– डॉ. प्रभात ओझा
देश में कोरोना की वैक्सीन का परीक्षण अंतिम चरण में है। सम्भव है कि अगले वर्ष के प्रारम्भ में ही इसे आम लोगों के लिए सुलभ कराया जा सके। रूस ने तो इसी साल अक्टूबर से ही कोरोना के टीकाकरण का अभियान शुरू करने की योजना बनाई है। यह अलग बात है कि दुनिया भर में रूस की वैक्सीन को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। कई देशों ने कोरोना की वैक्सीन बनाने की रूस की प्रक्रिया पर शक जाहिर किया है। उसपर वैक्सीन के सूत्र चुराने के भी आरोप हैं। बहरहाल, यह सब होता रहता है। बहस का नया मुद्दा यह हो चला है कि दुनिया से कोरोना की समाप्ति हो भी पायेगी अथवा नहीं। कारण खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन ही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख डॉ. टेड्रोस एडोनोम गेब्रिएसस ने यह तो उम्मीद जाहिर की है कि कोविड-19 की वैक्सीन मिल सकती है। साथ ही यह भी कहा है कि अभी इसकी कोई अचूक दवा नहीं है। गेब्रिएसस यह भी जोड़ते हैं कि शायद इसकी अचूक दवा कभी न मिल सके।
डॉ. टेड्रोस एडोनोम गेब्रिएसस पहले भी कई बार इस तरह का शक जाहिर कर चुके हैं। उनके तर्ज पर दुनिया के कई देश और भारत में भी यह कहा जाता है कि मुमकिन है कि लोगों को कोरोना के साथ ही जीना पड़े। हालांकि इसका जो सकारात्मक अर्थ लिया जाता है, वह ये है कि कोरोना भी दूसरे रोगों के साथ सामान्य ढंग से लिया जायेगा और इसका इलाज होता रहेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष का कथन इसी अर्थ में है, तो ठीक है। वैसे वे तो कुछ और ही कहना चाहते हैं। वह कहते हैं कि कोरोना दूसरे वायरस से बिल्कुल अलग है। वह खुद को बदलता रहता है। मौसम बदलने से भी कोरोना पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। यह दिख भी रहा है कि विश्व भर में अलग-अलग तापमान के बावजूद कोरोना किसी भी असर से प्रभावित नहीं हो रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष के ताजा बयान के आलोक में देखें तो जुलाई की अंतिम तिथि तक दुनिया भर में एक करोड़ 81 लाख से अधिक लोग कोरोना वायरस से प्रभावित हो चुके हैं। दुखद यह है कि इस तिथि तक 6 लाख, 90 हज़ार से अधिक मरीज अपने प्राण गंवा चुके हैं। संक्रमण के दूसरे और तीसरे चरण में यह रोग और अधिक सक्रिय हो चुका है। इन जगहों में हमारा देश भारत भी शामिल है। हमारे यहां इससे पड़े प्रभाव से निपटने के लिए आम जन को तरह-तरह की सहायता दी जा रही है। दुनिया में सबसे अधिक प्रभावित अमेरिका ने तो कोरोना वायरस के अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव को कम करने के लिए इस तिमाही में 947 अरब डॉलर कर्ज लेने की योजना तक बना ली है। कहने का सबब यह है कि हर देश कोरोना से संघर्ष के लिए उपाय खोज रहे हैं।
कोरोना से निजात पाने का उपाय इसका इलाज ही है। आर्थिक उपाय तो तात्कालिक ही हैं। इसीलिए हर देश अपने नागरिकों का स्वास्थ्य परीक्षण और मरीजों की चिकित्सा पर जोर दे रहा है। संयुक्त अरब अमीरात के स्वास्थ्य मंत्री की मानें तो उनके यहां 50 लाख लोगों का कोरोना टेस्ट किया जा चुका है। वहां इस रोग से ठीक होने की दर 90 प्रतिशत है। यूएई का दावा सच है तो भी देखना होगा कि उसकी आबादी सिर्फ 96 लाख है। बड़ी आबादी के देशों में जांच भी एक बड़ा काम है। फिर मुख्य बिंदु वही कि हर देश का अपना प्राकृतिक वातावरण भी है। शायद इसलिए इस रोग का प्रसार और लोगों के ठीक होने की अलग-अलग दर भी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने बयानों के लिए पहले भी कई देशों के निशाने पर आ चुका है। प्रारम्भ में उसपर चीन के पक्ष में रोग को छिपाने का भी आरोप लगा। इस कारण अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन को दिया जाने वाला अपना अंशदान भी बंद कर चुका है।
बहरहाल, संगठन के ताजा बयान की सिर्फ इस कारण अनदेखी की जाय, ठीक नहीं होगा। हम कामना करें कि अलग-अलग जगहों पर खोजा जा रहा वैक्सीन, प्राकृतिक वातावरण के अनुकूल कारगर साबित हो। तब तक तो कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए आपस में भौतिक दूरी, हाथों को ठीक तरह से धोने और मास्क पहनने को जीवन का हिस्सा बना ही लेना चाहिए।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार की पत्रिका `यथावत’ के समन्वय सम्पादक हैं।)
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