मुंबई (Mumbai)। बदलते मौसम (changing seasons) में सिर्फ बच्चे ही नहीं बड़े लोग भी बीमार (Sick) पड़ रहे हैं. सर्दी, जुकाम, बुखार, डेंगू मलेरिया समेत कई तरह के मरीज आज सैकड़ों की संख्या में अस्पतालों में पहुंच रहे है. वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो लक्षणों को देखकर बिना डॉक्टर की सलाह के मेडिकल स्टोरों से खुद ही एंटीबायोटिक दवाएं और पैरासिटामोल खरीद कर खा रहे हैं. ऐसे कई मामले अस्पतालों में आ रहे हैं जिनमें बीमारी से ठीक होने के बाद मरीजों को लिवर संबंधी समस्याएं हो रही हैं.
WHO की ताजा एक रिसर्च के मुताबिक एक नए आंकड़े काफी ज्यादा हैरान करने वाले हैं. अक्सर लोग बुखार या कोल्ड-कफ के दौरान एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं.कफ-कोल्ड, शरीर में दर्द, बुखार या एलर्जी में अक्सर लोग एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर लेते हैं. अगर आप भी ऐसा कुछ करते हैं तो बिल्कुल भी न करें. क्योंकि WHO की हालिया रिसर्च काफी डराने वाली है. इस दवा का ज्यादा इस्तेमाल इंसानियत के सामने ‘एंटी माइक्रो-बियल रेजिस्टेंस’ का खतरा पैदा हो रहा है जो किसी भी महामारी से बड़ा खतरा बनकर उभरा है.
क्या है AMR?
एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बैक्टीरिया को मारने के लिए किया जाता है. लेकिन अगर कोई व्यक्ति बार-बार एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहा है तो बैक्टीरिया उस दवा के खिलाफ अपनी इम्युनिटी डेवलप कर लेती है. इसके बाद इसे ठीक करना काफी ज्यादा मुश्किल होता है. इसे ही एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस कहते हैं. ऐसी स्थिति में इलाज तो ठीक से हो नहीं पाता बल्कि लिवर में टॉक्सिन जमा होने लगता है. साथ ही साथ लिवर डैमेज होने का खतरा भी बढ़ जाता है. इसकी शुरुआत फैटी लिवर से होती है. और धीरे-धीरे यह सिरोसिस- फाइब्रोसिस में बदल जाता है.
शरीर का सबसे महत्वपूर्ण ऑर्गन लिवर होता है. इसका वजन 1.5 किलो के आसपास होता है. लिवर का काम होता है शरीर की गंदगी को फिल्टर करना यानि आपके शरीर को डिटॉक्स करने का काम लिवर करता है. तला-भुना और मसालेदार खाना खाने से बचना चाहिए. जंक, रिफाइंड शुगर खाने से बचना चाहिए. अगर आप इन सबको ठीक समय पर कंट्रोल नहीं किए तो फैटी लिवर की बीमारी हो सकती है.
आम बोलचाल की भाषा में किसी सूक्ष्मजीव वायरस, बैक्टीरिया आदि के संक्रमण के इलाज के लिए प्रयुक्त होने वाली दवा के प्रति उस सूक्ष्मजीव द्वारा प्रतिरोध क्षमता हासिल कर लेना ही एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस है. इसके परिणामस्वरूप मानक उपचार अप्रभावी या कम असरदार रहते हैं और इससे बीमारी के फैलने तथा मृत्यु की संभावना रहती है. दवाओं के कम प्रभावी रहने से यह संक्रमण शरीर में बना रह जाता है और दूसरों में फैलने का खतरा बरकरार रहता है. इससे इलाज की लागत बढ़ती है और मृत्युदर में इजाफा होने की संभावना बनी रहती है.
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