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    कांग्रेस-भाजपा में ओबीसी हितैषी बनने की होड़

  • December 20, 2021

    • विधानसभा में गूंज सकता है ओबीसी आरक्षण का मामला

    भोपाल। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में मप्र पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण खत्म करने का फैसला दिए जाने के बाद ओबीसी संगठनों ने मोर्चा खाल दिया है। साथ ही दोनों प्रमुख दल कांगे्रस एवं भाजपा एक-दूसरे पर ओबीसी विरोधी होने का आरोप लगा रही हैं। दोनों दलों के बबीच ओबीसी हितैषी होने होड़ मची हुई है। इस बीच मप्र सरकार के मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने रविवार को अपने निवास पर बुलाई गई बैठक में ओबीसी संगठनों के नेताओं ने दो टूक कहा है कि वे किसी दल के विरोध में नहीं है। सरकार ओबीसी आरक्षण की लड़ाई लड़े। आज से शुरू होने रहे विधानसभा सत्र में भी ओबीसी आरक्षण का मुद्दा गर्मा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा ने कांग्रेस पर आरोप लगाए हैं कि कांग्रेस ने कोर्ट में ओबीसी आरक्षण खत्म करने की मांग की थी। इसके बाद से कांग्रेस आगबबूला हो रही है। पीसीसी चीफ कमलनाथ और पूर्व पंचायत मंत्री कलेश्वर पटेल ने कहा कि कोर्ट में सरकार के वकीलों ने ओबीसी आरक्षण के पक्ष में एक शब्द भी नहीं बोला। जबकि सरकारी वकीलों को आरक्षण पर बात रखने के लिए कोर्ट से समय मांगना चाहिए थो।


    जब कोर्ट ओबीसी आरक्षण का फैसला सुना रही थी, तब सरकारी वकील कोर्ट के फैसल ेपर सहमती जता रहे थे। अब कांग्रेस इस मुद्दे को विधानसभा में उठाने की तैयारी कर रही है। आज कांग्रेस की ओर से ओबीसी आरक्षण को लेकर स्थगन प्रस्ताव लाया जा सकता है। रविवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई। इसमें राजनैतिक प्रस्ताव पारित हुआ कि ओबीसी आरक्षण के मामले में चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव दिया जाएगा। बैठक में यह भी तय किया गया कि पांच दिन चलने वाले इस सत्र दौरान प्रदेश में खाद की कमी, गांवों में अघोषित बिजली कटौती, कानून व्यवस्था, आदिवासियों पर अत्याचार, मंहगाई और रोजगार के मुद्दे उठाकर सरकार को घेरा जाएगा। वहीं रविवार शाम मुख्यमंत्री निवास पर बुलाई गई भाजपा विधायक की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सहित वरिष्ठ मंत्री पार्टी विधायकों को टिप्स दिए कि विपक्ष के आरोपों का जवाब कैसे दिया जाए?

    ओबीसी नेताओं ने कहा ओबीसी विरोधी हैं महाधिवक्ता
    मंत्री भूपेन्द्र ने अपने निवास पर ओबीसी संगठनों की बैठक बुलाई। जिसमें ओबीसी के 18 संगठनों के लगभग 100 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। बैठक में पंचायत चुनावों में ओबीसी के आरक्षण को समाप्त करने के सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर चर्चा हुई। बैठक में किसी भी ओबीसी संगठन ने किसी भी राजनैतिक दल के विरोध में कोई चर्चा नहीं की। संगठनों के प्रतिनिधियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मप्र सरकार और मप्र चुनाव आयोग के अधिवक्ताओं ंपर सवाल उठाए। संगठनों ने स्पष्ट कहा कि, जब याचिका में इस प्रकार की रिलीफ नहीं थी फिर भी इस प्रकार का फैसला देना संविधान का उल्लंघन है। संगठनों ने सरकार से मांग किया कि, सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल की जाना चाहिए। संविधान के विरोध में फैसला देने वाले जजों के विरूद्ध संविधान के अनुच्छेद 124(4) के अंतर्गत महाभियोग की कार्यवाही सुनिश्चित की जानी चाहिए। ओबीसी नेताओं ने मप्र के नवनियुक्त महाधिवक्ता को ओबीसी के आरक्षण के विरोधी होने का आरोप लगाया। ओबीसी संगठनों की संयुक्त बैठक में मंत्री भूपेंद्र सिंह, रामखिलावन पटेल, मोहन यादव, बृजेन्द्र यादव और मप्र पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग के अध्यक्ष गौरीशंकर विसेन, विधायक प्रदीप पटेल, मप्र भाजपा ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष भगत सिंह कुशवाह उपस्थित थे। साथ ही ओबीसी संगठनों के पदाधिकारियों में महेंद्र सिंह पूर्व डिप्टी कलेक्टर, आधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक शाह, उदय कुमार, केपी कुर्मवंशी, रामविश्वास कुशवाहा, पूर्व एडीएम जीपी माली, प्रकाश मालवी, दीपक पटेल, भरत यादव, यश भारती, पूर्व जिला न्यायाधीश आरसी चौरसिया, प्रोफेसर बीके चौरसिया, पुरषोत्तम गुप्ता एड. अंशुलिका जैसवाल, विभा नामदेव आदि उपस्थित थे।

    27 फीसदी आरक्षण पर सुनवाई अनिश्चित काल के लिए स्थगित
    मप्र हाईकोर्ट में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण पर सुनवाई चल रही है। 16 दिसंबर को हाईकोर्ट ने इस पर सुनवाई होना थी। ओबीसी आरक्षण से जुड़ी समस्त याचिकाओं की एकसाथ सुनवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश की बैंच में 97 नंबर था। कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण की सुनवाई 2 पर शुरू कर दी थी। जब कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण पर सुनवाई कॉल की तब, कोर्ट में याचिकाकर्ताओं और महाधिवक्ता कार्यालय का एक भी अधिवक्ता मौजूद नहीं था। इस वजह से कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण की सुनवाई को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया है। ओबीसी आरक्षण से जुड़ी याचिकाओं की पैरवी कर रहे अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि महाधिवक्ता कार्यालय की ओर से ओबीसी मामले में कोर्ट में कोई पक्ष नहीं रखा। न ही सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता कार्यालय का कोई अधिवक्ता मौजूद रहा।

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