी तबियत में सुधार न हो रहा हो तो ऐसे बच्चों का कंपलीट ब्लड काउंट इंफेक्शन जानने के लिए BC, ESR, BLOOD GLUCOSE (ईएसआर, ब्लड ग्लूकोज लेवल) और साथ ही साथ छाती का एक्सरे कराने की सलाह दी गई है।
वहीं अगर बच्चे की हालत बेहद गंभीर है यानी उसे आईसीयू की जरूरत पड़ रही है तो इन टेस्ट के अलावा उसे जरूरत के मुताबिक (CRP, LFT, KFT, SERUM FERETIN, D-DIMER) सीआरपी, एलएफटी, केएफटी, सिरम फेरेटिन और डी डायमर टेस्ट भी करवाना चाहिए।
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