इंदौर। प्रदेशभर में रोड और फ्लायओवर का जाल बिछाया जाएगा और अगले दो सालों में 17 हजार करोड़ के प्रोजेक्ट अमल में लाएंगे। जनप्रतिनिधियों के क्षेत्रों में भी लगभग 3 हजार करोड़ के इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े विकास कार्य होंगे। लोक निर्माण विभाग को अत्याधुनिक बनाया जाएगा और इसके लिए विभिन्न राज्यों के दौरे भी करवाएंगे और साउथ की तर्ज पर ही सडक़ों-पुलों का निर्माण होगा और हर कार्य की लगातार मॉनिटरिंग भी करवाई जाएगी। एफडीआर तकनीक से भी सडक़ों के निर्माण करवाने की योजना पर काम किया जा रहा है। अभी पिछले दिनों ही केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी मध्यप्रदेश में कई बड़े रोड प्रोजेक्टों का शुभारंभ किया और उन्होंने कहा कि जल्द ही अमेरिका से ज्यादा सडक़ों का निर्माण अकेले मध्यप्रदेश में ही हो जाएगा।
वहीं लोक निर्माण विभाग मंत्री राकेश सिंह ने भी अधिकारियों की बैठक ली और उसमें आने वाले दो से तीन वर्षों के मुताबिक प्रोजेक्ट तैयार करने के निर्देश दिए, जिस पर लगभग 17 हजार करोड़ रुपए की राशि खर्च होना है। इतना ही नहीं, फूल डेफ्त रिक्लेमिनेशन यानी एफडीआर तकनीक से भी सडक़ों का निर्माण किया जाएगा, जिसमें मौजूदा सडक़ों को बिना तोड़े उसके ऊपर ही मशीनों के द्वारा रिक्लेमिनेशन सामग्री के इस्तेमाल से नई और मजबूत रोड निर्मित की जाती है। इसी तरह अन्य राज्यों में जो तकनीक अपनाई जा रही है उसका भी अध्ययन विभाग के अधिकारियों और इंजीनियरों को करवाया जा रहा है।
तमिलनाडु और गुजरात की तकनीक का इस्तेमाल सडक़ों के पेंचवर्क करने पर किया जा रहा है, जिसके लिए एक जेट पैचर मशीन भी मंगवाई गई है। विदेशों में भी इसी तरह की मशीन की मदद से चंद मिनटों में ही पेंचवर्क यानी गडढों की मरम्मत हो जाती है। अभी पिछले दिनों भी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लोक निर्माण विभाग की समीक्षा में अन्य राज्यों में जिस तरह से इन्फ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट चल रहे हैं उनकी जानकारी लेने के निर्देश दिए थे। खासकर साउथ यानी दक्षिणी राज्यों में जिस तरह सडक़ों-पुलों के निर्माण में उच्च गुणवत्ता और बेहतर कार्य प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है उसी तरह अब मध्यप्रदेश में भी काम कराए जाएंगे। लोक निर्माण विभाग के साथ-साथ सडक़ विकास निगम और एमपी बिल्डिंग डवलपमेंट कॉर्पोरेशन के इंजीनियरों को भी नई तकनीक, परियोजना, वित्त पोषण विकल्प, जन भागीदारी, वार्षिक योजना निर्माण से लेकर अन्य मामलों का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए हैं। इसी तरह अन्य राज्यों ने जिस तरह की तकनीक इस्तेमाल की गई उसकी भी जानकारी जुटाकर तीन माह में रिपोर्ट बनाने को कहा गया है।
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