नई दिल्ली (New Delhi)। कांग्रेस (Congress) ने आगामी लोकसभा चुनाव (Upcoming Lok Sabha Elections) का खाका तैयार कर लिया है। रायपुर महाधिवेशन (Raipur Convention) के जरिए पार्टी ने साफ कर दिया कि वह सभी विपक्षी दलों (all opposition parties) को साथ लेकर चलने के लिए तैयार है। वहीं, पार्टी ने अपने संविधान में संशोधन (amending the constitution) कर सोशल इंजीनियरिंग (Social engineering) के जरिए समाज के बड़े तबके को साथ जोड़ने की कोशिश की है।
पार्टी ने राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक न्याय, विदेश नीति, युवा एवं रोजगार और कृषि और किसान पर प्रस्ताव पारित कर 2024 के घोषणा पत्र का खाका खींच दिया है। पार्टी इन मुद्दों को अभी से लोगों के बीच उठाएगी, ताकि चुनाव से पहले वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके। इसके साथ लोगों तक पहुंचने के लिए पार्टी पश्चिम से पूर्व तक यात्रा निकाल रही है।
पार्टी 2019 की गलतियों से सबक लेते हुए 2024 के चुनाव पर फोकस कर रही है। पार्टी उन सीट पर नए समीकरण बनाने की कोशिश कर रही है, जहां पिछले चुनाव में वह दूसरे नंबर पर रही थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस 196 सीट पर दूसरे नंबर पर रही थी। इनमें 71 सीट पर हार-जीत का अंतर पंद्रह फीसदी वोट से भी कम रहा था।
अनुसूचित जाति, जनजाति के लिए आरक्षित सीट पर भी पार्टी खुद को मजबूत बनाने की कोशिश में जुटी है। लोकसभा में 131 सीट आरक्षित हैं। पिछले चुनाव में इनमें से 86 सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। जबकि कांग्रेस को सिर्फ दस सीट मिली थी। पार्टी रणनीतिकार मानते हैं कि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अध्यक्ष हैं और पार्टी को इसका लाभ मिलेगा।
सामाजिक न्याय का लाभ लेने की कोशिश
पार्टी ने संगठन में एससी/एसटी, आदिवासियों, ओबीसी, अल्पसंख्यकों और महिलाओं को आरक्षण देकर समाज के बड़े वर्ग तक पहुंचने का प्रयास किया है। ओबीसी जनसंख्या देश की राजनीति की दिशा तय करती है। इसलिए, पार्टी ने सत्ता में आने पर अलग ओबीसी मंत्रालय बनाने, जातिगत जनगणना सहित इस वर्ग से कई बड़े वादे किए हैं।
छत्तीसगढ़ एक आदिवासी राज्य है। राज्य की तीस फीसदी आबादी आदिवासी है और राज्य की 90 में से 29 विधानसभा सीट उनके लिए आरक्षित हैं। वहीं, 35 फीसदी ओबीसी हैं और वह लगभग तीस सीट पर असर डालते हैं। मध्य प्रदेश में भी ओबीसी 50 प्रतिशत और आदिवासी 21 फीसदी हैं। ऐसे में पार्टी को चुनाव में सामाजिक न्याय का लाभ लेने की कोशिश करेगी।
विपक्षी दलों को संदेश
महाधिवेशन के जरिए कांग्रेस यह संदेश देने में सफल रही है कि सिर्फ वह चुनाव में भाजपा को सीधी चुनौती दे सकती है। विपक्षी दल भाजपा को शिकस्त देना चाहते हैं, तो उन्हें उसके झंडे तले इकठ्ठा होना होगा। इसके साथ पार्टी ने तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश में जुटी पार्टियों को भी साफ कर दिया कि इससे भाजपा और एनडीए को फायदा होगा।
पांच राज्यों के चुनाव में प्रदर्शन का पार्टी पर होगा असर
इस साल कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में चुनाव हैं। कर्नाटक और तेलंगाना को छोड़कर सभी राज्यों में भाजपा से सीधा मुकाबला है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी सत्ता में हैं। रणनीतिकार मानते हैं कि विधानसभा का असर लोकसभा पर भी पड़ेगा। पार्टी चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करती है, तो विपक्ष में उसकी स्थिति मजबूत होगी। वहीं, क्षेत्रीय दलों पर गठबंधन का दबाव बढ़ जाएगा। जिन क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस से सीधा मुकाबला है, वहां चुनाव बाद गठबंधन हो सकता है।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक यह पांचों राज्य हमारी लोकसभा की रणनीति पर सीधा असर डालेंगे। कांग्रेस को 2024 में अपने इर्द गिर्द विपक्ष को इकठ्ठा करना है, तो इन चुनाव में साबित करना होगा कि वह भाजपा को शिकस्त दे सकती है। पार्टी ऐसा करने में विफल रहती है, तो समान विचारधारा वाले दलों की सौदेबाजी की ताकत बढ़ जाएगी। इन पांच चुनावी राज्यों की बात करे तो इनमें लोकसभा की 110 सीट हैं। वर्ष 2019 के चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ छह सीट मिली थी।
यूपीए की तर्ज पर साथ आने का सुझाव
लोकसभा चुनाव में समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन के लिए कांग्रेस ने यूपीए की तर्ज पर न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने का सुझाव दिया है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी ताकतों की एकता पार्टी के भविष्य की पहचान होगी। इसके लिए पार्टी कुछ राज्यों में छोटे भाई की भूमिका निभाने के लिए भी तैयार है।
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