इंदौर। निगम के फर्जी बिल महाघोटाले की चल रही जांच को यू टर्न देने के भले ही कुत्सित प्रयास शुरू हो गए हों, मगर दस्तावेजी हकीकत ही कोर्ट में साबित होगी। इस महाघोटाले के मास्टरमाइंड अभय राठौर की पत्नी की ओर से कोर्ट में जो शपथ-पत्र दिया है, उसमें सभी अधिकारियों को दोषी बता दिया। यहां तक कि पूर्व संभागायुक्त और निगम प्रशासक रहे डॉ. पवन शर्मा को भी साजिशकर्ता निरुपित कर डाला। निगम द्वारा जो एफआईआर एमजी रोड थाने पर दर्ज करवाई गई, उसके चलते गिरफ्तार किए गए ठेकेदारों के साथ-साथ अभय राठौर से भी पुलिस ने पूछताछ की। नतीजतन थाना प्रभारी के साथ-साथ डीसीपी के खिलाफ भी आरोप लगा डाले और उन पर डरा-धमकाकर बयान दर्ज करवाने की बात कही गई है। हालांकि शपथ-पत्र में दी गई जानकारी को भी साबित करना पड़ेगा, अन्यथा झूठा शपथ-पत्र देने पर अभय राठौर की पत्नी के खिलाफ भी कार्रवाई संभव है। दूसरी तरफ पुलिस ने निगम के बर्खास्त बेलदार असलम खान को भी बुलाकर इस घोटाले से संबंधित जानकारी कड़ी पूछताछ में ली तो उसकी बीवी को भी कल थाने पर बुलाया था, जहां पर कुछ समय पूर्व ही खरीदे करोड़ों रुपए के फार्म हाउस सहित अन्य जानकारी ली गई।
अग्निबाण ने ही पिछले दिनों बेटमा के आगे खरीदे गए फार्म हाउस का खुलासा किया था, जिसकी कीमत लगभग साढ़े 5 करोड़ रुपए बताई गई है, जिसमें लगभग 5 करोड़ रुपए की राशि 2 नम्बर में चुकाई गई और 48 लाख रुपए के चैक दिए गए। उक्त फार्म हाउस कैलाश पिता चोघालाल से खरीदा गया, जिसमें खरीददार असलम की पत्नी राहेला खान और उसका भाई मोहम्मद एहतेशाम उर्फ एजाज खान है। यह भी उल्लेखनीय है कि अल्फा सहित कई फर्में एजाज खान की है, जिसके खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर रखी है और फिलहाल वह फरार है। पुलिस ने असलम और उसकी बीबी से निगम में हुए फर्जीवाड़े के अलावा अन्य अचल सम्पत्तियों की खरीदी का पैसा कहां से आया उस संबंध में भी पूछताछ की है।
वहीं असलम की मां बिल्किस खान के नाम पर भी फर्म बनाई। दूसरी तरफ अभय राठौर की पत्नी शालिनी सिंह राठौर ने जिला कोर्ट में जो आवेदन शपथ-पत्र के साथ प्रस्तुत किया उसमें एमजी रोड पुलिस से लेकर तत्कालीन अपर आयुक्त संदीप सोनी, सुनील गुप्ता, सेवकराम पाटीदार, प्रसाद रेगे, सतीश बडक़े, सेवानिवृत्त अपर आयुक्त देवेन्द्र सिंह, तत्कालीन अपर आयुक्त रोहन सक्सेना के साथ-साथ अपर आयुक्त वित्त देवधर दरबई को भी आरोपी बनाने की मांग तो की ही, साथ ही यह भी आरोप लगा दिए कि थाना प्रभारी विजयसिंह सिसोदिया और डीसीपी पंकज पांडे ने भी उनके पति के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण तरीके से प्रकरण दर्ज किया और निगम के सभी घोटालों का मास्टरमाइंड होने के समाचार प्रकाशित करवाए। इसके अलावा पूर्व निगमायुक्त मनीष सिंह से लेकर प्रतिभा पाल के साथ-साथ निगम के प्रशासक रहे पूर्व संभागायुक्त डॉ. पवन कुमार शर्मा का भी नाम इसमें शामिल किया गया। इस पूरे आवेदन में सबसे अधिक बार नाम तत्कालीन संभागायुक्त डॉ. शर्मा का ही आया है और उनक पर यह भी आरोप लगा दिए कि उन्होंने कई फर्मों को फर्जी ठेके दिलवाकर करोड़ों रुपए का भुगतान करवा दिया।
लिहाजा उनके खिलाफ भी असत्य व कूटरचित जन-धन के अपवंचन का आपराधिक षड्यंत्र करने के चलते प्रकरण दर्ज किए जाएं। इस आवेदन में यह भी कहा गया कि 2 करोड़ से अधिक, किन्तु 5 करोड़ रुपए से कम राशि खर्च करने के अधिकार महापौर को तथा 5 से 10 करोड़ रुपए की राशि खर्च करने के अधिकार मेयर इन काउंसिल और 10 करोड़ से अधिक की मंजूरी के अधिकार निगम परिषद् को हैं। मगर चूंकि कोरोना काल में निगम परिषद् का कार्यकाल समाप्त हो गया था और संभागायुक्त डॉ. पवन कुमार शर्मा को निगम का प्रशासक बनाया गया। लिहाजा प्रशासक के रूप में उन्होंने मेसर्स जेएम रमानी एंड कम्पनी के अलावा अन्य फर्मों को भी काम सौंपे, जिनके कूटरचित और असत्य बिलों के आधार पर राशि निगम खजाने से हासिल कर ली गई। इसमें ओम स्वच्छता कॉर्पोरेशन सहित कुछ अन्य फर्मों और किए गए कार्यों की जानकारी भी दी गई है। हालांकि विधि विशेषज्ञों का कहना है कि शपथ-पत्र के आधार पर जो आरोप अधिकारियों पर लगाए गए हैं उन्हें साबित करने की जिम्मेदारी भी आवेदिका की रहेगी और अगर दस्तावेजों के आधार पर इसकी सत्यता प्रमाणित नहीं होती है तो झूठा शपथ-पत्र देने वाले के खिलाफ भी कोर्ट कड़ी कार्रवाई कर सकता है। वहीं दूसरी तरफ जिस ईओडब्ल्यू ने महाघोटालेबाज अभय राठौर को 25 करोड़ रुपए से अधिक की सम्पत्तियों के खुलासे के बावजूद क्लीनचीट दे दी थी, उसी को कल कांग्रेसी इस महाघोटाले की जांच का ज्ञापन सौंप आए। जानकारों का कहना है कि ईओडब्ल्यू ने राठौर को किन प्रभावशाली नेताओं या अफसरों के दबाव में क्लीनचिट दी उसकी भी उच्च स्तरीय जांच होना चाहिए।
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