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    कांग्रेस ने क्‍यों ठुकराया प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का न्‍योता, क्‍या है इसके पीछे पार्टी की रणनीति?

  • January 15, 2024

    नई दिल्ली (New Delhi) । अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह (Ram Mandir Pran Pratistha Ceremony) के निमंत्रण को ठुकराते हुए कांग्रेस (Congress) ने 22 जनवरी को वहां जाने से इनकार कर दिया है। निमंत्रण, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के अलावा सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी को मिला था। लेकिन, पार्टी ने इसे BJP-RSS का कार्यक्रम बता दिया। कई अन्य विपक्षी नेताओं ने भी निमंत्रण के बावजूद कार्यक्रम से दूरी बना ली है। इसके बाद यह बड़ा सवाल सामने है कि कांग्रेस और विपक्ष के अधिकतर नेताओं ने यह सियासी जोखिम क्यों लिया? क्या है इसके पीछे उनकी रणनीति? आम चुनाव में वे इसे किस तरह काउंटर करेंगे‌?

    जोखिम तो है…
    राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाना सियासी जोखिम भरा फैसला माना जा रहा है। जानकारों के अनुसार, पार्टी आगे किस तरह के संदेश देगी, यह इस पर तय करेगा कि जोखिम कितना होगा। कांग्रेस का कहना है कि 22 जनवरी के कार्यक्रम से भले वह अलग रहेगी लेकिन उससे पहले और उसके बाद पार्टी के तमाम नेता राम मंदिर दर्शन करने जरूर जाएंगे। पार्टी सूत्रों का दावा है कि आम चुनाव से पहले तमाम नेता वहां एक बार जाएंगे। ऐसी भी चर्चा है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वह राम मंदिर भी जा सकते हैं। लेकिन, चुनाव विश्लेषक यशवंत देशमुख के अनुसार, इसमें जोखिम तो है। उन्होंने कहा कि पिछले कई मौकों पर हम देख चुके हैं कि विपक्षी दल जनमानस की नब्ज समझने में या तो विफल रहे या इसमें देरी की। वे बालाकोट स्ट्राइक पर भी चूक गए। उन्होंने कहा कि राम मंदिर ऐसा मुद्दा है जो BJP को फायदा पहुंचाएगी, जिसके जवाब में कम से कम अभी विपक्ष के पास कोई कारगर रणनीति नहीं दिखती है।


    यह है सियासी हिसाब?
    कांग्रेस नेताओं का दावा है कि इस कदम से कोई सियासी नुकसान नहीं होगा। पार्टी के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा कहते हैं कि पार्टी ने मंदिर जाने से इनकार ही कब किया है? पार्टी ने बस BJP-RSS के कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार किया है। वह दावा करते हैं कि इससे उलटे उन्हें समर्थन ही मिलेगा कि उन्होंने धर्म में राजनीति करने की मंशा नहीं दिखाई। हालांकि पार्टी के अंदर इसे लेकर बेचैनी तो है। पार्टी को यह जरूर लगता है कि दक्षिण में इसका कोई असर नहीं होगा, जहां वह इस बार पूरी ताकत झोंक रही है, लेकिन हिंदी भाषी क्षेत्र में आने वाले दिनों में अपनी बात को सावधानी से रखना होगा। सूत्रों के अनुसार, पार्टी के अलग-अलग नेताओं को राम मंदिर पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी करने से परहेज करने को कहा गया है।

    सॉफ्ट हिंदुत्व पर क्या है कांग्रेस का दंद्व?
    अब यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या विपक्ष खासकर सॉफ्ट हिंदुत्व के एप्रोच को बदलकर सेकुलर राजनीति को अपनाने की ओर बढ़ेगा? यह सवाल इसलिए क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से इस मसले पर कांग्रेस का एप्रोच उलझन भरा रहा है। दरअसल, 2014 से लेकर अब तक कांग्रेस ने कई प्रयोग किए लेकिन अब तक इन मुद्दों की काट खोजने में सफलता नहीं मिली। 2014 के बाद जब कांग्रेस ने करारी हार के बाद एके एंटोनी के नेतृत्व में इसकी समीक्षा की तो पाया था कि हिंदू में बड़ा तबका ऐसा महसूस कर रहा है कि कांग्रेस बहुत हद तक उनके हितों को अनदेखा करता है और पूरा फोकस अल्पसंख्यकों पर रखता है। रिपोर्ट में कहा गया कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और हिंदुओं का बड़ा तबका उनके साथ आया। सुधार करते हुए एंटोनी कमिटी ने सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर लौटने की सलाह दी थी। लेकिन छिटपुट मौकों को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस या दूसरी विपक्षी पार्टियां इस धारणा को बदलने में विफल रहीं। राष्ट्रवाद का मुद्दा इसमें शामिल होने के बाद तो विपक्ष और बैकफुट पर चला गया। बीच में जहां कांग्रेस की सरकारें बनीं, मसलन छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल हों, या राजस्थान में अशोक गहलोत की अगुवाई वाली सरकार, वहां पार्टी ने खुलकर सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रयोग किया। लेकिन तब भी पार्टी के अंदर इस मसले पर दो तरह की राय थी।

    कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने एक इंटरव्यू में कहा गया था- सॉफ्ट हिंदुत्व क्या होता है? सॉफ्ट या हार्ड हिंदुत्व जैसी कोई चीज नहीं होती है। हम धर्मनिरपेक्ष देश में हैं, जहां संविधान हर नागरिक को समान अधिकार की बात करता है। कांग्रेस बस इसी संविधान को मानती है और इसी अनुरूप चलती है। सभी को सम्मान, सभी को हक और सभी को सुरक्षा का अहसास दिलाना हमारा दायित्व है। हम असल मायने में सेकुलर हैं। पूजा करना सभी की आस्था है। मैं भी हिंदू हूं। पूजा करता हूं। इसका मतलब नहीं है कि मैं आरएसएस के हिंदुत्व को स्वीकार करूं। धर्मनिरपेक्षता ही हमारा रास्ता है। वहीं अयोध्या मसले पर भी पार्टी के आधिकारिक स्टैंड के इतर कुछ नेताओं ने राय दी। मतलब पिछले कुछ वर्षों से सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर जो कांग्रेस के अंदर उलझन और दो राय थी, इस बार वह मजबूती से सामने आई है।

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