22 दिन बचे शेष :
भाजपा ने आइटी सेल को सक्रिय कर दिया है। दोनों पार्टियों की नजर आदिवासी वोट बैंक पर है, लेकिन कांग्रेस में अभी तक बिखराव दिख रहा है, जिसके चलते कांग्रेस उम्मीदवार फुन्देलाल की राह आसान नहीं लग रही है। अब मतदान के 22 शेष बचे हैं और अभी तक कांग्रेस के किसी ऐसे नेता का संसदीय क्षेत्र में दौरा व कार्यक्रम नहीं हुआ है, जिससे कार्यकर्ताओं में चुनावी जोश पैदा हो सके। जबकि भाजपा में एक महीने से पार्टी के दिग्गजों को दौरा हो रहा है और कार्यकर्ताओं को हर बूथ तक पहुंचने की जिम्मेदारी भी तय कर दी गई है। मोदी लहर में भी पुष्पराजगढ़ से बने विधायक शहडोल संसदीय क्षेत्र के अनूपपुर ज़िले की सबसे बड़ी विधानसभा पुष्पराजगढ़ जो अमरकंटक की गोद पर बसा हुआ है, पूरी तरह से आदिवासी बहुल क्षेत्र है। मोदी मैजिक या लहर में भी फुन्देलाल ने यहां से तीसरी बार विधानसभा चुनाव में बाजी मारी है। हालांकि जीत का अंतर महज 4.4 हजार मतों का रहा। इसके पूर्व भारी अंतर से जीत हासिल किया था।
फुन्देलाल सिंह मार्को लगातार तीन विधानसभा चुनाव में हैट्रिक लगाकर जीत दर्ज करने वाले इस विधानसभा क्षेत्र से पहले विधायक हो गए हैं। अभी तक के रिकार्ड अनुसार यहां से कोई भी तीसरी बार विधायक चुनकर नहीं आया है। 2023 के चुनाव में फुंदेलाल सिंह मार्को को 68020 मत प्राप्त हुए जबकि भाजपा प्रत्याशी हीरा सिंह श्याम को 63534 मत हासिल हुए थे। कांग्रेस उम्मीदवार ने 4486 मत अधिक प्राप्त करके कड़े मुकाबले में विजय प्राप्त की थी। फुन्देलाल का पुष्पराजगढ़ के आदिवासियों में प्रभाव है, लेकिन पूरे संसदीय क्षेत्र में उनका प्रभाव चलेगा कि नहीं यह चुनाव परिणाम आने के बाद स्पष्ट होगा। मोदी मैजिक के सहारे दूसरी बार लगातार लोकसभा का चुनाव लड़ रहीं हिमांद्री पिछले चुनाव में चार लाख से अधिक मतों से जीती थीं, लेकिन इस बार उनके गृहग्राम के फुन्देलाल मैदान में हैं तो उन्हें चुनौती भी मिल सकती है और मिलनी भी चाहिए क्योंकि पांच वर्ष में हिमांद्री ने अपने गृहग्राम सहित अनूपपुर जिले के लिए कुछ उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है।
भाजपा उम्मीदवार का नहीं है जुड़ाव
भाजपा उम्मीदवार हिमांद्री सिंह के ऊपर मोदी मैजिक इतना हावी है कि वह अपने को जीता मानकर ही चल रही हैं। प्रचार पर निकल रही हैं, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं से उनका जुड़ाव उस तरह अभी भी नहीं है, जो चुनाव के समय होना चाहिए। कार्यकर्ता मोदी और कमल के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन उनके मन में कहीं न कहीं यह टीस तो है कि सांसद उम्मीदवार चुनाव के समय भी उनको नहीं पूछ रही हैं। इस टीस का फायदा कांग्रेस चाहे तो ले सकती है, लेकिन वहां तो और बहुत बड़ा गड्ढा है। इस तरह की स्थिति में मतदाता चाहकर भी अपने मन की नहीं कर सकता, क्योंकि उनके पास अभी तक मजबूत विकल्प ही नहीं है।
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