नई दिल्ली। कांग्रेस (Congress) में 1998 के बाद पहली बार राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर चुनाव हो रहा है और ढाई दशकों के बाद पहली बार गांधी परिवार से बाहर का कोई नेता इस पद पर आ सकता है। हाईकमान के इस फैसले को लेकर बड़ी आशंकाएं भी हैं तो वहीं कुछ लोगों को लगता है कि इससे कांग्रेस को फायदा भी हो सकता है। परसेप्शन से लेकर सामाजिक समीकरण (social equation) तक में कांग्रेस को इससे लाभ हो सकता है और इसके चलते वह चुनावी राजनीति में भी बढ़त बना सकती है। हालांकि कांग्रेस में अध्यक्ष के तौर पर नया नेता आने के 5 फायदे भी हो सकते हैं…
कांग्रेस से हट जाएगा फैमिली टैग, बदलेगी धारणा
अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) या फिर किसी अन्य नेता के कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) बनने से कांग्रेस के ऊपर से फैमिली टैग हट जाएगा। लंबे समय बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी(Sonia Gandhi and Rahul Gandhi) के हाथ से पार्टी की कमान किसी और नेता को मिलेगी। इससे पार्टी इस आरोप से बच सकेगी कि कांग्रेस में अध्यक्ष का पद एक ही परिवार के लिए रिजर्व रहता है। दरअसल कांग्रेस के इतिहास (history of congress) में 48 सालों तक अध्यक्ष का पद नेहरू-गांधी परिवार (Nehru-Gandhi family) के पास ही रहा है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह अहम हो सकता है। एक तरफ गांधी परिवार पीछे से पूरी पार्टी को मैनेज करेगा ही, लेकिन नए नेता के चुनाव से धारणा बदलने में भी मदद मिलेगी।
उत्तर भारत में फिर से पकड़ मजबूत कर पाएगी कांग्रेस?
कांग्रेस के लिए खुद को उत्तर भारत (India) में मजबूत करना अहम है और उसके लिए हिंदी भाषी नेता अहम हो सकता है। अशोक गहलोत खुद राजस्थान से आते हैं और यूपी, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश समेत हिंदी भाषी राज्यों में अच्छी पहचान रखते हैं। ऐसे में कांग्रेस को उम्मीद है कि अशोक गहलोत के जरिए वह उत्तर भारत (North India) में अपनी पकड़ एक बार फिर से मजबूत कर सकती है। पार्टी को लगता है कि उसकी स्थिति दक्षिण भारत में बेहतर है और अब उत्तर में भी मजबूती हासिल करने से उसे बूस्ट मिल सकता है।
2024 के आम चुनाव से पहले कांग्रेस की नई शुरुआत
कांग्रेस नए अध्यक्ष और गैर-गांधी नेता के जरिए 2024 के आम चुनाव के लिए नई शुरुआत कर सकती है। राहुल गांधी बीते 8 सालों से भाजपा से मुकाबला कर रहे हैं, लेकिन अब तक उतने सफल नहीं हुए हैं। ऐसे में राहुल गांधी पीछे से पार्टी को मैनेज कर सकते हैं और नए चेहरे के जरिए भाजपा पर हमलावर हो सकती है। भाजपा के लिए भी अशोक गहलोत जैसे नेता पर अटैक करना बहुत आसान नहीं होगा, जो ओबीसी वर्ग से ही आते हैं।
पार्टी में सीनियर बनाम युवा की जंग भी होगी कमजोर
अशोक गहलोत 71 बरस के हैं और गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम कर चुके हैं। ऐसे में उनका अध्यक्ष बनना पार्टी में सीनियर नेता बनाम युवा की जंग को भी कमजोर करेगा। इससे यह संदेश जा सकता है कि पार्टी में सभी का सम्मान है। एक तरफ कांग्रेस ने अनुभवी नेता को कमान दी है तो वहीं युवाओं को भी मौके मिल रहे हैं। बता दें कि गुलाम नबी आजाद समेत कई नेताओं ने कांग्रेस पर सीनियर नेताओं को तवज्जो न देने के आरोप लगाते हुए ही पार्टी छोड़ दी थी।
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