नई दिल्ली । पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (Five States Assembly Elections) के परिणाम आने में अब 12 घंटे से कुछ ही ज्यादा वक्त बचा है। ऐसे में सभी दल रणनीतिक तैयारियों में जुटे हुए हैं। कांग्रेस (Congress) के लिए उत्तराखंड और पंजाब (Uttarakhand-Punjab) के चुनाव परिणाम (Election Results) काफी मायने रखते हैं। दोनों राज्यों में जीतने वाले विधायक इधर-उधर न होने पाएं इसको लेकर कांग्रेस अभी से सतर्क हो गई है। पार्टी ने अपने दिग्गज नेताओं को इन विधायकों की निगरानी में तैनात किया है। वहीं मणिपुर और गोवा ( Manipur-Goa) में भी पार्टी पूरी तरह से अलर्ट मोड पर है।
कांग्रेस का अनुमान है कि पंजाब और उत्तराखंड किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा। ऐसे में पार्टी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं रखना चाहती है। जीते हुए विधायकों को कोई अन्य पार्टी तोड़ न ले, इसके लिए काफी सोच-समझकर रणनीति बनाई गई है। पंजाब में विधायकों को संभालने की जिम्मेदारी अजय माकन को दी गई है। उनके अलावा पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा को भी पंजाब में मोर्चा संभालने के लिए रवाना किया गया है। वहीं मणिपुर के लिए छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंहदेव, विंसेंट पाला और मुकुल वासनिक को नियुक्त किया गया है।
उत्तराखंड में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कमान सौंपी गई है। बघेल उत्तराखंड पहुंच चुके हैं। वहीं अभी तक कांग्रेस सांसद दीपेंदर सिंह हूडा, एआईसीसी के त्रिपुरा प्रभारी डॉ. अजय कुमार, पार्टी प्रवक्ता गौरव वल्लभ, जीतू पटवारी, एमबी पाटिल, झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बाना गुप्ता, उत्तराखंड कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव, सह-प्रभारी दीपिका पांडेय सिंह और एआईसीसी ऑब्जर्वर मोहन प्रकाश आदि यहां पहुंच चुके हैं।
कांग्रेस ने सभी ऑब्जर्वर्स को जीते हुए विधायकों से लगातार संपर्क में रहने और इस बारे में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को बताते रहने का निर्देश दिया है। मोहन प्रकाश ने कहाकि छोटे राज्यों में भाजपा ने पैसे और राज्यपाल का इस्तेमाल करके बहुमत हासिल करने की कोशिश की है। यह लोग उत्तराखंड में भी ऐसा ही कुछ करने का प्रयास कर रहे हैं। उनके विशेषज्ञ यहां पहले ही पहुंच चुके हैं। लेकिन इस बार वह ऐसा कुछ नहीं कर पाएंगे और हम यहां बहुमत हासिल करेंगे।
गौरतलब है कि बीते कुछ चुनावों में विधायकों के टूटने संबंधी कांग्रेस का अनुभव काफी खराब रहा है। 2017 में मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद वह सरकार नहीं बना सकी थी। गोवा में भी उसके साथ पिछले विधानसभा चुनाव में उसके साथ ऐसा हो चुका है। वहीं मध्य प्रदेश में सरकार बनने के बाद कुछ महीनों तक चली भी थी। इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया कुछ विधायकों को लेकर भाजपा में चले गए थे और कमलनाथ सरकार गिर गई थी। इसके बाद से कांग्रेस इस पहलू पर काफी काम कर रही है।
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