इंदौर (Indore)। एक तरफ नगर निगम अपने तमाम प्रोजेक्टों के लिए कंसल्टेंसी एजेंसियों की नियुक्ति करता है, दूसरी तरफ दिए जाने वाले ठेकों में भी कंसल्टेंसी का अलग से प्रावधान रहता है। बावजूद इसके कई प्रोजेक्टों में तकनीकी खामियां सामने आती हैं। कल महापौर परिषद् की बैठक में पुल प्रकोष्ठ द्वारा 50 लाख रुपए साल के दिए गए ठेके पर सवालिया निशान लगे और जनकार्य तथा उद्यान प्रभारी ने इसमें कई गड़बडिय़ां पकड़ीं और संबंधित अधिकारी को फटकार भी लगाई।
नगर निगम में जो हो जाए वो कम है। रोजाना ही कोई ना कोई गड़बड़ी उजागर होती है। महापौर परिषद् की बैठक में कल 47 से अधिक प्रस्ताव मंजूरी के लिए रखे गए, जिसमें से लगभग सभी मंजूर भी कर लिए। जनकार्य और उद्यान प्रभारी राजेन्द्र राठौर ने पुल प्रकोष्ठ द्वारा एसजीएस इंडिया प्रा.लि. को दिए गए कंसल्टेंसी सर्विसेस के ठेके पर सवाल खड़े किए। शहर में बनने वाले छोटे पुलों, पुलिया कल्वर्ट के सुपर विजन, प्रबंधन की जिम्मेदारी उक्त फर्म को सौंपी गई है और बदले में नगर निगम 50 लाख रुपए साल का भुगतान करता है। टीम लीडर, सीनियर, जूनियर इंजीनियर से लेकर अन्य स्टाफ को मोटी तन्ख्वाह भी दी जाती है।
राठौर का कहना है कि बिना निगमायुक्त की सहमति से अपर आयुक्त द्वारा दो करोड़ रुपए तक के वित्तीय अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए उक्त कंसल्टेंसी फर्म को ठेका दिया गया। तब से लेकर अभी तक नगर निगम को कितना लाभ इस कंसल्टेंसी फर्म से हुआ इसकी जानकारी भी उन्होंने निगम अधिकारियों से मांगी है। पुल प्रकोष्ठ के प्रभारी अनूप गोयल से उन्होंने इस संबंध में जानकारी तो ली ही, साथ ही इस बात के लिए फटकार भी लगाई कि बापट चौराहा के पास मेघदूत गार्डन सर्विस रोड पर जिस पुल के निर्माण को मंजूरी दी गई है। वहां पर शिफ्ट की गई हाईटेंशन लाइन का टॉवर खड़ा कर दिया गया, जिसके चलते अब पुल का निर्माण संभव नहीं है और निगम अधिकारियों ने बिना मौका-मुआयना करें। इस पुलिया का टेंडर निकालकर मंजूर भी कर डाला। राठौर के मुताबिक उक्त पुल का निर्माण अत्यंत आवश्यक है। मगर अब मौके पर टॉवर बन जाने के कारण निर्माण नहीं हो सकेगा। लगभग ढाई करोड़ रुपए के इस टेंडर को फिलहाल इसी कारण रोका गया है।
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