भोपाल (Bhopal)। विधानसभा चुनावों (assembly elections) की तारीखों का ऐलान होते ही राजनीतिक पार्टियां भी सक्रिय होने लगी है। ऐसे में अगले महीने देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इनमें शामिल हिंदी भाषी प्रदेशों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जाति की राजनीति गर्म हो रही है। जाति जनगणना की पिच पर इसे कांग्रेस की पहली परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है। इंडिया गठबंधन में शामिल विपक्षी दलों को भाजपा के रथ को 2024 के लोकसभा चुनाव में रोकने के लिए इस मुद्दे में संभावना नजर आ रही है। उनका मानना है कि अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) और अनुसूचित जातियों के साथ-साथ जनजातियों को आकर्षित करने में भाजपा को जो सफलता मिलती आ रही है, वह इससे खत्म हो जाएगी।
2022 में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किए गए ओबीसी सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य की लगभग 43.5% आबादी ओबीसी है। मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग ने राज्य की ओबीसी आबादी कुल आबादी का 48% आंकी है। वहीं, राजस्थान पिछड़ा आयोग का अनुमान है कि प्रदेश की 42% जनसंख्या ओबीसी है।
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री और भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान ने कुर्मी, तेली और विश्वकर्मा जैसे ओबीसी समुदायों के लिए नौ कल्याण बोर्डों को मंजूरी दी है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मेहगवाल और धानका जैसे ओबीसी समुदायों के लिए आठ कल्याण बोर्ड स्थापित किए हैं। इसके अलावा, छत्तीसगढ़ सरकार ने ओबीसी समुदायों के लिए चार कल्याण बोर्ड स्थापित किए हैं। इनमें से कई पिछले साल बनाए गए हैं।
राजस्थान की सरकार ने चुनावों की घोषणा से ठीक दो दिन पहले यानी 7 अक्टूबर को ऐलान किया कि बिहार की तर्ज पर राजस्थान में भी जाति आधारित सर्वे करवाया जाएगा। राहुल गांधी ने इसे ऐतिहासिक कदम बताया। वहीं, प्रियंका गांधी वाड्रा ने पिछले एक सप्ताह में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जाति सर्वेक्षण की घोषणा की है। भाजपा नेताओं का कहना है कि जाति सर्वेक्षण जातियों के बीच विभाजन को बढ़ा सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक नारायण बारेथ ने कहा कि जाति जनगणना की मांग विपक्षी गठबंधन द्वारा भाजपा को घेरने और उसके हिंदुत्व एजेंडे की धार को कुंद करने का एक प्रयास है। तीनों हिंदीभाषी राज्यों के नतीजे ही बताएंगे कि यह काम करता है या नहीं।
राजस्थान विधानसभा चुनाव
2023 के विधानसभा चुनाव से पहले लगभग सभी जाति समूहों ने ताकत दिखाने के लिए महासम्मेलन आयोजित कीं, जिसमें अधिक आरक्षण और जाति जनगणना प्रमुख मांगें थीं। उन्हें शांत करने के लिए अशोक गहलोत ने विभिन्न जातियों के लिए कल्याण बोर्ड की स्थापना की और उनके पिछड़ेपन का आकलन करने और उन्हें आरक्षण में आनुपातिक प्रतिनिधित्व देने के लिए एक जाति सर्वेक्षण की भी घोषणा की।
राजस्थान में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में 64% आरक्षण है। अनुसूचित जाति के लिए 16%, अनुसूचित जनजाति के लिए 12%, ओबीसी के लिए 21%, एमबीसी (सबसे पिछड़ा वर्ग) के लिए 5% और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों यानी ईडब्ल्यूएस के लिए 10%। राजस्थान में ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत जाट, गुर्जर, मुस्लिम, ब्राह्मण और राजपूत सहित 92 जातियां हैं।
विभिन्न जाति समूहों ने जाति जनगणना के लिए सीएम के आह्वान का समर्थन किया है। राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजा राम मील ने कहा कि ओबीसी राज्य की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा हैं लेकिन उन्हें पर्याप्त आरक्षण नहीं मिला है। उन्होंने कहा, ”सामान्य वर्ग केवल 15% है और उनके पास 10% आरक्षण है। ओबीसी 50% से अधिक हैं और उनके पास केवल 21% आरक्षण है। कोई भी वास्तविक स्थिति नहीं जानता है। वास्तविक डेटा प्राप्त करने और उसके अनुसार आरक्षण देने के लिए जनगणना की आवश्यकता है।”
बीजेपी प्रवक्ता लक्ष्मीकांत भारद्वाज ने कहा कि ”गहलोत और कांग्रेस समाज को बांटने की कोशिश कर रही है। देश में 50 साल तक कांग्रेस सत्ता में रही और गहलोत तीन बार मुख्यमंत्री रहे। तब जाति जनगणना क्यों नहीं कराई गई? अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में गहलोत ने जाति जनगणना की बात की है। यह उनके पाखंड को दर्शाता है।”
राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता ने कहा कि “यह कहना जल्दबाजी होगी कि जाति सर्वेक्षण के वादे से कांग्रेस को फायदा होगा या नहीं, क्योंकि भाजपा के पास राज्य में सीएम सहित कई प्रमुख ओबीसी नेता हैं। अब भाजपा नेतृत्व के लिए पार्टी की जीत की स्थिति में मुख्यमंत्री के रूप में पांचवें कार्यकाल के लिए शिवराज चौहान के स्वाभाविक दावे को नजरअंदाज करना मुश्किल हो सकता है।”
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव
छत्तीसगढ़ में ओबीसी पर फोकस बढ़ाने का श्रेय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को दिया जा सकता है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि जाति सर्वेक्षण के वादे का उद्देश्य उनकी ओबीसी राजनीति को और मजबूत करना है। बघेल 2018 में राज्य के पहले ओबीसी मुख्यमंत्री बने। छत्तीसगढ़ को आदिवासी राज्य माना जाता है लेकिन यहां आदिवासियों से ज्यादा ओबीसी हैं। आंकड़ों के अनुसार, यहां 43.5% ओबीसी की आबादी है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की 34.5% आबादी आदिवासियों की है। राजनीतिक विशेषज्ञों ने कहा कि भारत के अधिकांश राज्यों की तरह ओबीसी एक ब्लॉक में वोट नहीं करते हैं।
कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए भाजपा ने यहां एक ओबीसी नेता अरुण साव को पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया है। इसके अलावा, अब तक घोषित कुल 85 में से 29 ओबीसी नेताओं को टिकट दिया है। 2018 में बीजेपी ने 28 ओबीसी नेताओं को टिकट दिया था।
बीजेपी ने कहा कि वह ओबीसी राजनीति में विश्वास नहीं करती। उन्होंने कहा, ”हमने जीतने की क्षमता के आधार पर ओबीसी नेताओं को टिकट दिए हैं।” पूर्व मंत्री और भाजपा के मुख्य प्रवक्ता अजय चंद्राकर ने कहा पूरे देश में कांग्रेस लोगों को बांटने और हमारे देश को बर्बाद करने के लिए ओबीसी राजनीति कर रही है।
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