नई दिल्ली । भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी नेपाल की पांच दिन की आधिकारिक यात्रा पूरी कर रविवार का स्वदेश लौट आए। इस दौरे का उद्देश्य भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना था। हालांकि, पिछले चार साल से रुकी हुई गोरखा सैनिकों की भर्ती को फिर से शुरू करने पर कोई स्पष्टता नहीं आई है। सेना की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया, “यह दौरा तय लक्ष्यों से आगे बढ़कर सफल रहा। इसने दोनों देशों की सेनाओं के बीच शांति, सुरक्षा और साझेदारी के प्रति साझा प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।”
उच्च स्तरीय मुलाकातें, लेकिन गोरखा भर्ती पर चुप्पी
नेपाल दौरे पर जनरल द्विवेदी ने वहां के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, रक्षा मंत्री मणबीर राय और नेपाली सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल से मुलाकात की। लेकिन गोरखा सैनिकों की भर्ती पर किसी आधिकारिक बयान या मीडिया रिपोर्ट में कोई चर्चा नहीं की गई। नेपाल के मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रधानमंत्री ओली ने द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत करने पर जोर दिया। यह दौरा ऐसे समय हुआ है जब भारत-नेपाल संबंधों में तनाव देखा जा रहा है और नेपाल में चीन की बढ़ती दिलचस्पी ने चिंताओं को बढ़ा दिया है।
गोरखा भर्ती पर विवाद
गोरखा सैनिकों की भर्ती 2020 में कोविड-19 महामारी और 2021 में लागू हुई अग्निवीर योजना के कारण रुकी हुई है। अग्निवीर योजना के तहत सैनिकों को चार साल के लिए भर्ती किया जाता है, जिसमें से केवल 25 प्रतिशत को ही स्थायी सेवा में शामिल किया जाता है। ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल ने इस योजना पर आपत्ति जताई है और इसे 1947 के भारत-नेपाल-ब्रिटेन त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन बताया है। नेपाल ने चार साल की सेवा के बाद गोरखा सैनिकों की पुन: रोजगार योग्यता पर भी चिंता जताई है। फिलहाल, भारतीय सेना में लगभग 32,000 नेपाली गोरखा सैनिक कार्यरत हैं। 2020 के बाद से करीब 15,000 गोरखा सैनिक सेवा से सेवानिवृत्त हुए हैं, लेकिन उनकी जगह नई भर्तियां नहीं हुईं। इससे पहले, नेपाल से सालाना भर्ती 1,500 से 1,800 के बीच होती थी।
स्वतंत्रता के समय गोरखा बटालियनों में 90 प्रतिशत सैनिक नेपाल के थे और शेष भारतीय थे। वर्तमान में यह अनुपात 60:40 है। स्थिति से निपटने के लिए सैन्य हलकों में चल रहे सुझावों में से एक यह था कि गोरखा बटालियनों की संख्या धीरे-धीरे कम की जाए और भारत के गोरखाओं की संख्या बढ़ाई जाए। भारतीय सेना की गोरखा ब्रिगेड में कुल 39 गोरखा राइफल्स (जीआर) बटालियन शामिल हैं जो सात पैदल सेना रेजिमेंट बनाती हैं – इनमें 1 जीआर, 3 जीआर, 4 जीआर, 5 जीआर 8 जीआर, 9 जीआर और 11 जीआर शामिल हैं। उनका इतिहास अप्रैल 1815 का है, जब 1 जीआर को तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल आर्मी के हिस्से के रूप में स्थापित किया था। 11 जीआर स्वतंत्रता के बाद गठित एकमात्र रेजिमेंट है, जिसमें ब्रिटेन को आवंटित बटालियनों से गोरखा सैनिकों को शामिल किया गया था, लेकिन उन्होंने जाने का विकल्प नहीं चुना।
ऐतिहासिक संबंधों पर चीन की छाया
नेपाल में भारतीय सेना के लिए गोरखा सैनिकों की भर्ती ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रही है। लेकिन हाल के वर्षों में नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव ने भारत-नेपाल संबंधों पर असर डाला है। चीन ने न केवल नेपाली सेना को हथियार और वाहन उपलब्ध कराए हैं, बल्कि उसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत जोड़ने का भी प्रयास किया है। इसके अलावा, भारत-नेपाल-चीन त्रिजंक्शन पर सीमा विवाद भी तनाव का कारण बना हुआ है।
भारत-नेपाल सैन्य सहयोग
भारत, नेपाल की सेना को आधुनिक बनाने के लिए उसे उपकरण और प्रशिक्षण प्रदान करता रहा है। भारतीय सेना द्वारा नेपाल को ध्रुव और चीता हेलीकॉप्टर, INSAS राइफल और माइंस से बचाने वाले वाहन भी दिए गए हैं। नेपाली सेना प्रमुख को मानद भारतीय सेना प्रमुख का खिताब और इसी तरह भारतीय सेना प्रमुख को नेपाली सेना के मानद जनरल का खिताब देने की परंपरा दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंधों को दर्शाती है। हालांकि जनरल द्विवेदी का दौरा सफल बताया गया है, लेकिन गोरखा सैनिकों की भर्ती को लेकर जारी सस्पेंस भारत-नेपाल रक्षा संबंधों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है।
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