भोपाल। खंडवा लोकसभा (Khandwa Lok Sabha) समेत रैगांव, जोबट, पृथ्वीपुर विधानसभा सीट पर अक्टूबर माह में ही उपचुनाव सिमट जाएंगे। दोनों पार्टियों ने किसी भी सीट पर उम्मीदवार घोषित नहीं किया लेकिन भाजपा (BJP) ने अकेली खंडवा सीट पर मुख्यमंत्री के साथ कैबिनेट और संगठन की फौज उतार दी है। वहीं, कांग्रेस अगले सप्ताह से मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, उपचुनाव को लेकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (Pradesh Congress Committee) के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री पिछले सप्ताह राज्य स्तरीय बैठक ले चुके है। अब मैदान संभालने की तैयारी की जा रही है। अभी तक कांग्रेस (Congress) ने खुले तौर पर चुनाव प्रचार का ऐलान नहीं किया।
महंगाई, बेरोजगारी और कोरोना संकट याद दिलाएगी कांग्रेस
पार्टी प्रवक्ताओं के मुताबिक, कांग्रेस उपचुनाव में महंगाई, बेरोजगारी और कोरोना संकट जैसे हालातों पर सरकारी की नाकामी जनता को बताएगी। प्रचार या सभाओं में मोदी-शिवराज से ज्यादा लोकल नेताओं को टारगेट पर रखा जाएगा। इसी तरह लोकल मुद्दों में सड़क, पेयजल, बिजली समेत किसान कर्ज, प्राकृतिक आपदा, सूखे की मार, बढ़ते अपराध आदि मामले उठाएंगी।
कांग्रेस की रैली न सभा
खंडवा लोकसभा उपचुनाव को लेकर क्षेत्र की सभी 8 विधानसभा सीटों पर भाजपा सक्रिय हो चुकी है। तारीखों के ऐलान से पहले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चार बार क्षेत्र का दौरा कर चुके है। वे बुरहानपुर, खंडवा, पंधाना, झिरन्या व भीकनगांव में आमसभा के साथ रोड शो कर गए। एक-एक बार गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा आ चुके है। इसके अलावा चारों जिलों में जिले के प्रभारी मंत्री व उपचुनाव में विधानसभा वार बनाए गए प्रभारी 4-4 बार बैठकें ले चुके हैं। इधर, कांग्रेस से किसी भी नेता ने रैली, सभा या संगठन स्तर पर बैठकें नहीं की है।
आदिवासी वोटर्स पर भाजपा का फोकस
खंडवा लोकसभा क्षेत्र में बुरहानपुर, नेपानगर, खंडवा, पंधाना, मांधाता के अलावा देवास जिले की बागली और खरगोन जिले की भीकनगांव व बड़वाह विधानसभा सीट शामिल है। इनमें बुरहानपुर, बड़वाह, भीकनगांव सीट कांग्रेस के कब्जे में है। वहीं, मांधाता, नेपानगर सीट दलबदल के दौरान कांग्रेस ने गंवाई है। यानी 8 में से 5 सीटों पर कांग्रेस का अच्छा-खासा वर्चस्व है। इन पांच सीटों के अलावा शेष बागली, खंडवा और पंधाना में आदिवासी वोटर्स का परसेंट ज्यादा है। यह कांग्रेस के परंपरागत वोटर्स है। इसलिए भाजपा आदिवासियों को साधने में जुटी है। दूसरी तरफ कांग्रेस के पास पहले से गुर्जर, राजपूत और आदिवासी समाज के विधायक है।
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