नई दिल्ली: कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन और मोदी सरकार के बीच’संविधान’ बनाम ‘आपातकाल’ के नैरेटिव की लड़ाई शुरू हो गई है. 2024 के चुनाव में इंडिया गठबंधन ने संविधान को बड़ा मुद्दा बना दिया था, जिसके चलते बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही विपक्ष के इस मुद्दे की काट निकाल ली है. संविधान बचाओ का नारा लगाने वाली कांग्रेस 18वीं लोकसभा के सत्र के पहले दिन से ही फ्रंटफुट पर नजर आ रही थी, लेकिन अब आपातकाल के बहाने मोदी सरकार और बीजेपी उसे काउंटर करती हुई नजर आ रही हैं.
कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की पार्टियों के नेता 18वीं लोकसभा के संसद सत्र के पहले दिन सदन में संविधान की कॉपी लेकर पहुंचे थे, क्योंकि 2024 का लोकसभा चुनाव संविधान के मुद्दे पर लड़ा था. राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव सहित इंडिया गठबंधन के तमाम नेता चुनाव प्रचार के दौरान कह रहे थे कि बीजेपी और मोदी सरकार अगर सत्ता में आते हैं तो संविधान बदल देंगे. बीजेपी पूरे चुनाव के दौरान इस मुद्दे को काउंटर नहीं कर सकी. इसके चलते ही बीजेपी इस बार बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा सकी और एनडीए के सहयोगी दलों के सहारे सरकार बनानी पड़ी.
संविधान के मुद्दे को विपक्ष हर हाल में बनाए रखना चाहता है, जिसके चलते ही इंडिया गठबंधन के लोकसभा सांसद संविधान की कॉपी अपने साथ लेकर संसद भवन पहुंचे और साथ ही शपथ ग्रहण के दौरान भी अपने साथ संविधान की कॉपी लिए हुए थे. सोमवार को सांसद के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शपथ ले रहे थे, उसी समय इंडिया गठबंधन के सांसद हाथों में संविधान की प्रति लहराते हुए कह रहे थे कि वे संविधान की रक्षा किसी भी कीमत पर करेंगे. संविधान बचाओ का नारा लगाने वाली कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को मोदी सरकार और बीजेपी ने आपातकाल के मुद्दे को उठाकर बैकफुट पर लाने का दांव चला है.
25 जून 1975 की देर रात कांग्रेस नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की थी. बीजेपी आपातकाल को लेकर कांग्रेस पर लगातार हमला करती रही है. ऐसे में संविधान दिखा रहे विपक्ष को बीजेपी ने आपातकाल के बहाने घेरने की रणनीति बनाई है. 18वीं लोकसभा के गठन के साथ ही बीजेपी ने आपातकाल को सियासी मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है. पिछले तीन दिनों से आपातकाल को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस को निशाने पर ले रखा है.
पीएम मोदी ने मंगलवार को 49 साल पहले लगाए गए आपातकाल के लिए कांग्रेस पर हमला किया. उन्होंने कहा कि जिस मानसिकता के कारण आपातकाल लगाया गया था वह ‘उसी पार्टी में बहुत ज़्यादा मौजूद है.’ पीएम मोदी ने कहा था कि कांग्रेस को संविधान के प्रति प्रेम का दावा करने का कोई अधिकार नहीं है.आपातकाल के काले दिन हमें याद दिलाते हैं कि कैसे कांग्रेस पार्टी ने बुनियादी अधिकारी को नष्ट किया और भारत के संविधान को रौंदा, जिसका हर भारतीय बहुत सम्मान करता है.
कांग्रेस पर निशाना साधते हुए पीएम ने कहा था कि वे अपने दिखावे के जरिए संविधान के प्रति अपने तिरस्कार को छिपाते हैं, लेकिन देश के लोगों ने उनकी हरकतों को देख लिया है और इसीलिए देश के लोग उन्हें बार-बार नकार रहे हैं. देश में जिन्होंने आपातकाल लगाया, उन्हें हमारे संविधान के प्रति अपने प्रेम का इजहार करने का कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि “ये वही लोग हैं जिन्होंने अनगिनत मौकों पर अनुच्छेद 356 लगाया, प्रेस की स्वतंत्रता को ख़त्म करने के लिए विधेयक पारित किया, संघवाद को नष्ट किया और संविधान के हर पहलू का उल्लंघन किया.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में आपातकाल लगाए जाने के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि ये सदन साल 1975 में देश में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम, उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होंने इमरजेंसी का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया.
भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के दिन को हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा. इसी दिन ही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था. आपातकाल लगाने के बाद उस समय की कांग्रेस सरकार ने कई ऐसे निर्णय लिए, जिन्होंने हमारे संविधान की भावना को कुचलने का काम किया.
18वीं लोकसभा के विशेष सत्र के उद्घाटन के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आपातकाल की निंदा किए जाने के बाद कांग्रेस को यह प्रस्ताव अप्रत्याशित लगा. इस दौरान कांग्रेस से न केवल सपा और डीएमके जैसे सहयोगियी अलग हो गए बल्कि आश्चर्यजनक रूप से तृणमूल कांग्रेस भी अलग हो गई. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रस्ताव पढ़ना शुरू किया, जिसमें विशेष रूप से इंदिरा गांधी और कांग्रेस का नाम “बाबासाहेब अंबेडकर के संविधान, अवैध गिरफ्तारी, प्रेस सेंसरशिप और अन्य ज्यादतियों पर हमले के लिए लिया गया था, तो केवल कांग्रेस के सांसदों ने ही गलियारे से विरोध किया, लेकिन सपा और टीएमसी सहित बाकी विपक्षी सांसद अपनी सीट पर ही बैठे रहे.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त बैठक को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नवनिर्वाचित सरकार की प्राथमिकताओं को सामने रखते हुए, अपने संबोधन में आपातकाल पर करारा हमला बोला. उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ महीनों में भारत एक गणतंत्र के रूप में 75 वर्ष पूरे करने जा रहा है. भारतीय संविधान बीते दशकों में हर चुनौती और कसौटी पर खरा उतरा है. देश में संविधान लागू होने के बाद भी संविधान पर कई हमले हुए हैं 25 जून 1975 को लागू किया गया आपातकाल संविधान पर सीधा हमला था. जब इसे लगाया गया तो पूरे देश में हाहाकार मच गया था, लेकिन देश ने ऐसी संवैधानिक ताकतों पर विजय प्राप्त की है.
राष्ट्रपति ने कहा कि मेरी सरकार भी भारतीय संविधान को सिर्फ शासन का माध्यम नहीं बना सकती. हम अपने संविधान को जनचेतना का हिस्सा बनाने का प्रयास कर रहे हैं. इसी के साथ मेरी सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाना शुरू किया है. राष्ट्रपति ने कहा कि आपातकाल संविधान पर सीधे सबसे बड़ा हमले था और काला अध्याय था.आपातकाल के दौरान पूरा देश अंधेरे में डूब गया था, लेकिन देश ऐसी असंवैधानिक शक्तियों को पराजित करने में पूरी तरह से सफल रहा. राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने के हर प्रयास की सभी को निंदा करनी चाहिए.
संविधान पर हमले और संविधान को कमजोर करने के आरोपों और हमलों को झेल रही बीजेपी ने बेहद सुनियोजित ढंग से इन आरोपों पर का जवाब देने का फैसला किया. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने मीडिया से कहा था कि संविधान बचाने की बात करने वालों और उसकी प्रति हाथ में रखने वालों को आईना दिखाना जरूरी है. ये वही लोग हैं, जिन्होंने संविधान को मिटाने की कोशिश की थी. जेडीयू नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि आपातकाल लगाकर संविधान को टुकड़े-टुकड़े करने वाली पार्टी को संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के बारे में बात करने का अधिकार नहीं है.
बीजेपी की तरफ से कांग्रेस को ‘संविधान-खतरे में’ वाले दांव के रूप में जवाब देने की प्रतिबद्धता का संकेत मिलता है. लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल ने इस मुद्दे का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया था, साथ ही यह भी पता चलता है कि बीजेपी इंडिया गठबंधन में मतभेदों को बढ़ाने के लिए तैयार है, क्योंकि स्पीकर के द्वारा निंदा प्रस्ताव पेश किया गया तो इंडिया गठबंधन के घटक दल में मतभेद साफ दिखा. सपा, आरजेडी सहित ऐसी कई पार्टियां रही हैं, जो आपातकाल का विरोध करके ही कांग्रेस पर निशाना साधती रही हैं. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा स्पीकर के साथ शिष्टाचार मुलाकात के दौरान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा आपातकाल पर पढ़े प्रस्ताव पर नाखुशी जताई. राहुल ने कहा कि ये चेयर से नहीं होना चाहिए था.
वहीं, सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 1975 में लगाए गए आपातकाल को याद किया था तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए सवाल उठाया कि मोदी लगातार आपातकाल का जिक्र कर कब तक शासन करने का इरादा रखते हैं. उन्होंने कहा था कि आप इसे 100 बार दोहराएंगे. आपातकाल घोषित किए बिना आप इस तरह से कार्य कर रहे हैं. इसे सामने लाकर आप कब तक शासन करने की योजना बना रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने कहा कि मोदी जी, आप विपक्ष को नसीहत दे रहे हैं. 50 साल पुरानी इमरजेंसी की याद दिला रहे हैं, पिछले 10 साल की अघोषित इमरजेंसी को भूल गए जिसका जनता ने अंत कर दिया, लोगों ने मोदी जी के खिलाफ जनमत दिया है. इसके बावजूद अगर वो प्रधानमंत्री बन गए हैं तो उन्हें काम करना चाहिए.
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