सियाराम पांडेय ‘शांत’
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में हुई जीएसटी परिषद की बैठक और उसमें लिए गए निर्णय चर्चा के केंद्र में है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ब्लैक फंगस की दवा को माल और सेवा कर से मुक्त करने में विलंब के लिए केंद्र सरकार को घेरा और कहा कि देर से मिला न्याय भी अन्याय ही होता है। कांग्रेस को सोचना चाहिए कि सरकार की भी अपनी कुछ सीमाएं होती हैं, उसमें रहकर ही वह जनता को राहत देती है। कांग्रेस पहले तो कोवैक्सिन और कोविशील्ड टीके की गुणवत्ता पर सवाल उठा रही थी, अब मोदी सरकार से यह पूछती फिर रही है कि देश के एक अरब लोगों को टीका कबतक लग जाएगा?
यह सवाल देश के वित्तमंत्री रह चुके पी. चिदंबरम के स्तर पर पूछा जा रहा है। यह सवाल तो उन्हें उस समय पूछना चाहिए था जब उनकी सरकार थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 22 सितंबर 2012 को डीजल की कीमतों में वृद्धि तथा सब्सिडीयुक्त रसोई गैस की सीमा सीमित किए जाने के उनके फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते। उन्होंने कहा था कि पेट्रोलियम उत्पादों पर सरकार का सब्सिडी बिल पिछले साल 1.40 लाख करोड़ रुपये हो गया। अगर हम कदम नहीं उठाते तो इस साल यह दो लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाता। गनीमत है कि तमाम प्राकृतिक आपदाओं, कोरोना जैसी वैश्विक महामारी और चीन से लंबे समय तक चली तनातनी के बीच कभी मोदी सरकार के किसी भी मंत्री ने इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान नहीं दिए।
कांग्रेस को इतना तो पता है ही कि कोरोना रोधी टीकों के बनने में समय लगता है। सभी लोगों को एक साथ टीके लगाना संभव नहीं है लेकिन सरकार अगर चाहे तो वह इसके लिए प्रयास कर सकती है और मोदी सरकार का यह प्रयास दिख भी रहा है। उसने कोविड रोधी टीकों पर जीएसटी दर 12 प्रतिशत से घटाकर पहले ही 5 प्रतिशत कर रखी है। कोरोना को मात दे सकने वाली दवाओं रेमडेसिविर, टोसिलिजुमेब,ऑक्सीजन सांद्रक और अन्य उपकरणों की दरें भी घटाई हैं।
टोसिलिजुमेब और ब्लैक फंगस की दवा एम्फोटेरिसिन बी पर लग रहा 5 प्रतिशत जीएसटी समाप्त कर दिया है। कोविड जांच किट, चिकित्सा ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, कंसंट्रेटर और जनरेटर पर 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत किया जाना सरकार का लोकोपकारी कदम है लेकिन कांग्रेस को इसमें कोई अच्छाई नजर ही नहीं आती। चिदंबरम या उन सरीखे कांग्रेस के बड़े नेता सरकार पर किसी से राय न लेने, किसी मुद्दे पर सहमति न बनाने और मनमाना निर्णय लेने के आरोप लगाती रही है, जीएसटी परिषद की यह 44वीं बैठक उसके सारे सवालों का जवाब है। सरकार ने यह निर्णय जीएसटी समूह की सिफारिशों के आधार पर लिया है। इस बैठक में राज्यों के मुख्यमंत्री और बड़े अधिकारी भी शामिल हुए।
परिषद की बैठक में खून के थक्कों की दवाएं जहां सस्ती रखने का निर्णय लिया गया है, वहीं 18 वस्तुओं की नई दरें भी तय की गई है। एम्बुलेंस पर जीएसटी 28 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत कर दी गई है। इसके बाद भी अगर चिदंबरम जैसे नेताओं को सरकार के प्रयासों में कमी नजर आ रही है तो उन्हें अपने बजट पेश करने वाले दिनों के अखबार जरूर देख लेने चाहिए जिसमें उन पर जनता को एक हाथ से देने और दूसरे से छीन लेने के आरोप लगते रहे हैं। देश चलाने के लिए धन का प्रवाह जरूरी है और सरकार को धन टैक्स से ही मिलता है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में वह जानता को राहत देने के यथासंभव प्रयास कर रही है। देश की एक बड़ी आबादी को मुफ्त राशन दे रही है। सबको मुफ्त टीके लगवा रही है और जीएसटी में भी राहत भी दे रही है। इस सरकार ने एक टैक्स की व्यवस्था कर रखी है। ऐसे में अगर वह उसमें भी राहत दे रही है और जीएसटी से होने वाली आय का 70 प्रतिशत राज्यों के साथ साझा कर रही है तो इसमें केंद्र सरकार की नेकनीयती ही झलकती है।
चिदंबरम कह रहे हैं कि केंद्र सरकार जिम्मेदारी ले, सलाह करे और योजना बनाए। मोदी सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि वह फाइजर और स्पुतनिक जैसे मंहगे टीके मुफ्त नहीं लगवाएगी। निजी अस्पतालों में ये टीके उपलब्ध हैं, समर्थ लोग अपने खर्च पर उसे लगवा सकते हैं। इसके बाद भी अगर चिदंबरम विदेशी टीकों की आपूर्ति की नसीहत दे रहे हैं तो इसे किस रूप में देखा जाना चाहिए?
हर सत्तारूढ़ दल अपने हिसाब से नीतियां बनाता है। अगर वह प्रतिपक्ष के हस्तक्षेप ही झेलता रहेगा तो अपनी नीतियों को अमली जामा कब पहनाएगा, विचार तो इसपर भी होना चाहिए। तीसरी लहर की आशंका में घिरे रहना ही उचित नहीं है। नीति भी कहती है कि गते शोको न कर्तव्यो भविष्यम नैव चिंतयेत। वर्तमान को जो दुरुस्त रखता है, भविष्य उसी का उज्ज्वल रहता है। कोरोना जन्य भारत की चिंता से दुनिया के देश भी चिंतित हैं। वे यथासंभव सहयोग कर रहे हैं। वह इसलिए कि भारत ने उनकी मदद की थी। मदद कभी बेकार नहीं जाती । विदेशों में टीके भेजने की भारतीय पहल की आलोचना करने वालों को इस ओर भी गौर करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-7के देशों को एक पृथ्वी एक स्वास्थ्य का मंत्र दिया है। इस धरती पर एक भी संक्रमित रहा तो दुनिया पर संक्रमण का खतरा बना रहेगा। मौजूदा समय दुनिया से मिलकर चलने का है।
कांग्रेस को सोचना होगा कि एक ही देश में दो निशान दो संविधान की उसकी नीति ठीक नहीं है। विपक्ष को विरोध करना चाहिए लेकिन बेमतलब के विरोध से बचना भी चाहिए। चीन और पाकिस्तान का समर्थन कर कांग्रेस कभी मज़बूत नहीं हो सकती। वह देश की प्रगति में बाधक जरूर बन सकती है। इसलिए भी जरूरी है कि कांग्रेस को अपनी रणनीति पर विचार करना चाहिए और देश के व्यापक हितों का विचार करते हुए अपनी रीति-नीति पर अमल करना चाहिए। वह मोदी सरकार का साथ दे या न दे, उसे जनता के साथ जरूर खड़े होना चाहिए लेकिन उसके नेता जिस तरह के राजनीतिक प्रलाप कर रहे हैं, उससे लगता तो नहीं कि वे इस पर गंभीर भी हैं।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से सम्बद्ध हैं।)