डेस्क: राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सुलह के बाद से कांग्रेस चुनावी एक्शन में है. राज्य में इस साल के आखिर में होने वाला विधानसभा का चुनाव कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से बड़ा है, क्योंकि यहां तमाम विवाद और गहलोत-पायलट में फूट के बाद पार्टी के सामने सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है. इस चुनौती से पार पाने के लिए अब कांग्रेस बड़े स्तर पर चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है. पार्टी ने कल 25 जिलों में जिलाध्यक्षों समेत कई संगठनात्मक नियुक्तियां कीं हैं.
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने राज्य में 21 उपाध्यक्ष, साथ ही पार्टी संगठन में 48 महासचिव और 122 सचिवों की नियुक्त की लिस्ट जारी की, जिसे कांग्रेस चीफ मल्लिकार्जुन खरगे ने अपनी मंजूरी दी. कांग्रेस के इस चुनावी एक्शन का सीधा मतलब है कि वह अब अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में नई जान फूंक देना चाहती है. इतने बड़े लेवल पर नियुक्तियों से कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा, जिससे पार्टी की सत्ता में वापसी की राह आसान होगी.
बड़ी बात यह है कि प्रदेश में की गई संगठनात्मक नियुक्तियों में गहलोत और पायलट खेमे के नेताओं को भरपूर जगह दी गई है. साफ है कि चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस अब राज्य में कोई नया बखेड़ा खड़ा नहीं करना चाहती. जो लिस्ट सामने आई है, उसमें पालयल खेमे के सीताराम अग्रवाल को कोषाध्यक्ष और ललित तूनवाल को संगठन का महासचिव घोषित किया गया है.
बताया जा रहा है कि पायलट खेमे से पांच उपाध्यक्ष और पांच ही महासचिव बनाए गए हैं. इसके अलावा कुल 122 में से पाटलट खेमे से करीब 20 नेताओं को सचिव के पद से नवाजा गया है. इस तरह से पायलट की नाराजगी को दूर करने की हाईकमान ने पूरी कोशिश की है.वहीं, लिस्ट में अशोक गहलोत गुट का भी अच्छा खासा दबदबा है, उनके करीबी नेताओं को संगठन में काफी अहमियत मिली है.
कांग्रेस पिछले महीने ही 85 सचिवों की नियुक्ति की लिस्ट जारी करना चाहती थी. यह लिस्ट तैयार भी हो गई थी, लेकिन दिल्ली दरबार ने गहलोत-सचिन में विवाद के चलते इस लिस्ट को रोक दिया था. यह नियुक्तियां लंबे समय से लंबित थीं. सूबे में जिलाध्यक्षों के पद पायलट खेमे की बगावत की वजह से खाली पड़े थे. लिस्ट से यह भी साफ है कि कांग्रेस अब चुनाव जीतने के लिए हर हाल में कार्यकर्ताओं को तरजीह देना चाहती है.
राजस्थान में कर्नाटक मॉडल
कांग्रेस को इसी साल कर्नाटक विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड जीत हासिल हुई, इसी के बाद से पार्टी का जोश हाई है. कर्नाटक की जीत को कांग्रेस अब राजस्थान में दोहराना चाहती है. इसीलिए संगठन से लेकर नेताओं के बीच संतुलन बनाने के लिए कर्नाटक फॉर्मूला ही कांग्रेस आजमा रही है.
कांग्रेस ने राजस्थान में जम्बो संगठन बनाने का मॉडल कर्नाटक से लिया है. कर्नाटक में भी कांग्रेस ने भारी-भरकम प्रदेश संगठन बनाकर सभी गुट के नेताओं को खुश किया था. इसी तरह से राजस्थान में भी कांग्रेस ने प्रदेश संगठन में करीब 200 लोगों की टीम घोषित की है. कांग्रेस ने 21 उपाध्यक्ष, 48 महासचिव और 122 प्रदेश सचिव राजस्थान में बनाए हैं.
कांग्रेस ने राजस्थान में जम्बो संगठन के जरिए गहलोत-पायलट ही नहीं बल्कि जितने भी खेमे हैं, उन सभी को खुश करने की रणनीति अपनाई है. इतना ही नहीं प्रदेश के सभी जिलों से नेताओं को संगठन में रखा गया है और सभी जाति और धर्म को भी जगह दी गई है. इस तरह क्षेत्रीय और सामाजिक संतुलन बनाया गया है.
वहीं, कर्नाटक चुनाव से पहले कांग्रेस ने सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार में सुलह कराई, वैसे ही गहलोत और पायलट में सुलह कराकर कांग्रेस अब राजस्थान के चुनावी मैदान में उतरी है. इतना ही नहीं पार्टी राजस्थान चुनाव में भी कर्नाटक की तरह अपने मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा नहीं करेगी. कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का फैसला किया है ताकि किसी तरह की गुटबाजी हावी न हो सके.
कर्नाटक के तर्ज पर कैंडिडेट पहले घोषित करेगी
कर्नाटक में कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही अपने अच्छे खासे उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतार दिए थे, उसी तरह से राजस्थान में भी कांग्रेस चुनाव से दो तीन महीने पहले प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी कह चुके हैं कि कांग्रेस को सत्ता में बने रहना है तो उम्मीदवारों के नाम का ऐलान पहले करना होगा. माना जा रहा है कि कांग्रेस 200 सीटों में से से करीब 100 सीटों पर सितंबर में उम्मीदवार घोषित कर देगी. कांग्रेस पूरी तरह से राजस्थान में कर्नाटक मॉडल पर सियासी बिसात बिछाने में जुटी है, लेकिन नतीजे भी उसी तरह से आएंगे, इसके लिए नवंबर तक इंतजार करना होगा.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved