नई दिल्ली (New Delhi) । बिहार (Bihar) में राजनीतिक बदलाव, जेडीयू (JDU) में बदलाव, आरजेडी और जेडीयू के संबंध में बदलाव, जेडीयू और बीजेपी के रिश्ते में बदलाव- बदलाव की कई अटकलें पटना से दिल्ली तक चल रही हैं। जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की दिल्ली में शुक्रवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी (national executive) और राष्ट्रीय परिषद मीटिंग (national council meeting) के लिए जदयू नेताओं का दिल्ली पहुंचना शुरू हो चुका है। जेडीयू के सीनियर नेताओं और टॉप पदाधिकारियों की गुरुवार शाम मीटिंग है जिसमें शुक्रवार के एजेंडा को अंतिम रूप दिया जाएगा। लेकिन तमाम अटकलों के बावजूद नीतीश कुमार ने 16 महीने से महागठबंधन सरकार का टोटल कंट्रोल अपने पास रखा है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू यादव और कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी पर नीतीश किस तरह से हावी हैं यह बताने के लिए दो प्रसंग ही काफी हैं।
सबसे पहले लालू यादव की आरजेडी की बात। अगस्त 2022 में जब नीतीश बीजेपी और एनडीए का साथ छोड़कर आरजेडी और कांग्रेस के साथ आए तो सबसे पहले नीतीश और तेजस्वी ने शपथ ली। फिर विस्तार में 31 और मंत्री जोड़े गए जिसमें 16 आरजेडी, 11 जेडीयू, 2 कांग्रेस, 1 हम और 1 निर्दलीय थे। लेकिन दो हफ्ते के अंदर आरजेडी कोटे के पहले मंत्री कार्तिक सिंह का विकेट गिर गया। वारंट जारी रहते मंत्री बनने पर विवाद के बाद अनंत सिंह के करीबी कार्तिक सिंह ने इस्तीफा दे दिया।
फिर आया आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह का नंबर। सुधाकर सिंह ने कृषि विभाग में भ्रष्टाचार पर मंत्री रहते सार्वजनिक बयानबाजी शुरू कर दी जिससे सरकार की फजीहत हुई। एक बार तो सुधाकर ने कह दिया कि कृषि विभाग में सारे चोर हैं और वो चोरों के सरदार हैं और उनके ऊपर भी कई सरदार हैं। इसके बाद एक कैबिनेट मीटिंग में नीतीश ने जब इस बयान पर जवाब-तलब किया तो उलटे सुधाकर ही उखड़ गए और कहा कि वो अपने बयान पर कायम हैं और इस्तीफा देने को तैयार हैं। तब तो ये नहीं हुआ लेकिन कार्तिक सिंह के इस्तीफे के 40-42 दिन बाद गांधी जयंती के दिन सुधाकर सिंह ने भी पद से इस्तीफा कर दिया।
आरजेडी कोटे के दो मंत्रियों का पद 16 और 15 महीने से खाली है लेकिन नीतीश कुमार से ना लालू यादव और ना तेजस्वी यादव अपने कोटे के दो मंत्रियों का पद भरवा पाए। और ऐसा भी नहीं है कि इस बीच कोई नया मंत्री नहीं बना। जेडीयू में जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तान आवामी मोर्चा (हम) के विलय को लेकर दबाव के विरोध में जब मांझी के मंत्री बेटे संतोष सुमन ने जून में इस्तीफा दिया तो तीन दिन के अंदर जेडीयू ने अपने विधायक रत्नेश सदा को मंत्री बना दिया। तब भी आरजेडी को लगा था कि उसके कोटे की खाली कुर्सी भरी जाएगी लेकिन नीतीश ने कोई तनाव नहीं लिया।
दूसरा प्रसंग कांग्रेस से जुड़ा है। जब 16 अगस्त, 2022 को नीतीश ने महागठबंधन सरकार की कैबिनेट का विस्तार किया तो कांग्रेस से दो नेताओं को ही मंत्री बनाया। अफाक आलम और मुरारी गौतम। कांग्रेस तब भी अपने विधायकों की संख्या के हिसाब से 4 मंत्री गिन रही थी लेकिन नीतीश ने उनकी गिनती बिगाड़ दी। जब पटना में इंडिया गठबंधन की पहली मीटिंग हुई तो राहुल गांधी ने नीतीश से दो और मंत्री बनाने की बात की जिसका वीडियो भी वायरल हुआ था। बिहार कांग्रेस के नेताओं ने जब ज्यादा प्रेशर दिया तो नीतीश ने कहा कि वो लोग आरजेडी से बात कर लें। समझिए उस आरजेडी से बात करने कहा गया जो अपने दो इस्तीफा दे चुके मंत्रियों के बदले नीतीश से नए मंत्री नहीं बनवा पा रही है। अखिलेश प्रसाद सिंह कहते-कहते थक गए लेकिन कांग्रेस के मंत्रियों की संख्या नीतीश ने नहीं बढ़ाई।
नीतीश कुमार के लिए आरजेडी के दो रिप्लेसमेंट मंत्री और कांग्रेस के दो नए मंत्रियों को कैबिनेट में ले लेना बड़ी बात नहीं है। लेकिन नीतीश दोनों पार्टियों के इस दबाव को लगातार नाकाम करके संदेश देते रहे हैं कि सरकार उनके हिसाब से ही चलेगी। कहने को ये छोटी बात लगे लेकिन जब सीएम विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी से हो और सरकार पहले और चौथे नंबर की पार्टी के विधायकों के समर्थन पर टिकी हो तो उसका ना पहले नंबर की सुनना और ना चौथे को भाव देना एक तरह का राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन है। नीतीश इस मामले में लालू यादव, तेजस्वी यादव, राहुल गांधी पर पूरी तरह हावी हैं। लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश के इस रुख में कोई बदलाव आएगा या उनकी पार्टी का ही रुख बदलने वाला है, ये सब आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा।
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