भोपाल। जनजातीय गौरव दिवस समारोह में प्रदेश भर से उमड़े आदिवासियों की भीड़ और उसी दिन जबलपुर में कांग्रेस के आयोजन में खाली कुर्सियों ने पार्टी नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। कांग्रेस के सामने अपनी झोली से आदिवासी वोट बैंक खिसकने का खतरा है। यही वजह है कि अब कांग्रेस भी आदिवासियों के बीच पैठ बनाने में जुट गई है। इसको लेकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने पार्टी के सभी आदिवासी विधायक एवं आदिवासी विकासखंडों से पार्टी पदाधिकारियों को 24 नवंबर को भोपाल बुलाया है। इस बैठक में कांग्रेस आदिवासियों को लेकर नई रणनीति तय करेगी।
कांग्रेस की बैठक में प्रदेश के 22 जिलों के 89 ट्राइबल ब्लॉक के पदाधिकारियों को भोपाल बुलाया है। इस दौरान पंचायत चुनाव एवं निकाय चुनाव की रणनीति पर भी चर्चा होगी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि जनजातीय समुदाय को जोड़े रखने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। बैठक में इसकी रूपरेखा बनाई जाएगी। अब कांग्रेस नेता आदिवासी क्षेत्रों का दौरा भी करेंगे। कांग्रेस आदिवासियों के बीच कमलनाथ सरकार के समय उनके हित में लिए गए फैसलों का प्रचार करेगी। कमलनाथ सरकार ने आदिवासियों की ऋण मुक्ति, अनुसूचित जनजाति वित्त विकास निगम से लिया ऋण माफ करने के साथ गोठान के विकास, आदिवासी के घर जन्म या मृत्यु होने पर मुफ्त राशन देने, 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने और इसके लिए हर ट्राइबल ब्लॉक को एक-एक लाख रुपए देने का निर्णय लिया था। कांग्रेस नेता आदिवासियों के बीच इन्हें गिनाएंगे।
84 विधानसभा सीटों पर असर
प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक को कांग्रेस का परंपरागम वोट माना जाता रहा है। 2018 में कांग्रेस को आदिवासी क्षेत्रों से ही ज्यादा सीट मिली थी, जिसकी वजह से सरकार बनी। यही वजह है कि भाजपा ने आदिवासी वोट बैंक को फिर से साधना शुरू कर दिया है। आदिवासी बहुल इस इलाके में 84 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी। वहीं, 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ है। वहीं, जिन सीटों पर आदिवासी उम्मीदवारों की जीत और हार तय करते हैं, वहां सिर्फ बीजेपी को 16 सीटों पर ही जीत मिली है। 2013 की तुलना में 18 सीट कम है। अब सरकार आदिवासी जनाधार को वापस बीजेपी के पाले में लाने की कोशिश में जुटी है।
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