उदयपुर। राजस्थान के उदयपुर (Udaipur) में चल रहे कांग्रेस के चिंतन शिविर (Congress contemplation camp) में शामिल नेताओं में असंतोष (discontent among leaders) भी देखने को मिल रहा है. उनका कहना है कि पार्टी चलाने के लिए पैसे नहीं हैं. कॉरपोरेट फंड नहीं (not give corporate funds) देते हैं. पार्टी के कार्यक्रमों के लिए पैसे नहीं मिल रहे हैं. उनका कहना है कि शिविर में कई अहम मुद्दों पर बात नहीं हो रही है। पार्टी अध्यक्ष को लेकर भी स्थिति साफ नहीं की जा रही है. नेताओं में अध्यक्ष को लेकर अलग-अलग राय देखने को मिल रही है।
‘अध्यक्ष बनाने के लिए नहीं हो रहा शिविर’
डेलिगेट्स ने कहा कि कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं चुन पाने से नुकसान हुआ है. पॉलिटिकल कमेटी में शामिल आचार्य प्रमोद कृष्णन जब बोले कि एक डेलिगेट ने कहा कि राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं बनना चाहते है तो प्रियंका गांधी को अध्यक्ष बना दो. जब उन्होंने यह बात कही तो प्रियंका और सोनिया गांधी दोनों मौजूद थी इसलिए उन्हें चुप कराते हुए यह कहा गया कि यह मीटिंग अध्यक्ष बनाने के लिए नहीं हो रहा है।
विस चुनावों में नहीं करना चाहिए गठबंधन
कुछ नेताओं का कहना है कि कांग्रेस को विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन नहीं करना चाहिए. इससे यूपी-बिहार जैसे राज्यों में नुकासान हुआ और पार्टी का संगठन खत्म हो गया. इसके अलावा शिविर में शामिल नेताओं से कहा गया है कि पिछली गलतियां गिनाए बगैर पैनल में भविष्य की बात करें।
कांग्रेस के पास दफ्तर तक नहीं
शिविर में कहा गया कि आरएसएस से मुकाबले के लिए इस तरह का सामाजिक संगठन बने जिसके जरिए कांग्रेस लोगों के घरों तक पहुंचे और लोगों के काम आए. डेलिगेट्स का कहना है कि आरएसएस के पास कॉलेज, अस्पताल सब कुछ है और कांग्रेस के पास दफ्तर तक नहीं हैं. वहीं कार्यकर्ताओं को लेकर शिविर में बात नहीं हो रही. जिला और पंचायत समिति पर कोई चिंतन नहीं हो रहा है।
पार्टी कार्यक्रम में नहीं आते MP-MLA
डेलिगेट्स ने कहा कि मनरेगा और किसान संघ जैसे संगठन को भी हम अपना नहीं पाए, जबकि बीजेपी यूपीए के स्कीम की सफलता का श्रेय ले रही है. पार्टी के कार्यक्रमों से विधायक और सांसद दूरी बना कर रखते हैं।
विवादित मुद्दों पर पार्टी का रुख साफ नहीं
शिविर में शामिल नेताओं ने कहा कि विवादित मुद्दों पर कांग्रेस के नेता अलग-अलग भाषा बोलते हैं. पार्टी का भी स्टैंड समझ में नहीं आता है, जिससे पार्टी का मजाक बनता है. कुछ नेताओं का कहना है कि न्याय योजना 2019 को चुनाव में देरी से लाया गया और इसलिए हम उसे समझा नहीं पाए।
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