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    बीहड़ के रास्ते कांग्रेस को सत्तारुढ़ होने की उम्मीद

    February 12, 2023

    • ग्वालियर-चंबल अंचल की सभी सीटें जीतने की रणनीति

    भोपाल। अपनों की बगावत के बाद सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस इस बार बीहड़ के रास्ते सरकार बनाने की रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी की कोशिश है कि ग्वालियर-चंबल अंचल में आने वाली सभी 34 सीटों को जीता जाए। इसके लिए पार्टी ने अपना पूरा फोकस इस क्षेत्र पर लगा दिया है। दरअसल, कांग्रेस के आतंरिक और सरकार की खुफिया एजेंसियों के सर्वे से मिले फीडबैक से प्रदेश कांग्रेस के मुखिया व पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ उत्साहित हैं। कांग्रेस को फिर ग्वालियर-चंबल के रास्ते से प्रदेश में सत्तारूढ़ होने की उम्मीद बंधी है। यही कारण है कि नाथ ने दिग्विजय सिंह को किनारे कर ग्वालियर-चंबल अंचल में कमान संभाल ली है। दोनों अंचलों से जुड़े निर्णय स्वयं ले रहे हैं और स्थानीय नेताओं से सीधे संवाद भी कर रहे हैं। वे ग्वालियर अंचल में सप्ताहभर में दो यात्राएं कर चुके हैं।



    इस बार बड़ी जीत की आस
    कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि इस बार ग्वालियर-अंचल क्षेत्र में कांग्रेस बड़ी जीत की तैयारी में है। गौरतलब है कि भाजपा के आधार स्तंभ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और राजमाता विजयराजे सिंधिया ने पार्टी को मजबूत आधार प्रदान किया था। पितृ पुरुष कुशभाऊ ठाकरे ने भी संगठन को मजबूती प्रदान करने में अथक परिश्रम किया था। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सेंध लगाने में कामयाब हुई। इस चुनाव में कांग्रेस को दोनों अंचलों में व्यापक जनसमर्थन मिला। इसी का नतीजा था कि कांग्रेस 34 विधानसभा सीटों में 27 सीटें जीतने में कामयाब रही और भाजपा को केवल सात सीटों पर संतोष करना पड़ा। इसी कारण उसे सत्ता से बाहर भी होना पड़ा। एक सीट बसपा के खाते में गई थी, जबकि 2013 के विस चुनाव के नतीजे ठीक विपरीत थे। इस चुनाव में 20 सीटें भाजपा ने जीती थी और 12 सीटों पर जीत कांग्रेस के खाते में आई थी। दो सीटों पर बसपा उम्मीदवार जीते इस कारण भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला था।

    सिंधिया से हिसाब चुकाना है
    कमल नाथ की ग्वालियर-चंबल अंचल सक्रियता का दूसरा बड़ा कारण केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से उनकी सरकार गिराने का हिसाब चुकाना बताया जाता है। कमल नाथ के राजनीतिक करियर में बहुमत मिलने के बाद प्रदेश में सरकार नहीं चला पाने का बड़ा दाग लगा है। उनकी सक्रियता का दूसरा कारण पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ भी है, जहां भूपेंद्र सिंह बघेल अपना कार्यकाल पूरा करने के साथ दूसरी बार सरकार बनाने का दावा भी कर रहे हैं।

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