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    आदिवासी और पिछड़ों को मैनेज नहीं कर पाई कांग्रेस

  • November 06, 2021

    • भाजपा ने उपचुनाव में दोनों वर्गों को साधकर जीता चुनाव

    भोपाल। मध्य प्रदेश में तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे चौंकाने वाले कतई नहीं है। कमोबेश इसी तरह के नतीजे की उम्मीद की जा रही थी। भारतीय जनता पार्टी ने आक्रामक तरीके से चुनाव लड़ा। जबकि कांग्रेस अपने पुराने ढर्रे पर ही मैदान में दिखाई दी। आदिवासियों के लिए आरक्षित जोबट सीट का कांग्रेस के हाथ से निकल जाना पार्टी नेतृत्व को चौंका सकता है। लेकिन, भाजपा के लिए आम चुनाव में संजीवनी साबित हो सकता है। नतीजों के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ के नेतृत्व को भी चुनौती मिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। यद्यपि इस बात की संभावना अभी भी दिखाई नहीं दे रही है कि कांग्रेस पार्टी 2023 में होने वाले आम चुनाव के लिए नेतृत्व के बारे में अभी से कोई निर्णय लेगी। मार्च 2020 में राज्य की कांग्रेस में बड़ी टूट हुई। पार्टी की सरकार भी चली गई।


    इसके बाद हुए 28 सीटों के विधानसभा उप चुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन भी जातीय समीकरणों पर आधारित रहा। कांग्रेस की रणनीति पूरी तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों को बिकाऊ और गद्दार बताने पर केंद्रित रही। जबकि पार्टी में टूट के कारणों सही चर्चा नहीं हुई थी। जब सरकार बनी थी तो बहुत से मंत्रियों – विधायकों के अलावा पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं से कमलनाथ की दूरी साफ दिखाई देती थी। लोकसभा चुनाव में भी सरकार के कामकाज का जो लाभ कांग्रेस पार्टी को मिलना चाहिए था, नहीं मिला। इन चार उप चुनावों में भी तस्वीर जरा भी बदली हुई दिखाई नहीं दी। खंडवा लोकसभा के उप चुनाव के बीच में ही एक और विधायक ने पार्टी छोड़ दी। कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली जोबट सीट पर प्रभावशाली रावत परिवार का भाजपा में शामिल होना रणनीतिक कमजोरी को दिखाता है।

    दमोह से सबक लिया तो भाजपा को मिली संजीवनी
    भाजपा की रणनीति और चुनाव प्रबंधन एक बार फिर सफल रहा। दमोह उप चुनाव में मिली पराजय के बाद पार्टी नेतृत्व ने गलतियों से सबक लिया है। संभवत: यही वजह है कि जोबट के साथ पृथ्वीपुर में भी उसे अन्य दलों से आए चेहरों पर जीत मिल गई। रैगांव में पिछडऩे पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि कमी कहा रह गई, इसकी समीक्षा करेंगे। रैगांव भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती रही है। उप चुनाव में यह सीट कांग्रेस के खाते में जाने की वजह बहुजन समाज पार्टी का मैदान में न होना रही। जबकि पृथ्वीपुर में समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार मैदान में होने के बाद भी कांग्रेस कुशावह वोटों का विभाजन नहीं करा सकी। जबकि पार्टी यह जानती थी कि कुशवाह राठौर परिवार से नाराज रहते हैं। इसी कारण कुशवाह पृथ्वीपुर के उप चुनाव में भाजपा की रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। मंत्री भारत सिंह कुशवाह को इसी रणनीति के तहत चुनाव के लिए तैनात किया गया। लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव चुनाव प्रभारी थे। जीत के बाद भार्गव ने कहा कि पार्टी के भरोसे की जीत है। पृथ्वीपुर में भाजपा उम्मीदवार का यादव होने भी महत्वपूर्ण रहा। आम चुनाव में शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर दूसरे नंबर पर रहे थे। बाद में भाजपा में शामिल हो गए। पृथ्वीपुर का विधानसभा क्षेत्र उत्तरप्रदेश की सीमा से लगा हुआ है। ओरछा इसी विधानसभा क्षेत्र में आता है। कांग्रेस ने यहां दिवंगत विधायक बृजेन्द्र सिंह राठौर के बेटे को नितेन्द्र सिंह को मैदान में उतारा था। राठौर जब तक जिंदा रहे, भाजपा संघर्ष करती रही। वोटिंग के दिन भी भाजपा चुनाव आयोग के समक्ष कांग्रेस उम्मीदवार की शिकायत कर रही थी।

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