भोपाल। मध्यप्रदेश में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस लगातार जमीनी जमावट करने में जुटी हुई है, इसके लिए वह बदलाव भी कर रही है। पार्टी इस बार नए लोगों को जिम्मेदारी सौंपने का दौर भी जारी रखे हुए है। आगामी समय में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस तमाम दांव पेंच आजमाने में पीछे नहीं रहना चाहती। एक तरफ जहां उसकी नजर भाजपा के असंतुष्ट नेताओं पर है तो वहीं पार्टी के नेताओं को सक्रिय करने की हर संभव कोशिश हो रही है। विधानसभा चुनाव के लिए दिग्विजय सिंह मिशन 66 पर लगे हुए हैं। राज्य में एक बार फिर से उनके दौरे बढ़ गए हैं। बीते कुछ समय में पार्टी की तरफ से उठाए गए कदमों पर गौर करें तो एक बात साफ नजर आती है कि चुनाव जीतने के लिए सभी तरह के सियासी बाण पार्टी ने अपने तरकश में रख लिए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की विधानसभा के उन 66 सीटों पर सक्रियता बढ़ी हुई है, जहां कांग्रेस को लंबे अरसे से हार का सामना करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं पार्टी के 16 प्रमुख नेताओं को राज्य के अलग-अलग इलाकों की जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं।
इन 66 सीटों पर लगातार हार रही कांग्रेस
रहली, दतिया, बालाघाट, रीवा, सीधी, नरयावली, भोजपुर, सागर, हरसूद, सोहागपुर, धार, इंदौर दो, इंदौर चार, इंदौर पांच, मंदसौर, महू, गुना, शिवपुरी, देवसर, धौहनी, जयसिंहनगर, जैतपुर, बांधवगढ़, मानपुर, मुड़वारा, जबलपुर कैंट, पनागर, सिहोरा, परसवाड़ा, बालाघाट, सिवनी, आमला, टिमरनी, सिवनी मालवा, होशंगाबाद, सोहागपुर, पिपरिया, भोजपुर, कुरवाई, शमशाबाद, बैरसिया, गोविंदपुरा, बुधनी, आष्टा, सीहोर, सारंगपुर, सुसनेर, शुजालपुर, देवास, खातेगांव, बागली, खंडवा, पंधाना, बुरहानपुर, धार, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण, रतलाम सिटी, मल्हारगढ़, नीमच और जावद सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने मार्च में लगातार दो दिन तक चुनावी रणनीति पर चर्चा की।
फाइव पॉइंट प्रोग्राम के जरिए जीतने की तैयारी
फाइव पॉइंट प्लान के मुताबिक कांग्रेस स्थानीय मुद्दों की पहचान कर घोषणा पत्र तैयार करेगी। वर्तमान विधायक के खिलाफ नाराजगी का मूल्यांकन कर माहौल बनाना। हारी हुई सीटों पर जातीय समीकरण के हिसाब से उम्मीदवार चयन में प्राथमिकता। कांग्रेस सवा साल के कार्यकाल को भुनाने पर फोकस कर रही है और महंगाई, बेरोजगारी सहित सत्ता विरोधी लहरों पर जन आंदोलन खड़ा करना है। कांग्रेस भाजपा का गढ़ बन चुकी 66 सीटों पर सक्रिय और लोकप्रिय चेहरों का चयन पहले कर रही है, ताकि चुनाव से पहले उम्मीदवारों को इलाकों में पहुंचने का पर्याप्त समय मिल सके। इन सीटों का पर्यवेक्षक भी पर्याप्त समय देने वाले प्रदेश पदाधिकारियों को बनाया गया है। इसी वजह से रीवा और सतना में पूरे समय दिग्विजय सिंह के साथ पर्यवेक्षक रहे। कांग्रेस को मजबूत स्थिति में लाने के लिए जातीय समीकरणों को भी टटोला गया।
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