जयपुर । त्योहारों का सीजन एक बार फिर शुरू हो गया है लेकिन कोरोना महामारी की वजह से बाजारों की रंगत फीकी पड़ी हुई है। लॉकडाउन की वजह से पिछले करीब चार महीनों से सब कुछ बंद पड़ा हुआ है। लॉकडाउन का असर बाजारों पर सबसे ज्यादा पड़ा है। जोखिम क्षेत्र वाले बाजार अब भी बंद है। खुले बाजारों में भी सन्नाटा पसरा है। ग्राहकों के अभाव में दुकानों का खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा है। राजस्थान में सावन का विशेष महत्व है। महिलाओं के श्रृंगार के सामान, लहरिया आदि खूब बिक्री होती है, लेकिन इस बार कोरोना ने सबके अरमानों पर पानी फेर रखा है।
शहर के सराओगी मेनशन न्यू गेट के बाहर बबलू महिलाओं के हाथ पर मेहंदी लगाने का काम करते हैं। लेकिन इस बार ग्राहकी नहीं है। बबलू हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में बताते हैं- “हर साल जुलाई से अगस्त तक एक फुटपाथ पर बैठने वाला 28 से 30 हजार कमा लेता था, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के कारण मेंहदी की रंगत फीकी पड़ी हुई है। पिछले सालों की तुलना में इस बार कमाई बहुत कम हो रही है, तीज का त्योहार नजदीक आने पर भी महिलाएं मेंहदी लगवाने के लिए नहीं आ रही हैं।” यह केवल बबूल की कहानी नहीं है। जयपुर में ऐसे सैंकड़ों लोग है, जो फुटपाथ और पर्यटक स्थलों के बाहर बैठकर महिलाओं के हाथों पर मेहंदी लगाकर और अन्य जरुरत की वस्तुएं बेचकर अपनी जीवन चलाते हैं। सभी लोग संकंट का सामना कर रहे हैं।
शहर के परकोटे क्षेत्र में कपड़ों की दुकान करने वाले विष्णु टांक ने बताते हैं- “सावन में लहरिया साड़ी व सूट की डिमांड काफी ज्यादा रहती है और पूरे महीने दुकान पर महिलाओं की भीड़ रहती है। दुकान पर पैर रखने तक को जगह नहीं होती है लेकिन इस बार दुकान खाली पड़ी हुई है। धंधा खत्म सा हो गया है और इस नुकसान का अंदाजा लगाना मुश्किल है।”
ऐसे ही हालात मिठाइयों की दुकानों के भी है। जयपुर में सावन माह में सबसे ज्याद बिक्री घेवर की होती है। संजय मार्केट में पिपलिया घेवर के नाम से मशहूर दुकान पर सावन में घेवर खरीदने के लिए लोगों की भीड़ रहती है। लेकिन इस बार भीड़ गायब है। आर्थिक तंगी से गुजर रहे लोग अब केवल दैनिक जरुरत वस्तुओं तक ही सीमित है। मिठाई की दुकान चलाने वाले दुकानदार सत्यनारायण पिपलिया के अनुसार- “हर साल जुलाई से अगस्त तक लगभग तीन लाख रुपये के घेवर की बिक्री होती है लेकिन इस बार कोरोना की वजह से सब कुछ खराब हो गया है।”
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