नई दिल्ली (New Delhi)। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को इन दिनों जिस चीज का सबसे ज्यादा इंतजार है वह है कांग्रेस की ‘हां’। केंद्र सरकार के अध्यादेश (Ordinance) के खिलाफ राज्यसभा में समर्थन जुटा रहे केजरीवाल को 11 विपक्षी दलों का साथ मिल चुका है, लेकिन कांग्रेस ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
बता दें कि पटना में विपक्षी दलों के जुटान से पहले और बैठक के दौरान भी केजरीवाल ने कांग्रेस पर रुख स्पष्ट करने का पूरा दबाव बनाया, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी ने एक ही बात कही है कि हां या ना के लिए अभी इंतजार करें। इस बीच ‘आप’ ने एक तरफ जहां कांग्रेस और भाजपा में डील का आरोप लगा दिया तो दूसरी तरफ यह भी ऐलान कर दिया कि समर्थन के ऐलान तक केजरीवाल की पार्टी किसी भी ऐसी बैठक में शामिल नहीं होगी जिसमें कांग्रेस भी हो।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि मोदी सरकार के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस ‘आप’ को समर्थन का ऐलान क्यों नहीं कर रही है? क्यों एक महीने से समय मांग रहे केजरीवाल से अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने मुलाकात नहीं की है? क्यों हां या ना कहने के लिए कांग्रेस इतना तरसा रही है? क्यों मॉनसून सत्र तक इंतजार करने को कह दिया है? आप का साथ देने में कांग्रेस को इतना सोचना क्यों पड़ रहा है? राजनीतिक जानकार इसके पीछे कई वजहें बताते हैं और बिल के राज्यसभा में आने तक दोनों दलों के बीच खट्टी-मीठी बातों का लंबा दौर चलने की संभावना जता रहे हैं।
दिल्ली के बड़े नेता अजय माकन विरोध करने वालों में अगुआ हैं और पार्टी को बार-बार याद दिला रहे हैं कि केजरीवाल ने कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लिए जाने का प्रस्ताव पास कराया, आखिर ऐसे नेता से दोस्ती कैसे की जा सकती है? जिस तरह कई बड़े नेता विरोध कर रहे हैं उसे पार्टी हल्के में नहीं ले रही। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पार्टी को इस बात की भी आशंका है कि ना सिर्फ कुछ नेता बल्कि कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबगा भी नाराज हो सकता है।
दिल्ली-पंजाब समेत कई राज्यों में टकराव
करीब एक दशक पहले कांग्रेस सरकार के कथित भ्रष्टाचारों के खिलाफ चले आंदोलन की कोख से पैदा हुई पार्टी ने उसे बहुत नुकसान पहुंचाया है। दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस को शून्य पर ला दिया तो पंजाब में भी सत्ता छीन ली है। गोवा और गुजरात में वोटशेयर का एक बड़ा हिस्सा बांट लिया है। आने वाले दिनों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी केजरीवाल पूरे दमखम से उतरने की तैयारी कर रहे हैं। तीनों ही राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह फैसला लेना आसान नहीं है कि जिस दल ने उसे इतना नुकसान पहुंचाया है उसका संकटमोचक बन जाए।
कांग्रेस नहीं चाहती केजरीवाल की मजबूती?
कांग्रेस भाजपा को हर हाल में हराना चाहती है। केंद्र से मोदी सरकार की विदाई उसकी पहली प्राथमिकता और चाहत है। लेकिन पार्टी ‘आप’ को भी अपने लिए कम बड़ा खतरा नहीं मानती। जिस तरह एक के बाद एक राज्य में केजरीवाल की पार्टी ने कांग्रेस के वोटशेयर पर कब्जा किया है उसको लेकर पार्टी के रणनीतिकार सतर्क हैं।
कांग्रेस के एक नेता ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर कहा, ‘एक दुश्मन को मात देने के लिए दूसरे दुश्मन को मजबूत करना बुद्धिमानी नहीं है। अधिकारों की जंग लड़ रहे केजरीवाल को समर्थन देना भविष्य में नुकसानदायक साबित हो सकता है। दूसरी बात यह कि केजरीवाल कब बदल जाएं इसकी गारंटी नहीं, महज एक दशक में वह कई बार यूटर्न ले चुके हैं।’
पुरानी बातों को नहीं भुला पा रही कांग्रेस
एक दूसरे के खिलाफ राजनीति करते रहे कई दल मोदी के खिलाफ मोर्चे में साथ आ गए हैं। आरजेडी और जेडीयू, पीडीपी और एनसी, टीएमसी और लेफ्ट एक दूसरे से ही लड़ते रहे हैं। लेकिन अब वक्त की मजबूरी कहें या भविष्य की रणनीति ये सभी दल एक मंच पर आ गए हैं। ऐसे आप और कांग्रेस का साथ आना भी कोई अचरज की बात नहीं। ऊपर जिक्र किए गए नेता ने कहा, ‘केजरीवाल ने कांग्रेस की छवि को बहुत ज्यादा धूमिल किया है। हमारे सर्वोच्च नेताओं के खिलाफ शब्दों के चयन में उन्होंने कभी सावधानी नहीं बरती। राजीव गांधी, सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक को उन्होंने क्या कुछ नहीं कहा है। हाल के समय में भी उन्होंने कड़वी बातें की हैं और अचानक चाहते हैं कि सबकुछ भुलाकर उनका साथ दिया जाए। वह कुछ ज्यादा उम्मीद कर रहे हैं।’
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